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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

1603....इंसानियत का एहतराम कर

शुक्रवारीय प्रस्तुति में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
--–-----

ये अंतरात्मा क्या होती है माँ?
बिटिया ने एक कहानी पढ़ते-पढते पूछा।
 'मन' मैंने कहा।
 'मन' का मतलब क्या?उसने पूछा!
 "मन जो दिमाग से अलग होता है।
बुद्धि-विवेक,छल-प्रपंच से अलग जिसकी ध्वनि सुनी जा सकती है,जहाँ से सदा सच्ची और अच्छी आवाज़ आती है।
मैंने कहा।

सबको सुनाई पड़ती है "अंतरात्मा की आवाज़"?उसने पूछा
"हाँ लगभग हर मनुष्य को किसी भी काम करने के पहले,जीवन की हर दुविधा में सही-गलत के निर्णय में सहायक होती है।"मैंने कहा।
"उसने लगभग उदास होते हुये कहा,आजकल लगता है अंतरात्मा ने बात करना बंद कर दिया है मनुष्यों से!"

"नहीं बेटा मनुष्य अंतरात्मा की सुनना नहीं चाहते हैं क्योंकि अंतरात्मा के बताये राह पर चलना आसान नहीं होता है।"

---–--
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते है-


व्यवस्था


नापकर अपने वलय को, तेज को प्रतिपल बढ़ाता
ज्योति देता है जगत को, साथ में जलता-जलाता;
हैं प्रखरतम रूप रवि के, सांध्य, ऊषा या दिवस हो
क्या प्रकीर्णित तेज करना, मूढ़ता निर्बाध है?


★★★★★


पंछियों का रुदन सुना है,
बारिश में अपनी पत्तियों का नृत्य देखा है,
आकाश से मेरी अच्छी दोस्ती रही है,
क्योंकि धरती से जुड़ा रहा हूँ मैं ।
आज मैंने अपने शरीर से वस्त्ररूपी पत्तियों को गिरा दिया है,
इसलिए नहीं कि अब मैं मौसम के थपेड़े नहीं झेल सकता !

★☆★


संघर्षों की ताक़त ना रही मन का विश्वास भी हार गई
अखर रहा जीवन भर की जो सारी मेहनत बेकार गई,

उम्र के इस ढलान पे आ चाहतों ने भी दम तोड़ दिया
चुनौतियों से लड़कर जीना अब मुझको स्वीकार नहीं,

☆★


ख़ुद को बचाना गर बग़ावत है तो बग़ावत सही 
वो कर रहा है कोशिशें, मुझे मिटाने के लिए। 

बिना शोर मचाए भी हल हो जाते हैं मसले मगर 
सुनने वाला भी तो चाहिए, बात सुनाने के लिए। 

★☆★


इंसानियत का एहतराम कर। 
यहाँ होते रहते हैं नाटक,
यह दुनियाँ है एक रंग मंच।
चलते रहते छल छंद यहाँ, 
लोग रचते रहते हैं प्रपंच।
तू छोड़ कर दुनियाँ गीरी,
भलमनसाहत के काम कर।

★☆★


टेढ़ी-मेढ़ी अदरक ने पहना नया सूट
गाजर मूली ढूंढ़ रहे थे अपने अपने बूट,
नारियल ने जोटी से गूंथी चोटी
कद्दू कहे हाय छुपाऊं कैसे तोंद मोटी,
पालक की हरी अगंडाई, तुरई बोली पहनु साड़ी

★☆★


दूसरे दिन जब दुकानदार ने दुकान खोली तो सांप को आरी से लिपटा मरा हुआ पाया जो किसी और कारण से नहीं केवल अपनी तैश और गुस्से की भेंट चढ़ गया था। 

कभी कभी गुस्से में हम दूसरों को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं मगर समय बीतने के बाद हमें पता चलता है कि हमने अपने आप का ज्यादा नुकसान किया है।


आज का यह अंक आपको कैसा लगा?
आपसभी की प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाती है।

हमक़दम का विषय है-

कल का अंक पढ़ना न भूलें कल आ रही हैं
विभा दी एक विशेष विषय के साथ।

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12 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहह...
    बेहतरीन प्रस्तुति...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. "नहीं बेटा मनुष्य अंतरात्मा की सुनना नहीं चाहते हैं क्योंकि अंतरात्मा के बताये राह पर चलना आसान नहीं होता है।"

    सामयिक ठोस बातें

    सराहनीय संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. अंतरात्मा की आवाज हल्की सुनाई देती है क्योंकि ध्यान व साधना की कमी है।
    मौन ये वृक्ष नहीं, हमारा समाज है।
    इसी वृक्ष की जगह हमारी भीड़ को रख कर देखो और सोचो
    हमें तो मर ही जाना चाहिए अब।

    क्रूरता के ख़िलाफ़ गुस्सा जायज है। और इसकी जरूरत भी है।
    " बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
    आदमी को भी मय्यसर नहीं इंसां होना "

    भिंडी ले, गोभी ले, आलू ले, मटर ले... ये भी एक रोज़गार है
    ठीक पकोड़े तलने की तरह 🤣🤣😂😭😖😖😖


    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार भुमिका जो अंतर तक छू गई ,पर सच कहा अब अंतर मन बोलता भी है तो बाहर के घोर आततिय प्रभंजन में स्वयं के कानों तक भी नहीं पहुंचती असंवेदनशीलता चरमोत्कर्ष पर है।
    सुंदर रचनाओं का संकलन सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तर
    1. आदमियत पर क्लिक किया टिप्पणी करने पर लिखा मिला Comments are restricted to team memebers

      हटाएं
    2. जी सर कल भी हम आमंत्रण संदेश देने गये तो यही लिखा था,शायद उनके ब्लॉग सेंटिग में कुछ परेशानी होगी।

      हटाएं
  6. वाह!!!श्वेता, सुंदर भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति । बाहर के शोर ,शराबे में अन्तर्मन की आवाज़ खो जाती है कहीं ।

    जवाब देंहटाएं
  7. अन्तर्मन की आवाज अब लोगों को सुनाई नहीं देती या सुनकर भी अनसुना करतें हैं! बहुत सुन्दर प्रस्तुति प्रिय श्वेता

    जवाब देंहटाएं
  8. Hey Thanks for sharing this valuable information with us.
    Are you wondering for the best earphones under 1000

    जवाब देंहटाएं

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