स्नेहिल अभिवादन
डाँड़, क्षेपणी, चप्पू, पतवार या पाल से चलने वाली एक
प्रकार की छोटी जलयान है। आजकल नावें इंजन से
भी चलने लगी हैं और इतनी बड़ी भी बनने लगी हैं कि
पोत (जहाज) और नौका (नाव) के बीच भेद करना कठिन
हो जाता है। वास्तव में पोत और नौका दोनों समानार्थक शब्द हैं,
किंतु प्राय: नौका शब्द छोटे के और
पोत बड़े के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
उदाहरणार्थ ली गई रचना
कालजयी रचना में पढ़िए पतवार को -
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी न मानी हार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
एक और रचना पढ़िए
स्मृति शेष भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेई रचित
चीर चलें सागर की छाती, पार करे मँझधार
ज्ञान केतु लेकर निकला है, विजयी शंकर
अब न चलेगा ढोंग, दम्भ, मिथ्या आडम्बर
.......
नियमित रचनाएँ
.........
आदरणीय आशा सक्सेना
छूटी हाथों से पतवार
सह न पाई वायु का वार
नाव चली उस ओर
जिधर हवा ले चली |
नदिया की धारा में नौका ने
बह कर किनारा छोड़ दिया
बीच का मार्ग अपना लिया
चली उस ओर जिधर हवा ने रुख किया
आदरणीय कुसुम कोठारी
हंसते हुए चहरे वाले दिल लहुलुहान लिये बैठे हैं
एक भी ज़वाब नही, सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं।
टूटी कश्ती वाले हौसलों की पतवार लिये बैठे हैं
डूबने से डरने वाले साहिल पर नाव लिये बैठे हैं।
आदरणीय मीना शर्मा
पतवार तुम्हारे हाथों है,
मँझधार का डर क्यों हो मुझको ?
इस पार से नैया चल ही पड़ी,
उस पार का डर क्यों हो मुझको ?
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा
पतवार जीवन का
खे रहा पतवार जीवन का,
चल रहा तू किस पथ निरंतर,
अनिश्चित रास्तों पर तू दामन धैर्य का धर,
है पहुँचना तुझे उस कठिन लक्ष्य पर।
आदरणीय कामिनी सिन्हा
आकाश अवनी के दोनों हाथों को पकड़कर चूमते हुए बोला - " मेरे जीवन के नईया की तुम्ही पतवार हो ....अगर तुम मेरे साथ हो तो मैं भँवर में भी फंसा रहूँगा न ,तो भी किनारा पा लूँगा। "अवनी मुस्कुराती हुई उलाहना देने के अंदाज़ में बोली - "अच्छा जी , जब इतना ही भरोसा था तो ये रुआँसा सा मुँह लटकाए क्यूँ थे।" मैं बहुत डर गया था अवनी - कहते हुए आकाश रो पड़ा।
आदरणीय उर्मिला सिंह
आशा की पतवार....
नाविक ले चल दूर कहीं दूर.......
जहाँ विश्वासों की कश्ती हो...
आशा की हो पतवार...
हम हो तुम हो और हो अपना प्यार.....
नाविक ले चल दूर कहीं दूर......
आदरणीय सुजाता प्रिय
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी
मेरी नैया डगमग डोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
लहरों में खा हिचकोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
आदरणीय साधना वैद
भर ले अपनी झोली
मन की नौका को
तट पर लाना है तो
सागर की उत्ताल तरंगों से
कैसा घबराना !
डूब जायें या तर जायें
पतवार उठा कर
नाव को तो खेना ही होगा !
आदरणीय साधना वैद
लक्ष्य ....
अर्जुन की तरह
अपने लक्ष्य पर
टकटकी लगाये बैठा हूँ मैं
लहरों पर धीरे-धीरे बहती
अपनी डगमगाती नौका पर !
पास में है खण्डित पतवार
और मन के तूणीर में
जीवन के रणक्षेत्र से बटोरे हुए
भग्न, आधे अधूरे,
बारम्बार प्रयुक्त हुए चंद तीर
आदरणीय विश्वमोहन कुमार
प्लेटलेट्स की पतवार
प्लेटलेट्स की पतवार फंसी 'डेंगी' में।
उलझती अटकती साँसे,
फकफकाहट।
'अविनाश' मासूमियत,
मद्धिम सी आँखों में झूलता
बेबस बाप की अकबकाहट!
आरोग्य चौखट से दुत्कारी गयी
आदरणीय ज्योति खरे
दोस्तो मेरे पास आओ ....
तूफानो को
पतवार से बांध दिया है
बहसों, बेतुके सवालों
कपटपन और गुटबाजी की
राई, नून, लाल मिर्च से
नजर उतारकर
शाम के धुंधलके में
जला दिया है
आदरणीय अनुराधा चौहान
दिल की नैय्या ...
ढलते-ढलते साँझ चली जब ,
कहती मन उजियारा करले।
उड़ने चला पखेरू बनकर ,
मन को अपने काबू करले।
पंछी उड़ते कलरव करते,
साँझ घनी होने वाली है।
भावों के अथाह सागर में,
दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब तंद्रा टूटी,
लगा रैन होने वाली है।
आदरणीय ऋतु आसूजा
जीवन की पतवार ...
भागती-दौड़ती जिन्दगी की रफ्तार
ढील देता पतवार
क्षीण तार लहूलुहान
सम्भल जा मानव.....
तन के पिंजरे में
कैद सांसों के
जोड़ की तार
हृदय प्राणवायु
की पतवार ......
....
इतनी ही रचनाएँ ही प्राप्त हुई है
वजह आप जानें
सादर
अथक परिश्रम
जवाब देंहटाएंविविध रचनाएँ
एक ही विषय पर..
शुभकामनाएँ सभी को..
सादर..
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
बेहतरीन प्रस्तुति।सभी रचनाएँ एक-से बढ़कर एक।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाएं एक ही विषय पर |पढ़ना बहुत अच्छा लगा |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन और उससे भी ज्यादा आपके अप्रतिम स्नेहाशीष का हृदयतल से आभार।🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत खूबसूरत संकलन ! सभी रचनाएँ एक से बढकर एक 👌
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन यशोदा जी आभार मेरे द्वारा सृजित रचना को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक ,सभी रचनाएँ लाज़बाब ,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार
जवाब देंहटाएंवैसे मुझे सुचना नहीं मिली थी पर मंच पर अपनी रचना को देख हार्दिक प्रसन्ता हुई दी ,सादर नमस्कार
ओह,
हटाएंकैसे भूल गए हम..
आगे से ध्यान रखेंगे
सादर..
कोई बात नहीं दी ,हो जाता हैं ऐसा कभी कभी ,मुझे तो इसी बात से बेहद ख़ुशी हैं कि आपने मेरे रचना को साझा किया
हटाएंकृपया ,मेरी बातों को अन्यथा ना ले। सादर नमस्कार आपको
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार यशोदा जी ! आपकी भक्त हो गयी हूँ मैं ! आगरा से बाहर होने के कारण नई रचना लिख नहीं पाई थी और अपनी पुरानी कोई रचना मुझे स्वयं याद नहीं आ रही थी ! मायूस थी कि हमकदम के आज के इस सफ़र में मैं पिछड़ जाऊँगी ! लेकिन प्रिय सखी आज आपने बचा लिया ! आपने इन रचनाओं को ढूँढ कर आज के हमकदम के संकलन में स्थान दिया हृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद और बहुत प्यार के साथ वन्दे !
जवाब देंहटाएंलाजवाब ..👌👌
जवाब देंहटाएंइस शानदार प्रस्तुति का हिस्सा बनना बड़े ही सौभाग्य की बात है । इस मंच को मेरा नमन व सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ व बधाई ।
जवाब देंहटाएंमै आदरणीया यशोदा दी का अत्यंत आभारी हूँ कि उन्होंने मेरे इस पुरानी रचना के माध्यम से मुझे मंच पर जगह दी है।
जवाब देंहटाएंनमन व आभार ।
बहुत ही अच्छी रचनाएँ हैं। हर बार की तरह विविधता से परिपूर्ण अंक। मेरी रचना को शामिल करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया यशोदा दीदी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सारी रचना अति सुन्दर है मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्य वाद यशोदा जी!
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