सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में पांडेय बेचन शर्मा उग्र की कथा मूर्खा का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं बसंत त्रिपाठी की कथा "अंतिम चित्र", जिसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।
प्रकाशकों की व्यावसायिक बुद्धि के कारण
कृति के मुखपृष्ठ पर सुराही लिए बाला का चित्र बनाया गया है
जो कृति के प्रति भ्रांति उत्पन्न करता है।
उन्होंने उक्त कृति को बनाए जाने पर
प्रदर्शनी लगाए जाने की बात कही।
किसी रसवन्ती को देखा
बदली अपनी वेशभूषा
मड़डाने लगे, भिनभिनाने लगे
बातों के गीत अलपाने लगे
मीठे मीठे ख्वाब सजाने लगे
हरियाली के गीत सुनाने लगे
पेड़ों के धुन पर लहराने लगे
हल्की सी मुस्कुरा कर जैसे वो कह रही हो कि उसकी दोनों आंखों की एक कहानी ज़िंदा है... हल्की सी नज़र घुमाई तो एक काली सफेद फोटो पर नज़र पड़ी.. अचानक अकेले घर में जैसे भीड़ लग गई। “ देखना गुड़िया ही होगी... लेकिन तुम्हारे जैसी नहीं मेरे जैसी दिखेगी...” संदेश ने कहा तो आठ साल पहले था लेकिन जैसे आज वो उसे दोहरा रहा था। “ ऐसा कैसे... मैं तुम्हारे जैसा दिखने ही नहीं दूंगा...” चहक कर उसने जवाब दिया... “ये फोटो देखो... मैं ऐसा लकड़ी का घोड़ा लाउंगा, बड़े बाज़ार से खरीद लाते हैं... बाद में भी तो लाना है... आज ही ले आते हैं... फिर कर से तुम्हारा चलना फिरना बंद और तुम सिर्फ आराम करना...
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फिर मिलेंगे...
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103 सप्ताह से आप कविता ही लिख रहे हैें
इस बार आप व्यंग्य, आलेख आदि
अरविंद कुमार खेड़े दी का एक व्यंग्य आलेख है
जो डेली हंट मे छपा है
'सुनकर बापूजी का माथा ठनका। खोजबीन की तो पता चला, अवाम ठीक कह रही है। फिर उन्होंने इस भेदभाव को दूर करने के लिए युक्ति निकाली। क्यों न यह बाँटने का काम किसी अंधे को सौंपा जावे? वह देख ही नहीं पाएगा तो इस प्रकार के भेदभाव की संभावनाएँ ही खत्म हो जाएगी। ' बापूजी के स्वर्ग सिधारने के बाद 'सुराज' का यह कार्य आज भी अनवरत जारी है। बदला है तो सिर्फ इतना कि सारे समर्थ लोगों ने देश के सारे जरूरतमंदों को खदेड़ दिया है। और वे सब अपने-अपने सगे-संबंधियों के साथ रेवड़ी पाने अंधों के सामने खड़े हैं। दुर्भाग्य यह है कि अंधों को इसका इल्म नहीं है।वे बापूजी के सौंपे गए इस पुनीत कार्य को अपना कर्तव्य समझ निष्ठापूर्वक आज भी निर्वाह कर रहे हैं। और अवाम के लिए सुराज का यह सपना आज भी एक सपना ही बना हुआ है।' कहते-कहते दादा का दिल बैठ गया था।गला भर आया था। उन्होंने अपना चश्मा उतारा, आस्तीन से अपनी आँखें पोंछी, फिर अपना चश्मा साफ किया। रुँधे गले से कहा,'आज भी अपना बूढ़ा और अंधा गणतंत्र समझ रहा है कि,वह भेदभाव किए बिना रेवड़ी बाँट रहा है।'
प्रेषित करने की अंतिम तिथि : आज शनिवार 18 जनवरी 2020
मेल द्वारा शाम 3.00 बजे तक
सदा की तरह सदाबहार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर नमन....
क्या बात है दी बहुत सुंदर ...रचनाएँ सभी बेजोड़ ह़ै दी।
जवाब देंहटाएंअति सराहनीय प्रस्तुति सदा की तरह।
रश्क , यह रचना अत्यंत ही प्रभावशाली रचना लगी।
जवाब देंहटाएंमैं समझता हूँ कि, जरूरी नहीं है कि ज्यादा शब्द लिखे जाएँ, परन्तु जरूरी है कि शब्द की आत्मा यानि अन्तर्निहित भाव लिखी जाय, जो कि पल भर को झकझोर दे अन्तर्मन को।
शेष, पटल से जुड़े समस्त रचनाकारों को शुभकामनाएँ ।
लाजवाब अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां प्रस्तुति
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