शुक्रवारीय अंक में मैं श्वेता
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
करती हूँ।
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जीना भी अजीब है, कभी खेल है ,कभी कला है कभी एक्टिंग है, कभी कुछ है ,तो कभी कुछ !! इस जीवन में हर पल को आना है और तत्क्षण ही चले ही जाना है, एक-एक पल करके समय हमको गुजारता जाता है और हम समय को !!
"तस्वीर" ज़िंदगी की कभी एक सी नहीं रहती
बहुत कुछ कहकर भी वो सबकुछ नहीं कहती
थामकर वक़्त की लकीरें मुट्ठी में देखती तमाशा
समुंदर समेटकर भी वो संग लहरों के नहीं बहती।
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आइये आज की रचनाओं का आनंद लेते हैं-
सर्वप्रथम पढ़िए
अंतर्मन को स्पर्श कर, विचारों को उद्वेलित करती
क्षणिकायें
जहाँ किसी की परवाह भी
चलन में अब नहीं रहा
वहाँ जिंदा होने की गवाही
लाउडस्पीकर पर
साँस लेना हो गया है
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तृषित सृष्टि सारा, कण-कण तरसे
प्रतीक्षित है मरूभूमि जाने कब
बादल बरसे
देह की ऊष्मा बढ़ी,
सूरज को तपा दिया।
मन शीतल हुआ,
बरफ जम गयी।
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मन की पीड़ा कहाँ छुपाऊँ
कैसे समझाऊँ
उदास दिल को
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रिश्तों से न रखना उम्मीद,न कोई चाह
परिदों की तरह मनमौजी,ढूँढते हरपल
इंसान भी
हर मायने में
होता है इन जैसा ही।
फ़र्क बस इतना है,
वह एक बार की औलाद को,
पालता पोषता है,
अठारह साल तक।
कभी कभी अठाईस तक भी,
फिर एक दिन वे भी
उड़ जाते हैं
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जाने वालों की स्मृतियाँ रूलाती हैं
मन कहता है काश कि यूँ हुआ न होता
उस रोज़
तुम नहीं आए
रश्मियों ने कहा तुम
निकल चुके हो
अनजान सफ़र पर।
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और चलते-चलते पढ़िए-
जगुल्या
दो दिन से गाँव में ढोल बज रहे हैं. दो दिन से कोई जंगल में घास, लकड़ी लेने नहीं आया. पहली बार दो दिन दो युग के सामान लग रहे थे उसे..... पेट की आग उसे जला तो रही थी, पर उससे ज्यादा उसे अकेलापन खा रहा था. कई वर्ष अकेले रहने पर भी यकुलांस (अकेलापन) उस पर हावी नहीं हुआ. आज वह इस अकेलेपन से भागना चाह रहा था. यही चाह वर्षों बाद उसे गाँव की तरफ खींचने लगी.
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कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
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"तस्वीर" ज़िंदगी की कभी एक सी नहीं रहती
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहकर भी वो सबकुछ नहीं कहती
थामकर वक़्त की लकीरें मुट्ठी में देखती तमाशा
समुंदर समेटकर भी वो संग लहरों के नहीं बहती।
अत्युत्तम..
सादर
उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स पढ़ ली
सृजनपूर्ण पठनीय सूत्र। आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का गुलदान..
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों में शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
तस्वीर" ज़िंदगी की कभी एक सी नहीं रहती
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहकर भी वो सबकुछ नहीं कहती
थामकर वक़्त की लकीरें मुट्ठी में देखती तमाशा
समुंदर समेटकर भी वो संग लहरों के नहीं बहती.. वाह!बहुत बढ़िया कहा दी 👌
सराहनीय भूमिका के साथ बहुत ही सुंदर संकलन।
समय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूंगी।
सादर
बहुत सुंदर संकलन। बधाई और आभार!!!
जवाब देंहटाएंमाना कि ज़िन्दगी पल पल बदलती है
जवाब देंहटाएंकहते हैं कि ये हाथों की लकीरों में रहती है
कर्म से ज्यादा जिसे होता है किस्मत पर भरोसा
उसकी ज़िन्दगी वक़्त की लहरों से खेलती है ।
चयनित लिंक्स बहुत उम्दा । विविधता दृष्टिगोचर हो रही हर रचना में । आज कोई भी पहले से मेरी पढ़ी हुई नहीं थी । शुक्रिया
हर विचार का एक संस्कार होता है जो अपने साथ वर्तमान परिवेश के पूरे इतिहास का सांस्कृतिक अनुगूँज बन जाता है । वैसे ही आपके उपरोक्त विचार हैं । वैचारिक उद्वेलन से युक्त प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई । हार्दिक शुभकामनाएँ भी ।
जवाब देंहटाएंऔर हाँ! अपने इस आनंदमय ब्लॉग जगत में भी जिंदा होने की गवाही देनी होती है जो बस सतत् सृजन और प्रकाशन है । वर्ना .... सब जानते हैं । ये टिप्पणी बस एक हल्की मुस्कान के लिए है ।
जवाब देंहटाएंमुस्कान से ज्यादा गहन बात । सटीक कहा ।
हटाएं"तस्वीर" ज़िंदगी की कभी एक सी नहीं रहती
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहकर भी वो सबकुछ नहीं कहती
थामकर वक़्त की लकीरें मुट्ठी में देखती तमाशा
समुंदर समेटकर भी वो संग लहरों के नहीं बहती।
सारगर्भित मुक्तक के साथ लाजवाब प्रस्ततुतीकरण एवं उत्कृष्ट लिंक संकलन....
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर,सार्थक अंक,श्वेता जी आपको और सभी रचनाकारों को बहुत शुभकामनाएं।
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