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गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

4044...जमा होने नहीं पाये , तुम्हारी आँख का पानी...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय सतीश सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की चुनिंदा रचनाएँ-

गीत मेरा

जब यह चुना गया

मेरे मन की बात पूरी  हुई

सब जगह से प्रशस्ति पत्र मिले

मेरे मन को संतोष हुआ।

अगर बहता है बहने दो, तुम्हारी आँख का पानी-सतीश सक्सेना

जमा होने नहीं पाये , तुम्हारी आँख का पानी !

यही ठंडक बहुत देगा, तुम्हारी आँख का पानी!

हमेशा रोकने में ही , लगायी  शक्ति जीवन में !

न जाने कितनी यादों को समेटे आँख का पानी!

तराई और पहाड़ के मध्य--

तराई और पहाड़ के मध्य है कहीं
इक मृत घाटियों का संसार।
अभयारण्य का बोर्ड है
अपनी जगह, लोग
देखते हैं नंगी
आँखों से
अँधेरे
में
रोमांचक दृश्यावली,

गीत

हैं बहारें खिली मधुबन मेंमौसम आज तड़पा रहा

गा रही हवाएं गीत मधुर, दिलअपना बस तुम्हारा रहा

बादल अँगना घिर घिर आया, छमाछम मींह बरसाया

निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया

पर चूहे से भी डरती है..

खुशियाँ मिले तमाम उसको

घर परिवार मे भी खुशहाली हो

सपने उसके हो सब पूरे

वो परिवार की अंशुमाली हो ||

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


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