सादर नमस्कार
शाम ढलते ही
गली,मुहल्ला,चौबारा,झोपड़ी, फ्लैटों,घरों
पर सजे रंग बिरंगे बिजली
की झालरों की आभा किसी
परीलोक का आभास देने
लगे हैं। दिवाली की साफ-सफाई और
सजावट से हर घर मुस्कुरा रहा है।
बदलते दौर में जब घर के स्त्री-पुरुष दोनों ही
कामकाजी है तो समयाभाव होना स्वाभाविक है।
गृहणियाँ भी
सरदर्द लेना नहीं चाहती हैं ज्यादा।अब
कौन मिट्टी के दीये को भिगोकर , सुखाकर,
बाती बनाकर तेल भर कर जलाये और एक-एक दीया की बाती बार-बार ऊसकाये, तेल चेक करते रहे..
इतना झंझट कौन करे? फिर अड़ोसी-पड़ोसी का घर
चाइनीज़ बल्ब से झलमला रहा है,चकाचक है
तो हम भी
किसी से कम थोड़ी हैं।
रेडीमेड का ज़माना है आराम से बिजली की सबसे
खूबसूरत झालर खरीदकर लटका दो बालकनी में,
छतों की मुंडेर से और लाईट ऑन कर
दो बस हो गयी दिवाली।
पर ये सब तो बाहरी साज-सज्जा हुई न पूजाघर
में तो आज भी मिट्टी के दीपक को जलाना
पवित्र माना जाता है और पारंपरिक
दीये ही जलाये जाते हैं।
इसी प्रकार हम तन के लिए कितने ही प्रकार के कृत्रिम
साज-सज्जा का प्रयोग कर लें पर अपने अंतर्मन को
शुद्ध और पवित्र प्रकाश से आलोकित करें जिसमें
सारी कलुषिता और अंधकार लोप जाये।
यही दीपावली का पवित्र संदेश है।
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चलिये आज की रचनाओं के संसार में-
★
आदरणीय रवींद्र जी
माँ
शब्द
क़लम
रचना है
कैनवास है
सनी है रंग में
कूची चित्रकार की।
★
आदरणीय जफ़र जी
बैठ के सुबह शाम को मैं लिखता रहा
जब जब तुमको देखा सोचा किया ,
एक नज़्म तेरे सलाम को मैं लिखता रहा ...
हाले दिल तो कुछ तुमसे कह ना सका ,
ख़त में अपनी जुबान को मैं लिखता रहा ...
★
आदरणीय नीलांश जी
मफहूम मोहब्बत का ना जान सका ये दिल
सुकून-ए-दिल हो मयस्सर, वो मुरब्बत देना
ये पाबन्द नहीं बल्कि समुंदर से गहरा है
डूब जाऊं सदा के लिए ,ऐसी हसरत देना
★
आदरणीया मुदिता जी
आँखों में चंचलता गहरी
होंठों पर मुस्कान सजीली
भीगी कलियों सी कोमलता
और चाल बड़ी गर्वीली
साथ सजन का पा कर मैं
सतरंगी सपने बुनती हूँ
कभी किशोरी,कभी यौवना
कभी प्रौढ़ा सी मैं दिखती हूँ...
★
आदरणीय आनंद जी
सच के नाके पर जिनकी तैनाती थी
वो ले दे कर काम बनाने निकल पड़े
जिनको नाम कमाने की कुछ जल्दी थी
लेकर झूठ, फ़रेब, बहाने, निकल पड़े
कई पीढ़ियों से जो हमको लूट रहे
वो भी मुल्क़ मुल्क़ चिल्लाने निकल पड़े
★
और चलते-चलते पढ़िए शशि जी की लेखनी से
मैं तो वेदनाओं और सम्वेदनाओं की नगरी का व्याकुल पथिक हूँ और यह सम्वेदना किसके पास है? उन राजनेताओं के पास जो कि वादाखिलाफी में हीरो नंबर वन हैं अथवा सलीम भाई की तरह की कि बीमार किसी अपरिचित
रिक्शेवाले के लिये दो वक्त की रोटी की व्यवस्था अपने घर से कर रहे हैं। ऐसे सादगीपसंद राजनेताओं की मीडिया भी कहाँ खोज खबर लेती है।
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हमक़दम के विषय के लिए
आज का यह अंक
आप सभी को कैसा लगा?
आपसभी की बहुमूल्य प्रतिक्रिया
की प्रतीक्षा रहेगी।
कल आ रही है आदरणीय विभा दी
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंअप्रतिम प्रस्तुति...
सादर....
प्रातःका सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाये स्वेता जी,
त्योहारों के मौसम में भी साहित्य की साधना में लगे लोगो को प्रणाम,आभार।
सही कहा आपने अपने मन को सच के प्रकाश से उज्वलित करना आवश्यक हैं।
शुभ प्रभात बहुत बढ़िया संकलन वर्तमान समय की
जवाब देंहटाएंस्थितियों पर सुंदर प्रस्तुति सहृदय आभार सखी श्वेता
बहुत बढ़िया अंक सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस पथिक के विचारों को स्थान देने और सुंदर अंक के लिये हृदय से पुनः आपका आभार श्वेता जी और सभी रचनाकारों को भी ...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंभारत से दूर..
आभास अपने देश का
अच्छा लगा ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
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