सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।
जीवन के
रीते
तिरेपन बसंत
मेरे बीते
तिरेपन बसंत
बसंत की प्रतीक्षा का
हो न कभी अंत
प्रकृति की सुकुमारता का
क्रम
चलता रहे अनंत
नई पीढ़ी से पूछो-
कब आया बसंत?
कब गया बसंत...?
कलेंडर पत्र-पत्रिकाओं में
सिमट गया बसंत!
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
कुहू का शोर–
दराज में अटके
चिट-पुरजे
मेघ गर्जन–
पन्ने की नाव पर
चींटी सवार
*****
दिनभर इतराती
धूप
चबा चबा कर
खाएगी
गुड़ की पट्टी
राजगिर की लैय्या
और तिलि के लड्डू
*****
कैसे कह दूँ की अब घात होगी नही...स्वप्न मेरे
और चलते-चलते पढ़िए 'उलूक टाइम्स' का तीखा कटाक्ष-
घर के कुत्ते ने शहर के कुत्ते के ऊपर भौंक कर आज अखबार के पन्ने पर जगह पाई है बधाई है ‘उलूक’ बधाई है...उलूक टाइम्स
कुत्ते पाला कर
शहर में भी भेजा कर
अखबारों की जरूरत आज बदल कर
नई सोच उभर कर आई है
अच्छा करना
ठीक नहीं
कुत्ते ने कुत्ते के ऊपर भौंक कर
आज अखबार के पन्ने पर जगह पाई है ।
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
प्रस्तुति: रवीन्द्र सिंह यादव
आभार..
जवाब देंहटाएंइतनी बढ़िया वजनदार प्रस्तुति हेतु
आभार..
सादर....
बहुत सुन्दर संकलन । संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार ।
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबसंत की सुंदर भूमिका के साथ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्र संयोजन
मेरी रचना को सम्मलित करने का आभार
सादर
वाह, बसंती बहार की तरह सुखद रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत गहरी हैं... बधाई
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