पांच लिंकों का आनंद परिवार की ओर से......
आप सभी को महिला दिवस की शुभकामनाएं.....
मै नहीं राधा बनूंगी,
मेरी प्रेम कहानी में,
किसी और का पति हो,
रुक्मिनी की आँख की
किरकिरी मैं क्यों बनूंगी
मै नहीं राधा बनूँगी।
मै सीता नहीं बनूँगी,
मै अपनी पवित्रता का,
प्रमाणपत्र नहीं दूँगी
आग पे नहीं चलूंगी
वो क्या मुझे छोड़ देगा
मै ही उसे छोड़ दूँगी,
मै सीता नहीं बनूँगी।
मै न मीरा ही बनूंगी,
किसी मूरत के मोह मे,
घर संसार त्याग कर,
साधुओं के संग फिरूं
एक तारा हाथ लेकर,
छोड़ ज़िम्मेदारियाँ
मैं नहीं मीरा बनूंगी।
यशोधरा मैं नहीं बनूंगी
छोड़कर जो चला गया
कर्तव्य सारे त्यागकर
ख़ुद भगवान बन गया,
ज्ञान कितना ही पा गया,
ऐसे पति के लिये
मै पतिव्रता नहीं बनूंगी
यशोधरा मैं नहीं बनूंगी।
उर्मिला भी नहीं बनूँगी
पत्नी के साथ का
जिसे न अहसास हो
पत्नी की पीड़ा का ज़रा भी
जिसे ना आभास हो
छोड़ वर्षों के लिये
भाई संग जो हो लिया
मैं उसे नहीं वरूंगी
उर्मिला मैं नहीं बनूँगी।
मैं गाँधारी नहीं बनूंगी
नेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी
अपनी आँखे मूंदलू
अंधेरों को चूमलू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी
मैं गाँधारी नहीं बनूँगी।
मै उसी के संग जियूंगी,
जिसको मन से वरूँगी,
पर उसकी ज़्यादती
मैं नहीं कभी संहूंगी
कर्तव्य सब निर्वाहुंगी
बलिदान के नाम पर
मैं यातना नहीं संहूँगी
मैं मैं हूँ मै ही रहूँगी
वो सब बहुत महान थी,
शायद मैं उतनी महान नहीं .......
अब पेश है.....आज के लिये मेरी पसंद....
आखिर कब तक ...
भोग वासना, मन के कीड़े
कैंसर का उपचार करो
जो नारी की अस्मत लुटे
वह रावण संहार करो
दूजों की कुंठा का प्रतिफल
आपद से गुजरती बेटियाँ
आखिर कब तक दर्द सहेंगी
क्यों मरती रहेंगी बेटियां
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर
किसी के लिए भी ज़िन्दगी आसान नहीं होती,
हमें विश्वास रखना चाहिए कि
हमारे अन्दर भी कोई हुनर छिपा है,
जिसे खोजना अनिवार्य है.
-ओप्रा विन्फ्रे
मलिका की तरह सोचिए.मलिका विफलता से नहीं डरती,क्यूंकि विफलता, सफलता की सीढ़ी ही होती है
तंग होली ...
शून्य हो गया जीवन सारा,
ख़ुशियों से नाता टूटा।
चीख उठी तब मौन वेदना,
जीवन जग से है रूठा।
शेष नहीं है अब अभिलाषा,
जलती इच्छा संग सभी।
जीना सीखिए ....
फल नहीं तो छाँव ,मयस्सर होगी जरुर,
बनकर हमदर्द बिरवों को सींचना सीखिए-
मुतमईन होईये मिल्खा व बोल्ट से बेशक
आपके तो पाँव हैं,बे-पांवों से चलना सीखिए-
आप तो भरे पूरे परिवार के चश्मों चिराग हैं
जिनका कोई नहीं उनसे भी जीना सीखिए -
मैं तेरी सोन चिरैया
घर को तेरे सुना करके
पिया का घर बसाऊँँगी
अब तक तेरी दुलारी थी
अब उस घर की सोनचिरिया कहलाउँँगी
थप्पड़ में प्यार, हक़ ढूँढ़नेवालो
है अपनी बिटिया और अपने काम के साथ। क्योंकि उसने जो पाया है वह इतना भरपूर है कि कोई तमन्ना अब बाक़ी नहीं रही। वह कहती भी है उसके साथ सबकुछ एफर्टलेस था।
लेकिन आम भारतीय स्त्रियां जानती हैं कि उनकी पूरी गृहस्थी उन्हीं के एफर्ट्स पर टिकी हुई है जिसमें थप्पड़ जबरदस्ती, उनका कॅरिअर छोड़ना सब सामान्य है।
कड़ाही
उसमें और कड़ाही में
बस इतना-सा फ़र्क है
कि कड़ाही को कभी-कभार
आराम मिल जाता है.
दुनिया पागल है या फिर मैं दीवाना
दीपक में असंख्य पतंगों को जलकर मरते हुए देख कर भी बाकी
पतंगे अपनी प्राण रक्षा की बात नहीं सोचते।
यह आकर्षण भी बड़ा विचित्र है।
और बहुत इसी पुस्तक से...
2 दिन बाद होली है......
आप सभी को मेरी ओर से.....
पावन होली की भी शुभकामनाएं.....
धन्यवाद।
महिला दिवसपर अत्यंत सराहनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनारी समानता से कहीं अधिक सम्मान जाती है। नारीत्व की महिमा के संदर्भ में कहा गया है कि नारी प्रेम ,सेवा एवं उत्सर्ग भाव द्वारा पुरुष पर शासन करने में समर्थ है। वह एक कुशल वास्तुकार है, जो मानव में कर्तव्य के बीज अंकुरित कर देती है।
परंतु उसकी एक सबसे बड़ी विशेषता कुंठा भी है... ।
और नारी सर्वाधिक अपमानित पुरुष से नहीं स्वयं अपनों से होती हैं , यह भी सत्य है।
सभी रचानकारों को प्रणाम और महिला दिवस की शुभकामनाएँ।
सुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल की. आभार.
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति..
हार्दिक शुभकामनाएँ.
सादर...
सराहनीय भूमिका उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
बहुत सुंदर। आभार और बधाई।
जवाब देंहटाएंसराहनीय और सारयुक्त भूमिका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाएँँ एक से बढ़कर एक हैं।
सुंदर अंक।
सादर।
महिला दिवस पर बहुत खूबसूरत प्रस्तुति, होली की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस पर खूबसूरत प्रस्तूति।
जवाब देंहटाएंमैं गाँधारी नहीं बनूंगी
जवाब देंहटाएंनेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी
अपनी आँखे मूंदलू
अंधेरों को चूमलू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी
मैं गाँधारी नहीं बनूँगी।
बहुत खूब ,गांधारी बन खुद का और कुल का नाश करना त्याग नहीं हैं ,
शानदार प्रस्तुति ,हरएक रचना सोचने पर मजबूर कर रही हैं ,सादर नमन आपको
गाँधारी नहीं बनूंगी
जवाब देंहटाएंनेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी
अपनी आँखे मूंदलू
अंधेरों को चूमलू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी
मैं गाँधारी नहीं बनूँगी।
लाजवाब अंक प्रिय कुलदीप जी । जोरदार रचनाएँ मन मोह गयी। शुभकामनायें और आभार 😊२
मुझे तो बस इतना पता है कि माँ नहीं होती तो मैं नही होता और पत्नी नहीं होती तो मेरे बच्चे / बेटियाँ नहीं होती। इसकी पटाक्षेप में नानी व दादी की भूमिका कैसे भूल सकता हूँ ।
जवाब देंहटाएंएक पुरुष तो महज कड़ी की भाँति है। हमारा पूर्ण अस्तित्व ही आपकी वजह से है।
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।
सुन्दर प्रतिक्रिया...
हटाएंसाधुवाद..
आदरणीय पुरुषोत्तम जी, समस्त नारी समाज के प्रति आपकी उद्दात भावनाओं का अभिनंदन है। कोटि आभार 🙏🙏🙏
हटाएंसम्मान हेतु आभार
हटाएंकामना है
सारे लोगों की सोच
आप जैसी हो
सादर
बीनू भटनागर जी की कविता मैं में ही रहूंगी मैं राधा नहीं बनूंगी पढ़कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स अच्छे लगे