शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में सद्य प्रकाशित पाँच रचनाओं के लिंक्स लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
कोई नहीं
अपना दीखता
तब भी उसी की
खोज में
मै खुद भी
भटकी अपने पर
दया तक नहीं
आई |
चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था…
ख़ुशहाली के सपने ले कर जब दो पाँव थके निकले,
मजबूरी का तन्हा कँगन तब चौखट पे अटका था.
मुमकिन है आँखों से बह कर दुख का दरिया उतरा हो,
टूटे सपनों का गीलापन हर सिलवट पे अटका था.
फिर भी मुझे पसंद हैं तुम्हारी कविताएं,
क्योंकि उनमें हमेशा होता है
कोई मेहनत-कश आदमी.
पर ख़ुशी से कितने जी पाते यहां हैं!
उस दर्पण में मार्ग हज़ारों
देखो पहचानों तुम अपना,
चल पड़ना जो सुगम लगे
बस दिशा एक चमकाए रखना॥
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंसारी रचनाएं स्तरीय
आभार
सादर
कुछ प्रस्तुति पढ़ना अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
बेहतरीन अंक. आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सारगर्भित अंक! मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार!
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