हमारे सभी चर्चाकार
नेटवर्क की शिकायत कर रहे हैं
बारिश थम ही नही रही है..
काम है तो करना ही है
चलिए शुरु करते हैं.....
कोरोना से डरें नहीं डटे रहें .... आकांक्षा सक्सेना
आज पूरा विश्व सनातन संस्कृति की नमस्ते को करते दिख रहे है और पूरी दुनिया भारत के ऋषि-मुनियों के ज्ञान - विज्ञान का लोहा मान मान रहा है पर हमें क्या फर्क पड़ता है हमें तो मॉर्डन होना है, हमें तो विदेशी कल्चर फोलो करना है, उसी से हमारा स्टैंडर्ड बढ़ता दिख रहा है.... काश! कि हम सब अपनी संस्कृति पर विश्वास करें और जैसे उस समय बहुत बड़े - बड़े यज्ञ, होम, हवन हुआ करते थे जिसमें लौंग, इलायची, गुगल, गाय-घी, कपूर, की पवित्र अग्नि से पर्यावरण शुद्ध और पवित्र होता था जिससे बीमारियों का खतरा कम होता था। आज वही बात कही जा रही है कि अगर गर्मी बढ़े तो कोरोना वायरस से मुक्ति पायी जा सकती है। वही तो हम कह रहे कि देश में बहुत बड़े पैमाने पर यज्ञ होने शुरू होने चाहिए। इससे बहुत मदद मिलेगी।
कहने को अब रहा क्या ...आशा सक्सेना
मैं क्या से क्या हो गई हूँ
मैंने किसी को कष्ट न दिया
पर हुई अब पराधीन इतनी कि
अब बैसाखी भी साथ नहीं देती
जीवन से मोह अब टूट चला है
अब चलाचली का डेरा है
खाट से बड़ा ही लगाव हुआ है
हेलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ ...हिन्दी कुंज
हेलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ हेलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ ,अरे क्या हुआ फोन हाथ से छूटने लगा ,इतना डर .... मत डरो फोन के अंदर से मैं नहीं आ सकता लेकिन सतर्क रहना मैं बहुत मायावी हूँ कहीं से भी तुम्हारे शरीर में आ सकता हूँ। डरो मत मई आज स्वयं तुम्हें अपना परिचय देता हूँ और मुझसे बचने के उपाय भी तुम्हे बताता हूँ।
कन्याकुमारी, ..कुछ अलग सा
तीन-तीन सागर जिसके पांव पखारते हैं
यहां के तीन दर्शनीय स्थानों में पहले मंडपम में देवी कन्याकुमारी के पैरों की छाप पत्थर पर उकेरी हुई है ! दूसरा मुख्य भवन जिसके अंदर चार फुट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर स्वामी विवेकानंद की बेहद खूबसूरत कांसे की बनी मूर्ति स्थित है, जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है. इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एकदम सजीव नजर आता है तथा तीसरा ध्यान कक्ष जिसकी दिवार पर ''ॐ'' की आकृति बनी हुई है और शांत नीम अँधेरे में लगातार ''ओउम'' की ध्वनि उच्चारित होती रहती है..........!
अक्सर ...पुरुषोत्तम सिन्हा
ठहरी सी, बातों के पंख लिए,
पखेरू, बस उड़ता है!
हँसता है वो, जीवन के इस छल पर,
रोता है, रह-रह कर,
मंडराता है, विराने से नभ पर,
कटती हैं, सूनी सी रातें,
अनथक, करवट ले लेकर,
जीवन पथ पर,
अक्सर!
चलते-चलते एक ग़ज़ल
जो दिख नहीं रहा हूँ वो तो शर्तिया हूँ मैं
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
जैसे भी हो वो तुम हो मुझे क्यूँ हो फ़िक़्रो ग़म
कहना ये क्या है बोलो के तुझसे ख़फ़ा हूँ मैं
जो दिख रहा हूँ उसपे हमेशा सवाल उठा
जो दिख नहीं रहा हूँ वो तो शर्तिया हूँ मैं
ग़ाफ़िल रहे हैं वो ही जो कहते रहे हैं यार
आ जा न पास मेरे तेरा आसरा हूँ मैं
आज बस इतना ही
ईश्वर से कहिएगा
हमें गर्मी की ज़रूरत है
सादर
सामयिक सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंगर्मी सर्दी से फर्क नहीं पड़नेवाला वायरस है... सभी कोशिश करें स्वच्छ रह सकें... पानी खूब पियें ताकि वायरस लन्स को प्रभावित ना कर सके
व्वाहहहह....
जवाब देंहटाएंविविधा...
जानकारियां भी
साहित्य भी..
आभार...
सादर..
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार साहिर धन्यवाद |
गागर में सागर।👌👌🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंउम्दा एवं ज्ञानवर्धक लिंकों से सजी शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं