हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
मनुस्मृति के इस श्लोक के अनुसार ब्राह्मणों के छह कर्म हैं साधारण सी भाषा में कहें तो अध्ययन-अध्यापन (पढ़ना-पढाना), यज्ञ करना-कराना, और दान देना-लेना , इन कार्यों को दो भागों में बांटा गया है। धार्मिक कार्य और जीविका के कार्य अध्ययन, यज्ञ करना और दान देना धार्मिक कार्य हैं तथा अध्यापन, यज्ञ कराना (पौरोहित्य) एवं दान लेना ये तीन जीविका के कार्य हैं ब्राह्मणों के कार्य के साथ ही इनके दो विभाग बन गए एक ने ब्राह्मणों के शुद्ध धार्मिक कर्म (अध्ययन, यज्ञ और दान देना) अपनाये और दूसरे ने जीविका सम्बन्धी (अध्यापन, पौरोहित्य तथा दान लेना) कार्य जिस तरह यज्ञ के साथ दान देना अंतर्निहित है
दूसरे यह कि मैथिल परमहंस महोपदेशक नामक एक महात्मा ने भी 'ब्राह्मण सम्बन्ध' नाम की एक छोटी-सी पुस्तक लिखी है। यद्यपि उसमें विशेष रूप से मैथिलों और भूमिहार ब्राह्मणों के ही सम्बन्ध दिखलाए गए हैं। तथापि उसके चौथे पृष्ठ में लिखा है कि 'पंजी के पूर्व मैथिल, कान्यकुब्ज, सरवरिया और पश्चिम ब्राह्मण में सम्बन्ध था,' इत्यादि।इसी जगह यह समझ लेना चाहिए कि मैथिल ब्राह्मणों में दो प्रकार के विवाह प्रचलित हैं, एक तो उनकी सौराष्ट्र की केवल विवाह संबंधिनी सभा में होता है, जहाँ पर कन्या विक्रय प्रधान धर्म माना गया है।
पंडित अयोध्या प्रसाद ने अपनी पुस्तक "वप्रोत्तम परिचय" में भूमिहार को- भूमि की माला या शोभा बढ़ाने वाला, अपने महत्वपूर्ण गुणों तथा लोकहितकारी कार्यों से भूमंडल को शुशोभित करने वाला, समाज के हृदयस्थल पर सदा विराजमान- सर्वप्रिय ब्राह्मण कहा है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "बाणभट की आत्मा कथा " में काशी के भूमिहार ब्राहमणों को भूमि अग्रहार ब्राह्मन की संज्ञा दी है एवं उन परिस्थितियों की चर्चा की है जिनमे भूमिहार ब्राहमणों ने वैदिक कर्मकांड को छोड़कर सामंती वृति अपनाना पड़ा।
आज की परिस्थिति ऐसी है कि महाराष्ट्र जो कि पेशवाओं की प्रमुख कर्मभूमि एवं जन्मभूमि रही है वहां कोरेगांव जयंती जैसी शर्मनाक कार्यक्रम का आयोजन करके पेशवाओं के साथ गद्दारी करके हरा के उनकी हार का जश्न मनाया जाता है तब किसी पार्टी का मुंह नहीं खुलता है लेकिन जब सर्वोच्च न्यायालय के एक सही निर्णय के खिलाफ यही तथाकथित शोषित वर्ग जब पब्लिक प्रॉपर्टी को नष्ट करते हुए हल्ला बोलते हैं तब तुरंत वर्तमान सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ दो दो बार पुनर्विचार याचिका दायर कर दिया जाता है, अंत में बस भारत सरकार से यही एक अनुरोध है कि 125 करोड़ भारतीय आपके सन्तानतुल्य है और पिता का कर्तव्य होता है कि सन्तान जब मार्ग से भटके तो उसे सही मार्ग बताये ना कि मार्ग भटकाये और भ्रम पैदा करे क्योंकि वर्तमान भारत सरकार ने न्यायालय के फैसले के खिलाफ जो पुनर्विचार याचिका दायर की है वो आग में घी डालने का कार्य कर रही है और इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारत सरकार भी इतिहास शायद बॉलीवुड के उन फिल्मों से सीखते हैं जिसमें मनगढंत कहानी बनाकर ब्राह्मणों और क्षत्रियों को हमेशा विलेन बताया जाता है ।
हाँ, यह जरूर है कि बदले में कोई उपकार कराने के लिए दान न दिया जाय। अस्तु! यह तो संक्षिप्त हाल अन्त्येष्टि का है। इसी तरह श्रावणी आदि जितने कर्म प्रतिवर्ष होते हैं उन्हें ब्राह्मणसमाज एक प्रकार से भूल-सा गया है और उनकी जगह पर कुछ और किया करता है। या यों भी कह सकते हैं, कि लोग कुछ भी करते-कराते ही नहीं। इसलिए यदि ब्राह्मण समाज की इच्छा है कि हमारी सत्ता दुनिया में रहे। हम भी दुनिया में मान्य और पूज्य रहें, जैसा कि पूर्वकाल में वास्तविक रूप से थे और अब भी लोगों की मूर्खता से लाभ उठाकर अपना प्रभुत्व येन-केन-प्रकारेण् स्थिर कर रखा है, पर, कालचक्र वश वह प्रभुत्व अब रहनेवाला प्रतीत नहीं होता, तो ब्राह्मणमात्र को उचित है कि चाहे वह याचक दलवाला हो, या अयाचक दल वाला, अपने संस्कारों को, जो मृतप्राय अथवा मृत ही हो रहे हैं, सबसे प्रथम ठीक करे, उनको पुनर्जीवन दे और रूपान्तर में परिणत या नष्ट हो रहे हैं उन्हें यत्न करके अपने असली रूप में ला दे।
सर्वथा नया विषय
जवाब देंहटाएंकुछ समझी, कुछ ऊपर से निकल गई
समझना तो पड़ेगा,
आभार
सादर नमन
जी दी,
जवाब देंहटाएंअज्ञात विषय पर आपने जो लेख निबंध इकट्ठा किये है निश्चित ही वह बहुमूल्य है... पर आज सारे लेख पढ़ नहीं पाये हम परंतु पढ़ेंगे जरूर।
आपकी प्रस्तुति की रचनाएँ अचंभित कर देती हैं।
सस्नेह प्रणाम दी।