।। भोर वंदन।।
ऊषे!
यह रवि का प्रकाश जो
तेरे श्रम का ही है प्रतिफल!
ये अलग-अलग बिखरे
एकाकी प्रकाश-बिन्दू
तम के असीम सिन्धु में
करते झिलमिल
जिन्हें जगती के मानवगण!
कहते हैं तारकगण!
विजयदान देथा 'बिज्जी'
चलिए आज की प्रस्तुति की ओर यहाँ सम्मिलित ग़ज़ल, कविताओं संग गुजारें कुछ पल ..✍️
किसी हसीन के जूड़े में सज रहा होता.
खिला गुलाब कहीं पास जो पड़ा होता.
किसी की याद में फिर झूमता उठा होता,
किसी के प्रेम का प्याला जो गर पिया होता.
➿➿
ताकती परवाज़े भरती
चील को..
बोझिल,तन्द्रिल दृग पटल मूंद
लेटकर…,
धूप खाती रजाईयों पर
शून्य की गहराईयों में
उतरना चाहती हूँ
लिख छोड़ी है
➿➿➿
बदहवासियों के आलम में
ई सी जी, इंजैक्शन, ऑक्सीजन…
नीम बेहोशियों, हवासों की गुमशुदगी में
उल्टियाँ, घुटन, बेचैनी, दहशत, लाचारी
हाड़ कंपाती ठिठुरन भरी सुरंग से गुजरती रूह..
➿➿➿
अरी ! तू अबला कैसे ?
चीर मेघ और भेद गगन को अंतरिक्ष तक पहुँची,
अतल सिंधु की गहराई से चुन लाई तू मोती ।
मरुभूमि में जलधारा ला,हरियाली फैलायी,
बिन पैरों के चढ़ी विश्व की सबसे ऊँची छोटी ।।
तू सृष्टि को धारण करती, सृष्टि धारित तुझसे
अरी ! तू अबला कैसे ?
➿➿➿
यथारीति, नदी, पर्वत, पेड़ -
पौधे, कुहासे में तैरते
हुए तितलियों
के झुण्ड,
सब
कुछ हैं ख़ूबसूरत, फिर भी न जाने
क्या चाहता है तुम्हारे अंदर
का वन्य आदमी, तुम
देना नहीं चाहते
हो समरूप
जीने
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स पर जाकर रचनाएँ पढ़ आई,बहुत सुंदर और मन को छूती रचनाओं का चयन किया है आपने पम्मी जी,आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा नमन और आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
बहुत सुन्दर और लाजवाब संकलन । मेरे सृजन को संकलन में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार पम्मी जी ।
जवाब देंहटाएंलाज़बाब संकलन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आगाज़
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..