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रविवार, 25 अक्टूबर 2015

क्रूर हो क्यों, चाँदनी?-------अंक 99


जय मां हाटेशवरी...

आज इतनी दूर हो क्यों, चाँदनी?
रूप से भरपूर हो पर क्रूर हो क्यों, चाँदनी?
वह तुम्हारा देश, शशि, वह है न क्या रवि का मुकुर ही?
शशि-सदृश आतुर, मुकुर जग का न क्या कविसुलभ उर भी?
सुलगता शीतल अनल से, शून्य के शशि-सा विधुर भी!
इसलिये आओ हृदय में, दूर हो क्यों, चाँदनी?
रूप से भरपूर हो, पर क्रूर हो क्यों, चाँदनी?

मैं नहीं शशि, दूर है शशि, व्यर्थ मन को शशि बताता!
कहाँ मैं वंचित सुधा से, कहाँ वह शशि--घर सुधा का!
धरा पर पड़ते न उसके पाँव--शशि? मैं भूलता था!
तुम धरा पर उतर कर भी दूर हो क्यों, चाँदनी?
रूप से भरपूर हो, पर क्रूर हो क्यों, चाँदनी?

सुधा मुझसे दूर है, हे चाँदनी, पर मन मधुर है;
शशि नहीं हूँ, किन्तु फिर भी हृदय मेरा भी मुकुर है,
मुकुर भी ऐसा कि अतिशय चूर्ण--यह कविसुलभ उर है!
झाँक देखो रूप रंजित, दूर हो क्यों, चाँदनी?
रूप से भरपूर हो, पर क्रूर हो क्यों, चाँदनी?

तुम महीने में कभी दिन चार को आतीं, न सब दिन;
रहीं रातों दूर औ रीते रहे मेरे तृषित छिन,
मैं यहाँ बेबस खड़ा इन सींखचों को हूँ रहा गिन!
पास तो आओ, बताओ दूर हो क्यों, चाँदनी?
रूप से भरपूर हो, पर क्रूर हो क्यों, चाँदनी?

चाँदनी! सुन लो तुम्हीं सी है हमारी चाँदनी भी!
दूर भी है, सुन्दरी भी, क्रूर है वह चाँदनी भी!
तुम हृदय में पैठ पाओ तो दिखाऊँ चाँदनी भी!
पास है वह दूर से भी, दूर हो क्यों, चाँदनी?
रूप से भरपूर हो, पर क्रूर हो क्यों, चाँदनी?----------------------------------------नरेन्द्र शर्मा

अब चलते हैं...आज की हलचल की ओर...

और तभी होती है आकाशवाणी
बस और नहीं
तुम्हे फिर से लेना होगा जन्म
तब रूह हस कर
किसी शाख पर
ले लेती है फांसी
खो जाती है ब्लैक होल में
सुना है कब्र के ऊपर
जो पेड़ है वो पलाश है
स्वेच्छा से उगता है पलाश
प्रेम , प्रेम भी स्वेच्छा से ही किया जाता है


जिन्होंने पाकिस्तान माँगा उन्हें दिया गया और वोह चले गए, जिन्हें देश से मुहब्बत थी उन्होंने ना माँगा और ना ही मांगने वालों का साथ दिया...
इस मौज़ूं पर राहत इंदौरी साहब ने क्या खूब लिखा है
सभी का ख़ून है शामिल यहां कि मिट्टी में,
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है


बुढ़ापे ने छिनी उनकी रवानी
बच्चे अब नहीं उनको चाहते
बोझ जैसा अब उन्हें मानते
रोज गरियाते झिझकाते है
बूढ़े माँ पिता को सताते है
एक समय की बात ख़त्म हुई
दूजे समय ने की मनमानी।



दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं
थीं।
वे बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थीं और जब महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा
लिया। वे 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं। एक डॉक्टर की हैसियत से वे सिंगापुर गईं थीं लेकिन 87 वर्ष की उम्र में वे



अपने चतुर्दिक फैली शक्तियों के माध्यम से
मैं अपनी क्षमतावर्द्धन के मार्ग ढूंढ लेता हूँ।
और खड़ा हो जाता हूँ-
विश्व संरचना की पंक्ति में
चकित, विस्मित, पुलकित

कल   शरद पूर्णिमा है...
 और कल  इस ब्लाग की 100 वीं प्रस्तुति हैं...
कल की हलचल में हम पाँचों चर्चाकार एक
सम्मिलित प्रस्तुति देंगे...
पर आप के बिना हलचल में आनंद नहीं आयेगा...
आप सब की प्रतीक्षा रहेगी...

धन्यवाद...

5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    अच्छा चयन
    साधुवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति, हमारी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति । सौवीं का इंतजार रहेगा ।

    जवाब देंहटाएं
  4. ...........जुमला भा गया
    आहट है कैसी ? वक़्त ये कैसा है आ गया
    बनाकर बहाना गाय का कोई इंसान खा गया
    टूट पड़े सन्नाटे कल तक खामोशियाँ छाई थी
    दंगे ही दंगे है वक़्त -ऐ- हुड्दंग जो आ गया
    मिलकर भुगतो चुनली हुकूमतें हमने ऐसी ऐसी
    अफसोफ़ लोट के दौर -ऐ- रावण जो आ गया
    सहते आये थे फिर कुछ बदलने की आस थी
    अब ना कर शिकवा तब हमें जुमला जो भा गया

    जवाब देंहटाएं

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