सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।
एक हिंसक जीव
शेर को
जंगल का
बहादुर राजा कहा जाता है,
क्योंकि
वह अपनी प्रजा को ही खा जाता है।
#रवीन्द्र-सिंह-यादव
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
प्रज्ञाचक्षु खुलने से पहले
तृष्णा के मरुस्थल में घुमाते हो तुम
अनगिनत कामनाओं के शूल
ह्रदय की वादियों मे उगाते हो तुम
शूलों की सेज सजाओ या बचाओ तुम
तेरे हाथों से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
हम नई कहानी सबको पेलते रहे ...दिगंबर नासवा
हार तय थी दिल नहीं था मानता मगर.
उनकी इक नज़र पे दाव खेलते रहे.
चिंदी चिंदी खत हवा के नाम कर दिया,
इस तरह से दिल वो मेरा छेड़ते रहे.
मैं बुलाता हूँ उन्हें
कटोरी में पकवान रखकर,
इंतज़ार करता हूँ उनका,
पर वे आते ही नहीं,
दूर से देखते रहते हैं.
चाय की कप के लिए मधुर पुकार ने
उसे इश्क़ के समंदर से खींच लिया था...
उम्र के ज्वर से कांपते शरीर
अम्बर में टंके चाँद से ज्यादा कीमती थे...
कुबूल है बोलने की जगह
ऋतु वसंत... अनीता सैनी 'दीप्ति'
कली कुसुम की बाँध कलंगी
रंग कसूमल भर लाई है
वन-उपवन सजीं बल्लरियाँ
ऋतु वसंत ज्यों बौराई है।।
चलते-चलते पुस्तक-चर्चा वीडियो ब्लॉग के ज़रिये-
कासे कहूँ- समीक्षा डॉ प्रोफेसर उषा सिन्हा... विश्वमोहन
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर चर्चा..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
सुंदर चर्चा और सुंदर भूमिका। ज़रूरत है, जंगल में जानवरों को भी मतदान का अधिकार मिले।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल की. आभार.
जवाब देंहटाएंइसलिए तो जानवरों,जंगल का राजा है..विचारपूर्ण भूमिका के साथ सुंदर लिंको का चयन।
जवाब देंहटाएंसुंदर सटीक भूमिका के साथ सुंदर लिंक्स चयन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय सर,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ,हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
देरी से आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ।
सादर