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बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

चंदन है भारत की माटी ,तपोभूमि हर ग्राम है----अंक 102


जय मां हाटेशवरी...

ज़र्द पत्तों की तरह 
सारी ख्वाहिशें झर गयी हैं
नव पल्लव के लिए
दरख़्त बूढ़ा हो गया है
टहनियां भी अब
लगी हैं चरमराने
मंद समीर भी
तेज़ झोंका हो गया है
कभी मिलती थी
छाया इस शज़र से
आज ये अपने से
पत्र विहीन हो गया है
अब कोई पथिक भी
नहीं चाहता आसरा
अब ये वृक्ष खुद में
ग़मगीन  हो गया है
ये कहानी कोई
मेरी तेरी नहीं है
उम्र के इस पड़ाव पर
हर एक का यही
हश्र हो गया है ।------------------संगीता स्वरुप ( गीत )

अब चलते हैं...आज की हलचल की ओर...
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क्या अभयदान के जैसा जीवनदान होगा
हम दोनों का
पीड़ा की अनेक गाथाएं रची जा रही हैं
मेघों की पहली बूंद से फूटती तुम
दर्द की कविता सी फलती मैं
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रावजी ने अपने बारह पुत्रो को बुलाया  और  कहा, -" मेरा अन्त समय  तो अब निकट है पर मेरा जीव अटक रहा है  मै तुम सबसे  एक  वचन  लेना चाहता  हूँ।"
बेटो ने सोचा कि अपने अन्तिम  समय मे इस धोखे  का रावल जगमालजी  से बदला लेने के  अलावा और क्या  वचन मांगेंगे ।
रावजी के  पुत्रो ने कहा, -" आप अपने  प्राणो को मुक्त  करो ,  हम इस मृत्यु  का  बदला लेने  की  सौगंध  लेते है ।" रावजी ने कहा ,-" पहले तुम  सब मुझे  वचन
दो तब मै मेरे मन की बात कहूँ।"
पुत्रो से वचन लेकर  रावजी ने आज्ञा दी - 'मल्लीनाथजी  की औलाद  से तुम  लोग  मेरा वैर नही लोगे,  यही मेरी अन्तिम  इच्छा  है ।तुम  लोगो  पर मुसलमानो के  कितने
 वैर है,  आपस मे  लडने पर मेरा वंश उजड़ता है ,  मेरी यही तुम  लोगो को  भोळावण है ।'
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जब सुमंत राम को वन में छोड़कर चल देते हैं वह एक बार अयोध्या को मुड़कर देखते हैं और एक मुठ्ठी मिट्टी अयोध्या की उठा लेते हैं ,ताकि ये उन्हें अभिमान न हो मैंने
सब कुछ  त्याग दिया। और फिर मेरे पास पूजा करने के लिए कोई मूर्ती भी तो नहीं है। भगवान की मैं सुबह उठकर रोज़ पूजा करता हूँ। और यही वह मिट्टी है जिसमें इक्ष्वाकु
वंश की परम्परा समाहित है। प्रतापी राजाओं की स्मृति लिए है ये मिट्टी।
चंदन है भारत की माटी ,तपोभूमि हर ग्राम है ,
हर बालक देवी की प्रतिमा ,बच्चा बच्चा राम है।
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शोक है
मनी नहीं खुशियाँ
गाँव में इस बार
दशहरा पर
असमय गर्भ पात हुआ है
गिरा है गर्भ
धान्य का धरा पर
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सारी किताबें चौबीस हज़ार में खरीदी हैं। अब हाफ में भी न बेचें तो कैसे काम चलेगा। शायद हिन्दी के उपरोक्त लेखक द्वारा प्रयुक्त की गयी यह युक्ति, इस रूप में
'पुस्तकों का लोकतंत्रिकीकरण' है के हमने अपने यहाँ से किताबें निकाल दीं हैं, अब खुले बाज़ार में उन्हें कोई भी खरीद सकता है।
हो सकता है, वह पुलिहा से किताबें फेंककर पानी की गहराई नाप रहे हों। तैरने से पहले नापना, बुद्धिमानी का लक्षण है।

मिलते रहेंगे...
धन्यवाद...

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बैर को पाले रखने से
    तेजी से पनपता है
    परिष्कार करना ही उचित है
    अच्छी प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा पोस्ट
    मेरी पोस्ट की लिंक शामिल करने के लिए धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात..सुंदर बोध देते सूत्र..आभार इनसे परिचय कराने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  4. आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ...
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. चल पनघट
    तूं चल पनघट में तेरे पीछे पीछे आता हूँ
    देखूं भीगा तन तेरा ख्वाब यह सजाता हूँ
    मटक मटक चले लेकर तू जलभरी गगरी
    नाचे मेरे मन मौर हरपल आस लगाता हूँ
    जब जब भीगे चोली तेरी भीगे चुनरिया
    बरसों पतझड़ रहा मन हरजाई ललचाता हूँ
    लचक लचक कमरिया तेरी नागिनरूपी बाल
    आह: हसरत ना रह जाये दिल थाम जाता हूँ

    जवाब देंहटाएं

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