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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

2018..आज का विशेषांक....पाठकों की पसंद....पाठिका आदरणीया साधना वैद...

बुधवारीय अंक में आदरणीया पम्मी जी की अनुपस्थिति का भरपूर सदुपयोग करते हुये पाठकों 

की पसंद के तहत हमने विशेष अतिथि आदरणीया साधना जी 

को आमंत्रित किया था। परिस्थितिवश उनकी 

पसंद की रचनाएँ सही समय पर नहीं मिल पायी इसलिए आज हम उनकी पसंद की कुछ रचनाएँ पढ़ेगें।

आदरणीय साधना जी का नाम ब्लॉग जगत में किसी भी परिचय का मोहताज़ नहीं। 2008 से अपनी सृजनात्मकता से पाठकों को मोहित कर रही साधना जी का
  संवेदनशील, भावपूर्ण ,उद्देश्यपूर्ण लेखन पाठक के मन-मस्तिष्क पर अपनी गहरी छाप छोड़ता है।
साधना जी की रचनाएँ जीवन के हर पहलू पर अपना स्पष्ट दृष्टिकोण रखती हैं। चाहे सामाजिक या आध्यात्मिक पक्ष हो या रिश्तों की बारीक बुनावट का सूक्ष्म विश्लेषण उनकी लेखनी अपनी गहरी छाप छोड़ती है। यूँ तो उनकी सारी रचनाएँ विशिष्ट होती है, पर उनके द्वारा लिखे हायकु विशेष तौर पर 
मुझे बहुत पसंद हैं।

तो चलिए सबसे पहले पढ़ते हैं उनकी चमत्कारिक क़लम से दो
रचना-
आँखें



कभी बरजतीं, कभी टोकतीं,
कभी मानतीं, कभी रोकतीं,
मर्यादा में सिमटी आँखें !

विरह व्यथा से अकुला जातीं,
बात-बात में कुम्हला जातीं,
नैनन नीर बहाती आँखें !

शहीदों को नमन

ऋणी रहेंगे
हिफाज़त के लिये
सदा तुम्हारे !

किया अर्पण
तन मन जीवन
देश के हित !
★★★★★

आइये अब पढ़ते है  साधना दी की 
पसंद की कुछ रचनाएँ

वह नहीं है,
तो फिर,
जब किसी पदचाप को सुनके
किसी के गुजरने का एहसास होता है,


उसे क्या कहेंगे ?

आत्मा !

जिसे भय से,

हम भूत मान लेते हैं ।
दरअसल यह भूत,
अतीत है !

★★★
विदा के बाद 
समेट रही थी घर, 
दोने, पत्‍तल, कुल्‍हड 
ढोलक, घुंघरू, मंजीरे 
सब ठिकाने पहुंचाए 
सौगातें बांटी 
★★★★★

हाँ मैंने देखा था उसे उस रोज़
जब पंचर हो गया था
उसकी कार का पहिया
घुटने मोड़े बैठा था गीली मिट्टी में
जैक लिए हाथ में
घूर रवहा था पहिये को
और फिर बीच बीच में आसमान को
शायद वहीँ से कुछ मदद की आस में
★★★★★
पर नही आते शनिवार इतवार हर हफ्ते .
परस्पर मिलने के लिये ..
कितने सारे काम ..और
बहुत ही बारीक सी दूरियाँ
धीरे धीरे फैल रही हैं सड़क की तरह .
सड़क भारी ट्रैफिक से व्यस्त त्रस्त .
बहुत जरूरी लगने पर ही बनाते हो तुम योजना
आकर मिलने की .
अब असंभव है सोचना भी
सहज ही शाम को
★★★★★

लोग छोड़कर आ गये, अपने-अपने नीड़।
सरिताओं के तीर पर, लगी हुई है भीड़।।

अस्तांचल की ओर जब, रवि करता प्रस्थान।
छठ पूजा पर अर्घ्य तब, देता हिन्दुस्थान।
★★★★★
एक प्रतिमा विशाल भी होगी - दिगंबर नासवा 
उनकी यादों के अध-जले टुकड़े
आसमानी सी शाल भी होगी

यूँ उजाला नज़र नहीं आता
चुप सी जलती मशाल भी होगी
★★★★★★
रंग मुस्कुराहटों का - श्वेता सिन्हा 
हर सिम्त आईना शहर में लगाया जाये
अक्स-दर-अक्स सच को उभरना होगा

मुखौटों के चलन में एक से हुये चेहरे
बग़ावत में कोई हड़ताल न धरना होगा

आदरणीया साधना जी के शब्दों में-





मैं एक भावुक, संवेदनशील एवं न्यायप्रिय महिला हूँ और यथासंभव खुशियाँ बाँटना मुझे अच्छा लगता है।

 आज का यह अंक आपको कैसा लगा

कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया
अवश्य दीजिएगा।

हमक़दम के विषय के

संदर्भ में जानने के लिए

यहाँ देखिए


आज के लिए इतना ही।


23 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी...
    सर्व प्रथम बड़ी दीदी को नमन
    हम आपके आभारी हैं और रहेंगे हरदम..
    बेहतरीन रचनाएँ पढ़वाइ आपने..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह! बधाई और आभार! सुबह - सुबह रचनाओं का इतना खूबसूरत और सुरभित गुलदस्ता भेंट करने के लिए। साधना जी की पसंद वाकई लाजबाव हैं। मन बाग - बाग हो गया। सबको बधाई और पांच लिंको का अभहर!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बेहतरीन भांति भांति के पुष्प गुच्छ से सुरभित है आज का अंक महक अतिगहन प्रभावित करती ज्यों महके इत्र सुगंध ! नमन साधना दी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद इंदिरा जी ! आपको मेरी चुनी हुई रचनाएं अच्छी लगीं मेरा श्रम सफल हुआ !

      हटाएं
  4. वाहह..
    सुबह सुबह साधना जी के पसंद से रचनाओं का प्रस्तुतिकरण बहुत बढिया।
    श्वेता जी का आभार इस विशेष प्रस्तुति के लिए।
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद पम्मी जी ! श्वेता जी की विशेष रूप से आभारी हूँ उन्होंने मेरी चुनी हुई रचनाओं को इतनी खूबसूरती के साथ संयोजित किया है !

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया 👌

    जवाब देंहटाएं
  7. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! परम प्रिय अपने पाठकों को अपनी पसंद की चुनिन्दा रचनाएं पढ़वा कर मेरा हृदय भी अति मगन एवं प्रफुल्लित है ! मेरी पसंद को इतना मान देने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत आभार ! आपकी आत्मीयता एवं प्रेम मुझे सदैव आपकी ऋणी बना देते हैं !

    जवाब देंहटाएं
  8. हृदय तल से आभार आपका श्वेता जी मेरे बारे में इतनी सुन्दर बातें कहने के लिए ! एक ज़र्रे को आफताब बनाने के लिए ! मेरी चुनी हुए रचनाओं को आपने बड़ी सुघड़ता के साथ सजाया है आज के फलक पर ! मेरी रचनाओं के चयन के लिए भी आपका हृदय से धन्यवाद ! दिल से आभारी हूँ !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया दी,आपका हृदयतल से बेहद शुक्रिया।
      इतनी सुंदर सुरुचिपूर्ण रचनाओं के बीच मेरी अनगढ़ रचना को भी आपने मान दिया आपके इस स्नेहाशीष से अभिभूत हूँ।
      मेरा सादर प्रणाम स्वीकार करें दी।
      बहुत धन्यवाद आपके इस सहृदय सहयोग के लिए।
      सादर।

      हटाएं
  9. उम्दा संकलन लाजवाब प्रस्तुतिकरण....
    आदरणीय साधना जी की रचनाएं हमेशा बेमिसाल होती है।और उनकी पसंदीदा रचनाएं भी लाजवाब हैं ।सभी रचनकारों को हार्दिक शुभकामनाएं...

    जवाब देंहटाएं
  10. एक उत्कृष्ट संकलन, एक उम्दा रचनाकारा कि बेमिसाल पसंद हम तक पेश करने का बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय श्वेता,
    साधना जी की पसंद लाजवाब है और हम भी लाभान्वित हुवे साधना जी आपकी अनुपम खोज के लिये ये अंक और हम सभी सदस्य सदा आभारी रहेगें आप के अपरिमित सादर आभार साधना जी।

    जवाब देंहटाएं
  11. मैनें दो रचनाओं को पढ़ा - 'आँखें' एवं 'स्मृति'। मुझे बेहद पसंद आया।

    जवाब देंहटाएं
  12. प्रिय श्वेता -- आदरणीय साधना बहन की पसंद से सजी इस सुंदर प्रस्तुति के लिए सस्नेह आभार और साधना जी को हार्दिक शुभकामनाएं | उनकी दोनों रचनाएँ बहुत ही सार्थक और हृदयस्पर्शी हैं | उनकी पसंद बहुत ही कमाल की है | सभी रचनाएँ मैंने भी देखी और पढ़ी मन आह्लादित हुआ जिसके लिए उनका सस्नेह आभार | वे खुद कलम की धनी हैं और उनके संवेदनशील लेखन की मैं भी प्रशंसक हूँ |पांच लिंक मंच अपनी प्रस्तुतियों में नये रंग भरा है आज का रंग और भी सुहावना है |सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं
  13. साधना जी का यह अंक मन को छू गया| पसंद बहुत अनमोल है |रचना धर्मिता अनुपम |

    जवाब देंहटाएं
  14. साधना जी, आपकी पसंद में शुमार खुद को पाकर लगा मैं वह एहसास हूँ, जिसे एक ठौर मिल गया हो,शुक्रिया आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  15. आभार साधना दी . सुधी पाठकों तक पहुँचने में ही रचना की सार्थकता है .मेरी रचना सार्थक हुई .

    जवाब देंहटाएं

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