"अंधा बाँटें रेवड़ी पुनि-पुनि अपने को देवे"
एक लोकोक्ति जिसमें निहित अर्थ स्वार्थी और भ्रष्टाचारी परिदृश्य को उजागर करता है।
अंधा बनकर रेवड़ियाँ बाँटने की परंपरा का कोई सटीक इतिहास तो ज्ञात नहीं है किंतु मेरा ऐसा अनुमान है कि जबसे समाजिक व्यवस्था विकसित हुई होगी तबसे
रेवड़ियों की बंदरबाँट भी।
मनुष्य के मन के स्वार्थी और लोलुप भावनाओं का भले ही
आज के दौर की विकृति और बिगड़ती सामाजिक दशा मानकर बढ़ा-चढ़ाकर बखान किया जाता है
परंतु यह तो अकाट्य सत्य है कि आँख होते हुये भी अंधा होना
कोई नयी बात नहीं।
राजा हो या रंक शक्ति,संपदा या अधिकार पाकर
अपने प्रियजनों को लाभान्वित करते ही रहे हैंं।
खैर
मुझे लगता है हम इस लोकोक्ति को नया रुप दे सकते हैं
अंधा बनकर क्यों न हम थोड़ी सी इंसानियत की रेवड़ी बाँटें,समाज को शर्मसार करते असंवेदनशील रिश्तों,संबंधों में थोड़ी-सी संवेदना की मीठी रेवड़ी बाँटें।
जाति और धर्म से बनी भरी नफ़रतों की खाई को
सौहाद्र की रेवड़ी से पाटें।
क्यों ऐसा नहीं हो सकता कि हम
निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर
देशप्रेम में अंधे होकर
जन-जन में भाईचारे और अपनेपन की रेवड़ी बाँटें।
अपनी भावी पीढ़ियोंं के उज्जवल भविष्य के लिए
अंधविश्वास मुक्त, अमीर गरीब का भेद किये बिना
शिक्षा और संस्कार की रेवड़ी बाँटें। ऐसी रेवड़ियाँ हम क्यों नहीं बाँट सकते जिससे संपूर्ण मानवता लाभान्वित हो सके।
★★★★★
हमक़दम का विषय इस बार ज़रा अलग था पर हमारे प्रिय रचनाकारों की अद्भुत लेखनी और बुद्धिमत्ता नमन योग्य है।
आप सभी की रचनात्मकता को सादर
प्रणाम।
आप सभी साहित्यजगत के
झिलमिल सितारें हैं जिसकी शीतल रोशनी
हमारे मंच की शोभा द्विगुणित कर रही है।
आप का सहयोग अतुलनीय है।
आप सभी की रचनाएँ बहुमूल्य है।
एक से बढ़कर एक रचना है आज की अवश्य पढ़ियेगा सभी रचनाएँ जो किसी भी कालजयी रचना से बढ़कर है।
★★★★★
अंधा बाँटें रेवड़ी...साधना वैद
अंधा बाँटें...आशालता सक्सेना
सपनों में जीते लोग अपनों को बोट देने का मन बनाने लगे |
चन्द लोग ही बंदरबाट का आनंद उठा पाए |जिस लाभ की बात होती उन तक ही पहुँच कर रुक जाता |मानो अंधा बांटे रेबडी फिर फिर अपनों को देने की बात की सच्चाई पर मोहर लग रही हो |
साथ अपनी अर्जियां डाल दें।
सर्वेश्वर जी ने बढ़ चढ़ कर सभी को अर्जी लिखने में मदद की ।
आज गाँव में कई पक्के मकान दिखने लगे ,कुछ छोटे मकान बड़े हो गये ,छोटे खेत बड़े हो गये ,
आज सर्वेश्वर दयाल का सारा कुनबा गाँव में सबसे प्रतिष्ठित और सबसे स्थापित है ।
भाषा "स्पर्श"की....सुबोध सिन्हा
परिभाषा सुन्दरता की तुम सब समझो साहिब
जन्मजात सूर हम केवल भाषा "स्पर्श" की जाने
अंधा बांटे भी तो भला जग में क्योंकर बांटे
अंतर मापदण्ड के सुन्दरता वाले सारे के सारे ...
★★★★★★
आज का यह विशेष हमक़दम का अंक
आशा है आपको अच्छा लगा होगा।
आपकी प्रतिक्रिया नवीन ऊर्जा का
संचरण करती है।
हमक़दम का अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले।
#श्वेता
बेहतरीन प्रतिभा...
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय अंक...
सभी को शुभकामनाएँ...
सादर...
वाहः
जवाब देंहटाएंअद्धभुत प्रस्तुतीकरण
वाह!!श्वेता ,खूबसूरत प्रस्तुति ,सुंदर भूमिका के साथ । सही है हम सभी को मिलकर प्रूम और सौहार्द की रेवडियां बाँटनी चाहिए । मेरी रचना को स्थान देने हेतु धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब अंक।
जवाब देंहटाएंमेरी प्रस्तुति को आज के अंक में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! अनुपम सृजन आज के रचनाकारों का ! भूमिका बहुत ही सुन्दर सन्देश के साथ ! लेकिन प्रेम और सौहार्द्र की रेवड़ियां बाँटने के लिए भी लिए दृष्टि की आवश्यकता तो अवश्य ही पड़ेगी ! इसलिए यह परम आवश्यक है कि कुछ भी बाँटने के दायित्व से दृष्टिहीन लोगों को मुक्त रखा जाए !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी विषयपरक हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनायें, सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअंधा बाँटे रेवड़ी जैसे मुश्किल विषय पर भी इतनी शानदार रचनाएं!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति.....
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
बेहतरीन भूमिका ,बिलकुल सही ,चश्मे का रंग बदल एक बार देखना तो लाजमी हैं न ,शायद नजारा बदल जाए ,
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचना ,सभी रचनाकारों को ढेरों शुभकामनाएं
बहुत सुंदर भूमिका सुंदर सुझाव लोक हित के भाव ।
जवाब देंहटाएंरेवड़ियां बंट गई है और वो किस के साथ गई बेचारा अन्ना करता जाने।
अब प्रश्न है कि अंधे को बांटने को रेवड़ी ही क्यों दी जाती है तो कारण यही समझ आता है कि ,स्वार्थी लोग मौका तलाशते हैं जैसे रेवड़ी सारे साल नही मिलती, कुछ विशेष समय पर ही मिलती है, वैसे ही स्वार्थ के अंधों को मौका मिलना ही रेवड़ी मिलना है।
शानदार विषय पर शानदार रचनाएं।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रेवड़ियां शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत सुंदर अंक।
बेचारा अंधा क्या जाने पढ़े
जवाब देंहटाएंअंधा बांटे यानी घोर भेदभाव --- एक दुर्लभ विषय पर बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति प्रिय श्वेता | सभी रचनाकारों ने लेखन में अपना कमाल दिखाते हुए विषय को समर्पित बेहतरीन सृजन किया है | सभी बधाई और शुभकामनायें | विषय को विस्तार देती भूमिका के लिए बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणादायी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसार्थक माध्यम द्वारा रचनाकारों ने कहावत का प्रयोग कर बेहतरीन संदेश दिएं।
तहे दिल से आभार प्रिय श्वेता दी मेरी लघु कथा को मंच पर स्थान देने के लिये.
जवाब देंहटाएंसादर स्नेह