स्नेहिल अभिवादन
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सुबह
मैं तुम्हें
अवश्य दूंगा
मेरी सुबह
तुम्हारी होगी
उसके शब्द
अभिव्यक्ति
और
उम्मीद का उजास
सब
सच है
और
एक गहरी रात
अश्रु गंगाजल
एक अनाम अतुल गहराईयों में......लुढ़कने लगती हूँ......
आधारहीन पत्थर की तरह.....तभी, भावनाओं से आहत मेरा शरीर........छपाक से किसी की आग़ोश में गिर पड़ता है.......
जो शायद,मेरा ही इंतजार कर रहा था..... ना जाने कब से .......
मैं कुछ कह नहीं सकती......वो इंतजार था या.....
मुझ पर अनायास उमड़ा उसका दयाभाव......
जिसने मुझे अपने दामन में संभाल लिया......मेरे गिरने से.......
प्रतिक्रिया में उठी तरंगों की उफाने.......गर्जनघोष से नभ को ललकार उठी.......या शायद, उस प्रिय के प्रहार से व्यथित होकर.......
मैं खुद हर्ष से पुलकित हो.....खिलखिला उठी थी.....
एक मधुर हल्केपन का अहसास.....मेरा रोम-रोम रोमांचित हो रहा है.....
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एक विशेष अंक पढ़ना न भूलिएगा।
शानदार लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंबढ़िया आगाज़
जवाब देंहटाएंवसंत का..
यूँ ही नहीं
ओढ़ते हैं निर्जन वन
सुर्ख़ ढाक की ओढ़नी,
मौसम की निर्ममता से
ठूँठ हुयी प्रकृति का
यूँ ही नहीं होता
नख-शिख श्रृंगार,
प्रेम की प्रतीक्षा में
चिर विरहिणियों के
अधीर हो कपसने से,
अकुलाई,पवित्र प्रार्थनाओं से
अँखुआता है वसंत।
सादर..
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी, नमस्कार!
सुन्दर लिंक्स चयन तथा श्रमसाध्य कार्य हेतु आपको मेरी शुभकामनाएँ..मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार..जिज्ञासा सिंह..
श्वेता जी,.
जवाब देंहटाएंआभार।
इतने बड़े अंतराल के बाद ब्लॉग पर आई पोस्ट पर भी आपकी नजर पड़ी, आपने पढ़ा, पसंद किया और चुना...
इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है।
बहुत बहुत धन्यवाद।
आभार आपका...।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया श्वेता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंवाकई सभी रचनाएं प्रशंसनीय योग्य है। बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना प्रस्तुति
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