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रविवार, 25 फ़रवरी 2024

4047 ..जज्बातों से खेलना, है फ़ितरत इंसान की

 सादर अभिवादन

बीत गया महीना माघ का
आज से होली की हुड़दंग शुरु
पूरे माह भर
शरीर में फगुनाई भरी रहती है

इसी महीने में कुछ लोग गंदगी खाते हैे
और गंदगी को पीते भी हैं..साथ ही
अपने मन में गंदी सोच भी भर लेते हैं
आज की रचनाएँ



जज्बातों से खेलना,
है फ़ितरत इंसान की
लम्हा लम्हा दुरूह
क्या यही जीवन सार है।।




धधकती है ज्वाला अंदर ,
लेकर हौसलों का समंदर ,
हार न माने तब तक ,
कतरा कतरा खून का ,
बह न जाये पसीने में ।




सरेआम डाका व्यवहार पर इतना, क्या लिखूं,
दिनचर्या में लाजमी आधार इतना, क्या लिखूं।

इस दमघोटू परिवेश में भी दम ले रहा 'परचेत',        
है इस ग़ज़ल का दुरुह सार इतना, क्या लिखूं ।




पर देखिए ना
ये सब कहते कहते ही
मेरी आँखें भर आयी
उसकी भी जिसने बिटिया खोयी
जिसने अम्मा को याद किया
जिसका प्यार ना मिला
और वो जो एक अदद
घर से मकान और फिर खंडहर हो गये




तमाम शक्लें, जो मुद्दतों हम-सफ़र रहीं
कब पोटली से गिरीं ... जान नहीं पाया
छोटी-छोटी कितनी ही बे-तरतीब चीजों का खज़ाना
क्यों और किस मोड़ पर बिखरा
समझना मुश्किल है आज



उन तालाबों को उम्मीद देना
जिन्होंने नदियों का भ्रम रखा है
पेड़ के आख़िरी पत्तों को 
जिन्हें उम्मीद है पतझर बीत जाने की


कल फिर
सादर

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात।
    सुंदर, सारगर्भित भूमिका के साथ पठनीय अंक सजाया है आपने।
    सभी रचनाकारों को बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय मेम,
    मेरी लिखी रचना "जब आग लगी हो सीने में" को इस प्रतिष्ठित मंच में स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार .
    सभी संकलित रचनाएँ बहुत ही उम्दा है . सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनाएं . सादर ! !

    जवाब देंहटाएं

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