अतिथि का मतलब मेहमान,पाहुन,अभ्यागत है।
एक ऐसा मेहमान जिसके आने की तिथि निश्चित न हो।
पुरातन काल से भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपरा के अंतर्गत अतिथि सत्कार श्रेष्ठ व्यवहार माना गया है।
बदलते समय की धारा में अनेक विकृतियों और अपभ्रंश के फलस्वरूप अतिथि स्वागत महज औपचारिकता में सिमट गयी है।
आज हमक़दम के विषय "अतिथि " पर आप माननीय रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ने के पूर्व मेरी पसंद की दो रचनाएँ.पढ़ते हैं-
★
राम विलास शर्मा
अतिथि से मेरा मतलब उन लोगों से नहीं है। मेरा मतलब उन लोगों से है जो 'तिथि' की बात दूर, 'घड़ी', 'पल', 'घंटा', 'पहर' का भी ध्यान न रखे हुए एकदम अयाचित आ धमकते हैं। इन सभी शब्दों में 'अ' लगाने से इनका नामकरण हो सकता है, लेकिन जब तक 'अच्छी हिंदी' के लेखक इस ओर अपना उत्तरदायित्व नहीं निबाहते, तब तक मैं उन्हें अतिथि ही कहता हूँ और आपसे प्रार्थना करता हूँ कि शब्द पर न जाकर आप मेरा मतलब समझ लें।
★★★
आस्वादन कीजिए महदेवी वर्मा जी
की एक रचना
अतिथि
बनबाला के गीतों सा
निर्जन में बिखरा है मधुमास
इन कुंजों में खोज रहा है
सूना कोना मन्द बतास
नीरव नभ के नयनों पर
हिलतीं हैं रजनी की अलकें,
जाने किसका पंथ देखतीं
बिछ्कर फूलों की पलकें।
मधुर चाँदनी धो जाती है
खाली कलियों के प्याले
बिखरे से हैं तार आज
मेरी वीणा के मतवाले;
पहली सी झंकार नहीं है
और नहीं वह मादक राग,
अतिथि! किन्तु सुनते जाओ
टूटे तारों का करुण विहाग।
★★★★
चलिए अब आप सभी अद्भुत रचनाकारों की
प्रतिभासंपन्न लेखनी से उद्धृत रचनाएँ पढ़ते हैं-
★★
सर्वप्रथम
उलूक के पन्नों से
आदरणीय सुशील सर
माना की
अतिथि का
सत्कार करना
हमारा धर्म है
पर उसे भी
क्या नहीं
करना चाहिये
कुछ कर्म है
★★★★★
आदरणीया कुसुम जी
मन हुवा मकरंद आज
हवा सौरभ ले गई चोर
नव अंकुर लगे चटकने
धरा का खिला हर पोर।
द्वारे आया कौन अतिथि
मन में हर्ष हिलोल
ऐसे बांध ले गया मन
स्नेह बाटों में तो
★★★★★
आदरणीया सुप्रिया रानू जी
सच तो बस इतना है कि
घर मेरा है फिर भी हर पल
इस घर मे मैं खुद को अतिथि ही नज़र आऊं...
ज़माना बढ़ा है आगे चीजें बदल भी गयी हैं,
पर सूक्ष्मता से देखिए
अभी भी कितने घरों की बहुएं
उस घर मे अतिथि ही हैं...
★★★★★
आदरणीया आशा सक्सेना जी
अपने ही घर में
अतिथि हो कर रह गए हम
साथ रहेंगे साथ ही चलेंगे
किया कभी वादा था
पर झूटा निकला
समय के साथ चल न सके
आधुनिकता की दोड़ में
बहुत पिछड़ गए हम
अक्सर यही सुनने को मिलता
सोच बहुत पुरानी हमारी
यदि साथ समय के
न चल पाए
लोग क्या कहेंगे ?
★★★★★
आदरणीया अनुराधा जी
अतिथि देवो भव
यादों का बड़ा खजाना था
हर दिन होता उत्सव सा
रातें होती उजियारी सी
खट्टी-मीठी शरारतों के बीच
कब वक़्त निकलता बातों में
धीरे-धीरे वक्त के आगे
हर चीज बदलते देखी है
★★★★★
आदरणीय अनिता जी
तेरी यादों का धुँआ, मेरी पहचान बन गई ,
तेरी यादों का धुँआ, मेरी पहचान बन गई ,
तरसती है निगाहें, ऐसे मेहमान बन गये,
समेट ली सभी हसरतें, ऐसे मेहमान बन गये,
★★★★★
आदरणीय अभिलाषा जी
अतिथि की मान-मनुहार में
रहते थे हाथ बांधे खड़े
वक्त ने बदली जो करवट
संस्कृति धूमिल हुई
अतिथि देवो भव
परंपरा नाम की हुई
अतिथि से हट गया
'अ'रह गई बस तिथि
★★★★★
आदरणीया रेणु जी की क़लम से
छलके खुशियों के पैमाने -
गूंजे मंगल - गीत सुहाने ,
आज ना पड़ते पांव धरा पे -
भूल गये सब दर्द पुराने ;
खिला है कोना -कोना घर का
पतझड़ बन गये फागुन मेरे !!
★★★★
रेणु जी की क़लम से
एक संस्मरण
हमें उनका रात का भोजन बैठक में ही पंहुचने के लिए कहा |भोजन करवाने के बाद पिताजी ने बाबा को आराम से सो जाने के लिए कहा | उन्होंने बाबा की शालों का गट्ठर कमरे में बनी अलमारी में रख दिया | पिताजी ने देखा बाबा रात को आराम से सो नही पा रहे हैं और लिहाज़वश कुछ कह भी नही पा रहे | पिताजी उनकी आशंका समझ गये और उन्होंने बाबा का गट्ठर उनके पास उनकी खाट पर रख दिया जिसके बाद ही वे चैन की नींद सो पाए ★★★★★
चलते-चलते आदरणीय शशि जी की
भावपूर्ण लेखनी से
ठहर जाओ सुनो मेहमान हूँ मैं चंद रातोंं का
अंततः अपने ही घर में अतिथि जैसा रहना , अपने मन से कुछ भी न कर पाने की इस असहनीय वेदना को मैं हाईस्कूल की परीक्षा देते ही और नहीं सह सका , तो अकेले ही कोलकाता बाबा के पास ट्रेन पकड़ निकल पड़ा यह सोच कर कि मैं अब अपने घर जा रहा हूँ, मौसी जी ने तो यही कहा था न..। पर अफसोस अकेलेपन का दर्द लिये बाबा भी राह भटक चुके थें ।
★★★★★
आप सभी की रचनाओं से अलंकृत आज का हमक़दम कैसा लगा?
कृपया अपने बहुमूल्य सुझाव अवश्य प्रेषित करिए।
हमक़दम का अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले।
आज के लिए इतना ही
आज्ञा दीजिएगा।
-श्वेता सिन्हा
श्रम को नमन..
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात...
सादर...
जी श्वेता जी आप ने अपने ब्लॉग पांच लिंकों का आनंद पर मेरे विचारों को सदैव ही स्थान दे, मेरा उत्साहवर्धन किया है, मैं इसके लिये हृदय से आपका आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों ने अतिथि पर कुछ विशेष तरह की बातें लिखी हैं और रेणु दी संस्मरण भी पढ़ने को मिला। अतः सभी को इस पथिक का प्रणाम।
शुभ प्रभात प्रिय सखी श्वेता, हम क़दम की बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, प्रिय सखी आप ने हमेंशा हम क़दम में मुझे स्थान दिया,आप का सह्रदय आभार, सखी आप से निवेदन मेरी इस रचना को कृप्या आप सुव्यस्थित करें..... आप की आभरी अनिता,
जवाब देंहटाएंसादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंअतिथि अंक की भुमिका संयोजित और आकर्षक है दो आपकी पसंद, महादेवी जी तो असाधारण है ही व्यंग भी बहुत बहुत अच्छा लगा और सालों पहले एक कवि सम्मेलन में पढ़ी शरद जोशी जी की एक व्यंग रचना याद आ गई उनका पढ़ने का तरीका भी लाजवाब था।
जवाब देंहटाएंभुमिका पूर्ण जानकारी और संवेदनाएं प्रेसित करती हुई।
सभी रचनाकारों की बहुमूल्य रचनाओं के बीच मेरी एक साधारण सी रचना को सामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
सभी रचनाकारों को बधाई प्रिय रेनू बहन के संस्मरण ने दिल छू लिया।
हार्दिक स्नेह भरा आभार प्रिय कुसुम बहन |
हटाएंसुन्दर हलचल बधाई पैंंतालीसवें कदम के लिये। आभार श्वेताजी 'उलूक' के अतिथि को हमकदम के इस कदम में शामिल करने के लिये।
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात.....सुंदर संकलन.....आभार सभी रचनाकारों जिनकी रचनाएं आज शामिल हुई........
जवाब देंहटाएंअ तिथि कब जाओगे... फ़िल्म मजेदार थी उससे भी मजेदार बात थी
जवाब देंहटाएं"मुझे कल सुबह बैंगलोर से पटना आना था और रात में फ़िल्म देखने गए थे
बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण
बहुत सुंदर पठनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंशरद की गुनगुनी धूप सी थोड़ी गर्मी लिए शुभ दोपहर विलंब से पहुंची हूँ, पर हलचल के आंगन में आके मन भावों में तर हो जाता है ,सुंदर संकलन अद्भुत लेखनी की छटा.. मेरी रचना को एक कोना देने हेतु सादर आभार..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर संयोयन
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति के साथ एक से बढ कर एक रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका आभार श्वेता जी
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता - हमारी संस्कृति में अतिथियों को सर्वोपरी स्थान दिया गया है | भले ही समय अविश्वास और असुरक्षा भरा है पर अथिति देवो भाव हमारी संस्कृति है और रहेगी | सभी रचनाएँ बहुत ही प्यारी हैं | सभी सहयोगियों को सादर . सस्नेह शुभकामनायें | मेरी रचनाओं को स्थान मिला उसके लिए पञ्च लिंकों की आभारी हूँ | आपकी लिखी भूमिका सदैव ही सराहनीय होती है | मेरा प्यार और आभार |
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ रचनाएं, सुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति करण अतिथियों से सजाँ शानदार लिनको का संकलन...
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