सादर अभिवादन..
भाई विरम सिंह आज परीक्षा देने वाले हैं
ईश्वर से उनकी सफलता हेतु प्रार्थना करती हूँ
फिलहाल आज मेरी पसंद...
काली घनेरी बूँद से पूछो क्यों रो दिए
इंसान हर तरफ मिला इंसान खो दिए ।
मंदिर हो या मस्जिद कहीं कलीसा सभी जगह
वो तू ही था हर उस जगह, जिसको नज़र किये ।
इस जहां में मुझ सा दीवाना नहीं...
खोजने से भी कोई मिलता नहीं...!
नींद कब से दूर आँखों से मेरी...
एक भी तो ख्वाब अब सजता नहीं !
बेहतर है कि परिवार में रहते हुए जान बूझकर बेईमानी न करें यह आवश्यक है कि परिवार के लोगों का महत्व आप समय रहते समझ भी लें अन्यथा आपके कमजोर समय में यह लोग बेमन ही साथ देंगे और उस समय आप कहेंगे कि हमने इतना किया फिर भी आज हमारी जरूरत में यह लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं !
जुदा करना, इतनी
मुहोब्बत
ठीक नहीं, कि ज़हर भी लगे अमृत - -
कहीं लग न जाए संगीन जुर्म
तुम पे, यूँ सरे महफ़िल
बेनक़ाब हो, किसी
को अपना ख़ुदा
कहना।
मुरझा से गए अल्फ़ाज मेरे
सुख गई मन की तलहटी
पैठ इनमें ढूँढूँ तो क्या ढूँढूँ
कुछ आता नहीं दिमाग में
आखिर लिखूँ तो क्या लिखूँ ,
आज की शीर्षक रचना....
नेग....ऋता शेखर मधु
सुषमा देवी की आँखें भर आयीं।
मीडिया वाले ख़ुशी ख़ुशी चले गए।
"बहु, तुमने आज जो सेवइयां बनाई है, लाकर देना जरा।"
कमरे की और जाती बहु ठिठक गई।
सुषमा जी के पति ने चुहल किया,"तुम्हारी जात भ्रष्ट हो जायेगी।"
तब तक बहु कटोरा लिए आ चुकी थी और चुपचाप खड़ी थी।
"दो बेटी", सुषमा जी ने हाथ बढ़ाया।
"मम्मी जी, पहले नेग।"
ठहाकों की गर्मी से जाति रुपी बर्फ की परत पिघल रही थी।
........
एक कदम और
नए वर्ष की ओर
आज्ञा दें यशोदा को
लेख पसंद करने के लिए आपका आभार यशोदा जी , मंगलकामनाएं आपको !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यशोदा दीदी
जवाब देंहटाएंआभार
Thanks to you to place my thoughts at this page...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
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