शुक्रवारीय अंक में
मैं श्वेता
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन
करती हूँ।
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ऋतुओं का संधिकाल सृष्टि के अनुशासनबद्ध परिवर्तन चक्र का प्रतिनिधित्व करता है।
आषाढ़ के साँवले बादल, लौटती बारिश की रिमझिम झड़ी क्वार (आश्विन) की पदचाप की धीमी-सी सुगबुगाहट हरी धरा की माँग में कास के श्वेत पुष्षों का शृंगार
अद्भुत स्वार्गिक अनुभूति है।
नरम भोर और मीठी साँझ के बीच में धान के कच्चे दानों सा दूधिया दिन धीमी आँच पर पकता रहता है।
शारदीय नवरात्र के उत्सव के पूर्व आपने कभी देखा है नौजवान ढाकियों को अपने तासे में कास के फूल खोंसकर तन्मयता से झूमते हुए?
नव ऋतु की आहट महसूस करते हुए
आइये पढ़ते हैं आज की रचनाएँ-
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हर अभिव्यक्ति के बाद
बची हुई अभिव्यक्ति में
भावों की गहराई में छुपी
अव्यक्तता की अनुभूति
सदैव जताती है
मेरी अभिव्यक्ति के
अधूरेपन के समुच्चय को
अपूर्ण शब्दों के समास को
जिन्हें पूर्ण करने की चेष्टा में
अक्सर ख़ाली पन्ने पर
फडफड़़ाती हैं बेचैनियाँ...।
बोलना चाहिए इसे अब
आजकल दिन-रात नहीं होते
पृथ्वी एक ही करवट सोती है
बस रात ही होती है
पक्षी उड़ना भूल गए
पशु रंभाना
दसों दिशाएँ
एक कतार में खड़ी हैं
मंज़िल एक दम पास आ गई
जितना अब आसान हो गया
न जाने क्यों इंसान भूल गया
वह इंसान है
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तूफान से लड़कर कश्ती पतवार हो जाती हैं।
बूँद-बूँद बारिश बहती नदी की धार हो जाती है।
धुँध,गर्द,अंधेरे जब ढँक लें उजियारा मन का,
नन्हीं-सी इक आस की किरण शीतलता से
अंधेरों के कवच तोड़ कर आर-पार हो जाती है।
निज पर विश्वास
रे चेतन ये सोच
जगत में तू उत्तम कर्ता
पर जो खेले खेल
वही तो होता है भर्ता
भावों का विश्वास
जहाँ भी टूटा वो रोया।
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काश कि हमसभी को पूरी ज़िम्मेदारी से याद रहता कि हमने अपनी स्वतंत्रता के लिए किन बेशकीमती रत्नों को खोया है।
भगत सिंह
भगत सिंह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचारधारा एक इतिहास और एक क्रांति है! जिससे आज की युवा पीढ़ी में जोश आता है! एक ऐसा नास्तिक जो आस्तिकों के हृदय पर राज करता है! आज इक्कीसवीं सदी में जिस उम्र को अपनी जिम्मेदारी उठाने का अधिकार नहीं है! जिसे कानूनन अपराध माना जाता है ! उसी कच्ची उम्र में (1919) जलियावाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर इतना गहरा असर डाला कि नाजुक कंधों ने मजबूत इरादों के साथ समस्त देशवासियों को अर्थात संपूर्ण भारतवर्ष को अंग्रेज़ो से गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने का जिंमा उठा लिया! भगत सिंह की उम्र भले ही कच्ची थी ,पर भारत माँ से किया गया वादा पक्का था।
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चाय की यह फिलॉसफी हर एक की ज़िंदगी का सच है जरूर पढ़िए आप ख़ुद को किरदार के रूप पायेंगे-
एक कप चाय
मैं बापस घर आ गया और रात भर सोचता रहा कि हासिल क्या है इस ज़िन्दगी का | जो आदमी सारी उम्र परिवार के लिए मरता है , अंत में परिवार उसे छोड़ देता है और क्या ये बाकई न्यू नार्मल है | मृत्यू से बड़ा दुःख तो ज़िंदगी है | मृत्यु तो वरदान है जो इस अभीशिप्त जीवन के दुःख से मुक्त कर देती है | ये सोचते- सोचते सुबह हो गई |
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अपनी सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति हमारी संवेदना हमारा सम्मान सदैव विशिष्ट है।
यात्रा वृतांत
एक म्यूजियम जैसा बनाया गया है। वहां जालियांवाला बाग कांड का फिल्मांकन कर उसकी प्रदर्शनी लगातार होती रहती है। एक चौंकाने वाली बात यह भी नजर आई कि म्यूजियम में प्रभावित लोगों के परिवार वालों के बयान को लिखित रूप से उद्धृत किया गया है। सोचने की बात यह कि उसमें बयान देने वालों के नाम के साथ जाति का जिक्र किया गया है। पता नहीं इसके संयोजकों ने ऐसा क्यों किया? जाति का विवरण मुझे असहज ऐसा लगा।
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और चलते-चलते अन्तर्मन के भावों की महीन बुनावट और परिस्थितियों पर आधारित व्यवहार विश्लेषण को शब्द देती गहन अभिव्यक्ति
अन्तराल
उसकी तन्द्रा
भंग करते हुए स्नेहा ने कुछ पैकेट ऋतु को भी पकड़ा दिये । ऑटो में बैठते हुए माँ की दुख में डूबी आवाज़ कानों में
पड़ी - "लड़की कैसी नीम सी खारी हो गई है तू !" स्नेहा की थोड़ी देर पहले की तल्ख़ी याद करते हुए ऋतु ने माँ को समझाते हुए कहा -"नीम भी बुरा नहीं होता माँ.., आजकल
तो उसकी गुणवत्ता सभी मानते हैं ।"
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कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
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बहुत भी सुंदर भूमिका मिट्टी की महक लिए।
जवाब देंहटाएंसमीक्षा के साथ सजी रचनाएँ स्वतः ही आपके अथाह श्रम को दर्शा रही हैं। मेरी रचना की समीक्षा आपके शब्दों में भादों की फुहार सी बिखर गई।
दिल से हार्दिक आभार श्वेता दी मंच पर सम्मान देने हेतु।
सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर स्नेह
व्वाहहहहहहह
जवाब देंहटाएंआजकल दिन-रात नहीं होते
पृथ्वी एक ही करवट सोती है
बस रात ही होती है
पक्षी उड़ना भूल गए
सादर
बेहतरीन भूमिका के साथ सुंदर लिंक्स श्वेता ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति मेरे लिए को 5 दिन को में जगह देने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भुमिका ! ऋतुओं का संधि काल या बदलती ऋतु जो बदलाव लेकर आती है,उनके सुंदर दृश्यों को निरखती कवि मन की सुंदर अनुभूति सुगंध बिखेर रही है।
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन हर प्रस्तुति के साथ उस रचना पर विशिष्ट काव्यात्मक टिप्पणियां, जो रचना को नये अर्थ और संबल दे रहें हैं, शानदार पहल सुंदर प्रस्तुति।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित बेहतरीन संकलन । आज के संकलन में शीर्षक रूप में पंक्ति चयन कर मेरे सृजन को सम्मान देने के लिए। हार्दिक आभार श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति, खूबसूरत रचनाएं
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंऋतुएँ बदलती हैं नियम से और इस समय को तुमने बहुत खूबसूरती से अपने शब्दों में चित्रांकित किया है । एक एक शब्द जैसे काव्य रूप ले उपस्थित हुआ है । बेहतरीन भूमिका और हर रचना से जुड़ी तुम्हारी विशेष पँक्तियाँ मन मोह रही हैं । लिंक्स भी बहुत अच्छे लगे जो अब तक पढ़ पाई । बाकी फिर पढूँगी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
सस्नेह