हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
इसी तरह से अगर पैनी नोक या कांटे से तने और डंठल के जोड़ को छुआ जाए तो पूरी पत्ती बन्द नहीं होती बल्कि उस जोड़ पर से यह डंठल नीचे की ओर झुक या मुड़ जाता है, जबकि उसके पत्रक खुले के खुले रहते हैं। यह मुड़ना उस जोड़ पर से न होकर जोड़ के थोड़ा आगे से होता है। यदि आप गौर से देखेंगे तो समझ में आएगा कि हर मोड़ वाली जगह थोड़ी फूली हुई सी दिखाई देती है मानों यहां एक गठान हो। यह गठाननुमा रचना हालांकि डंठल से मोटी और उभरी हुई होती है मगर फिर भी इसे गठान कहना ठीक न होगा क्योंकि यह गठान जैसी कठोर नहीं है बल्कि एक कब्जे की भांति काम कर रही है। यानी यह एक लचीला भाग है जो हिलने-डुलने के लिए व्यवस्था प्रदान करता है।
उसके निकट बैठू तो
आती है मुझको
उससे चंपा-सी गंध
पत्ते-पत्ते पर
लिख लाती है
नित नवे छंद
गुलाब भी झूमता है
मेहंदी के गीत में
ठंडक में पहुंचते ही उसने कई गरम निःश्वास छोड़े, दुपट्टे के छोर से गरदन का पसीना पोंछा, फिर भूल से धूल से अटे दुपट्टे से पोंछकर अपना मुंह गंदा कर लिया और तालू को अपनी जीभ से चाटकर, मैना का पिंजड़ा नीचे रखकर वह गुड़गांव की ओर देखने लगी. घनी धूल-भरी लू हर चीज़ पर छा गई थी. किंतु आम के हरे कुंज के ऊपर से आध मील दूर वह पुरानी कारवां-सराय की बाह्याकृति देख सकती थी. जल्दी से उसने पिंजड़ा उठाया और आगे चल पड़ी
फिल्म सिर्फ शिड्यूल में पूरी हो गई। पहला शिड्यूल 10 दिन तक चला और दूसरा तीन दिन तक। पूरी फिल्म को सिर्फ एक ही कैमरे से शूट किया गया और इसके लिए के कैनन 5 डी मार्क-थ्री कैमरे का इस्तेमाल किया गया। पैसा जुटाने का काम क्राउड फंडिंग के जरिए किया गया। कई लोग मदद के लिए सामने आए और गाड़ी चल निकली। पुष्पेंद्र ने बताया कि यह मॉडल तो यूरोप-अमेरिका के इंडिपेंडेंट फिल्म मेकर्स ने बनाया है मगर हकीकत यह है कि भारत में क्राउड फंडिंग की परंपरा बहुत पुरानी रही है। यहां यह चंदे के रूप में दिखती है। लड़कियों की शादी में भी दोस्त, पड़ोसी और रिश्तेदार मदद करते हैं।
फिर कुलीन और टूटी अपने अपने कमरे से निकल कर बाहर आते है और छत पर , बौंनड्ररी के पास खड़े हो कर देखते है कि कुलवंता, लाजवंती रोज की तरह एक दूसरे से लड़ रहे है, एक दूसरे पर चिल्ला रहे है, बहुत शोर शराबा कर रहे हैं, एक दूसरे पर समान फेंक रहे हैं कुर्सी बर्तन किताबें कपड़े जो मिलता वो एक दूसरे को फेंक कर मारते है। “तू काह की लाजवंती है, लाज शर्म तो तेरे अंदर है ही नहीं, रोज रोज का ड्रामा आज मैं खत्म कर दूँगा तुझे मार कर।” समान फेंकते हुए कुलवंता ने कहा
सदा की तरह लाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय दीदी
सादर वन्दे
सभी रचनाएं गहन अर्थ समेटे हुए हैं।धन्यवाद दीदी।🙏🥰
जवाब देंहटाएंछुईमुई पर आधारित लेख पढ़ना अच्छा लगा ,मुल्कराज आंनद की कहानी पढ़ने के बाद कोई और रचना पढ़ने की इच्छा नहीं बची।
जवाब देंहटाएंशेष रचनाओं को बाद में पढ़ेंगे।
शब्दाधारित प्रस्तुति में आप सिद्ध हस्त हैं दी।
सादर प्रणाम दी।