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गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

1908...कब खोलोगे तुम अपना तीसरा नेत्र...

शीर्षक पंक्ति आदरणीय ओंकार जी की रचना से।

 सादर अभिवादन।

सावधान!

मौसम बदल रहा है।
सर्दी की दस्तक हो चुकी है।
मौसम के संधिकाल में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है
क्योंकि शरीर अगले मौसम के लिए ख़ुद को तैयार कर रहा होता है। अक्सर लोग सर्दी-जुक़ाम,खाँसी की चपेट में आ जाते हैं। करोना काल में ऐसे मरीज़ों को भी करोना जॉंच COVID-19 RT PCR  की सलाह दी जा रही है। मौसम परिवर्तन काल में वायरस अधिक सक्रिय हो जाते हैं और लोगों को बीमार करते हैं। धूल, सर्द हवा आदि से एलर्जी के चलते भी कई लोग इन मौसमी बीमारियों से जूझते हैं। इससे बचने का उपाय है सावधानियाँ बरतना जैसे पंखा आदि की सीधी हवा से बचाव, हल्के गर्म कपड़े सुबह-शाम ज़रूर पहनना, नियमित व्यायाम,काढ़ा (काली मिर्च,लोंग,अदरक एवं तुलसी-पत्र से तैयार ) का नियमित सेवन और बीमार हो जाने पर डॉक्टर की सलाह।

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-   

मस्तिष्क...आशालता सक्सेना 

 यह सब भूल जाते हैं  है तो वह एक मशीन ही 

कब तक सक्रीय रहेगी कभी तो साथ छोड़ेगी 

पर सच्चाई से दूर हो कर स्वीकारना ही होगा

 है यथार्थ यही जिससे मुख मोड़ रहे हैं |

शिव से..... ओंकार 

शिव,

कब तक चलेगा यह अनाचार,

कब खोलोगे तुम अपना तीसरा नेत्र,

कब गूंजेगी तुम्हारे डमरू की आवाज़,

कब चलेगा तुम्हारा त्रिशूल,

शिव, कब करोगे तुम तांडव?

अश्क आंखों से यूं गिराया करो!.... दीपक कुमार भानरे 



माना कि हर आरज़ू को मिलती नहीं मंजिल ,

हालात होते है तमन्नाओं के कत्ल में शामिल

हर हादसे पर यूं आहत हो जाया करो

अश्क आंखों से यूं गिराया  करो  

केबिन में क्रांति... हर्ष वर्धन जोग 

बैंक का ख़याल था की ओवरटाइम अब बंद कर दिया जाए क्यूंकि एक्स्ट्रा स्टाफ दे दिया गया है. यूनियन कहती थी दिसम्बर और जून में खातों में ब्याज लगाने का काम एक्स्ट्रा था इसके ओवरटाइम मिलना चाहिए और सबको मिलना चाहिए

पुस्तक परिचय---ताना बाना- कवयित्री ( डॉ0 उषा किरण ): 

प्रस्तुति... संगीता स्वरुप (गीत

इतनी जीवंत कविता पढ़ पाठक भी ऊर्जावान हो उठता है और बरबस ही उसके  चेहरे पर एक स्मित की रेखा खिंच जाती है   कहीं खिली धूप से बात करती हैं  तो कहीं  एक टुकड़ा आसमाँ अपनी पिटारी में रख लेना चाहती हैं यूँ तो बहुत सी कविताओं को यहाँ उध्दृत किया जा सकता है लेकिन पाठक स्वयं ही कविताओं को पढ़ अनुभव करें और पुस्तक का आनंद लें। 

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले मंगलवार। 

#रवीन्द्र_सिंह_यादव  


10 टिप्‍पणियां:

  1. 'केबिन में क्रांति' शामिल करने के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर एवं आकर्षक सूत्रों से सजी हलचल के लिए आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. हलचल ने हलचल की । आभार मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
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  5. सुप्रभात
    सुन्दर हलचल मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार साहिर धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद एव आभार |

    जवाब देंहटाएं
  7. Acchisiksha जी इस रचना के लिए आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद एव आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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