यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष
कुर्ते पै छपी
सिंदूर की रंगोली-
विजयोत्सव
सुना है राम.
तुमने मारा था मारीच को.
जब वह.
स्वर्णमृग बन दौड़ रहा था.
वन-वन ।
तुमने मारा था रावण को.
जब वह.
दुष्टता की
विजय
थी कमी कुछ तो तरीके में
सलीके या इरादे में
पर चूकना लक्ष्य से
अक्सर हारना ही नहीं होता
फ़िर पलट के वार होगा
भेद लक्ष्य पार होगा
विजय
वे भी दफ़न हुए,
जो राज करते थे लहरों पर,
जिन्हें गुमां था, कि
आफताब उनका है.
लगा डूबने एक दिन सूरज,
दहलीज़ पर उनके भी !
खामोशियाँ भी बोलती
हर लफ्ज़ गुफ्तगूँ है
हर लफ्ज़ तुम्हारा ही तो है
बार -बार टूटती हूँ
हज़ार बार टूटी हूँ
टूट कर इन लफ़्ज़ों का
श्रृंगार करती हूँ
विजय
वैसे सही जगह की जाए तो नफ़रत भी बुरी चीज़ नहीं
पर यह क्या कि दुनिया की हर चीज़ से नफ़रत की जाए!
नफ़रत करो तो ऐसी कि जैसे नेवला साँप से करता है
शिकार शिकारी से करता है
बकिया मिसालों के लिए अपने आस पास ख़ुद ढूँढ़ो
कि कौन किससे किस कदर और क्यों करता है नफ़रत
><
फिर मिलेंगे...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंजय मातेश्वरी की
बेहतरीन प्रस्तुति
सादर नमन
सुन्दर विजयोत्सव प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन विजयोत्सव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत ही सुन्दर विजयोत्सव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
🌼जब तक मैंने समझ जीवन क्या है?..जीवन बीत गया..
जवाब देंहटाएंआज किशोर दा की पुण्यतिथि भी है..
उन्हें नमन करने के साथ ही सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं ..
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंकों के साथ शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई