ठण्ड काफी है
लोग बचने के लिए किसी भी वस्तु को जला देते हैं
चाहे वो लड़की ही क्यों न हो
किताबें ही बोलती हैं
पुरानी किताबें
आज की सच्चाई भी जानती है
पढिए आज एक बंद ब्लॉग से
लाई गई रचनाएँ......
ब्लॉग का नाम है
किताबें बोलती है
ब्लॉगर भाई हैं
ज़नाब नादिर अहमद खान
रचनाएँ अधिक है
गुज़ारिश है कि
कोई भी पाँच रचनाएँ ही पढ़ें
.....
माँ-बाप ...
माँ–बाप की ज़रूरतें
होती गईं छोटी.. और छोटी
गाँव के अधटूटे मकान में
महज़ दो वक्त की रोटी तक सिमट गईं ।
हालात .....
नियम/अनुशासन
सब आम लोगों के लिए है
जो खास हैं
इन सब से परे हैं
उन पर लागू नहीं होते
ये सब
ख़ास लोग तो तय करते हैं
कब /कौन/ कितना बोलेगा
कौन सा मोहरा
कब / कितने घर चलेगा
यहाँ शह भी वे ही देते हैं
और मात भी
आम लोग मनोरंजन करते हैं
पिता ......
वो छुपाते रहे अपना दर्द
अपनी परेशानियाँ
यहाँ तक कि
अपनी बीमारी भी….
वो सोखते रहे परिवार का दर्द
कभी रिसने नहीं दिया
वो सुनते रहे हमारी शिकायतें
अपनी सफाई दिये बिना ….
दर्द इतना कहाँ से उठता है ...
फिर कोई वस्वसा नहीं होता
न्याय जब नकदखाँ से उठता है।
मसअले प्यार से हुये थे हल
वो हुनर अब जहाँ से उठता है।
आग दिल की तो बुझ गई नादिर
बस धुआँ ही यहाँ से उठता है।
क्षणिकाएँ ....
घर की मालकिन ने
घर की नौकरानी को
सख्त लहजे में चेताया
आज महिला दिवस है
घर पर महिलाओं का प्रोग्राम है
कुछ गेस्ट भी आयेंगे
खबरदार !
जो कमरे से बाहर आई
टांगें तोड़ दूँगी........
रोती है,जब बेटी तो, फटता है कलेजा...
जन्म पर बेटों के तो, बजता है नगाड़ा
बेटियों के नाम पर, आता है पसीना
हर बहू तो होती है, बेटी भी किसी की
रोती है,जब बेटी तो, फटता है कलेजा
नौकरानी हो कोई, या कोई सेठानी
हर किसी का लाल तो, होता है नगीना
क्यूँ है तू बीमार ....
पहले ही से दर्द बहुत हैं
और न ले अब भार मेरे दिल
सुनकर भाषण होश न खोना
ये सब है व्यापार मेरे दिल
मुझे दिल से पुकारा उसने ....
उसकी आवाज़ पे लब्बैक कहा है हरदम
आज़माने के लिए जब भी पुकारा उसने
ज़ख्म ही ज़ख्म दिये हमने ज़मीं को लेकिन
अपनी बाहों का दिया सबको सहारा उसने
उसकी बातों का असर ऐसा हुआ है जैसे
मेरे अन्दर कोई सैलाब उतारा उसने
एक दिन बेटा नाम करेगा .....
रोशन कर रहे हैं
गाँव का नाम भी
अरे!! बड़े फरमाबरदार हैं
इंजीनियर साहब
अपने व्यस्त शिड्यूल से
हर माह
वक्त निकाल लेते हैं
वृद्ध आश्रम में
माँ-बाप से मिलने
सपरिवार ज़रूर जाते हैं।
....
अब वक्त है विषय का
नया विषय
हालात
उदाहरणः
हालात-ए-जिस्म सूरत-ए-जाँ और भी ख़राब
चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब
नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे
होंटों में आ रही है ज़बाँ और भी ख़राब
रचनाकारः दुष्यन्त कुमार
प्रेषण तिथिः 07 दिसम्बर 2019
(3.00 बजे शाम तक)
प्रकाशन तिथिः 09 दिसम्बर 2019
प्रविष्ठियां मेल द्वारा ही भेजिए
सादर
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंतीसरी खुदाई है...
पहली खुदाई में सोना मिला था
इस खुदाई में तो हीरे की खदान मिल गई..
आभार..
सादर..
वाहः
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन के लिए साधुवाद
सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
शानदार संकलन |
जवाब देंहटाएंवाह लाजवाब।
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत ही शानदार संकलन !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं को पढ़ने का आनंद मिला ,बहुत ही सुंदर ब्लॉग ,सादर नमस्कार दी
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाओं से सजा ब्लॉग पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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