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गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

4335...आसमान में उड़ते खग कुल...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया पल्लवी गोयल जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

आइए पढ़ते हैं पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

अब छोड़ो भी

सुप्रीम कोर्ट की ही वकील और तमाम पति-पत्नी के मामलों को देख चुके आजाद खोखर ने बताया कि लोअर ज्यूडिशरी एक तरफा काम करती है. कई बार वह सिर्फ महिलाओं के हक में ही बात करती है. चाहे उन्हें तमाम बार यह दिशा निर्देश क्यों ना मिले हों कि वो पति-पत्नी के मामलों में दोनों की सुने और सही सुनवाई करे. इसके बाद जिला स्तर तक सिर्फ एकतरफा फैसला होता है. लोअर ज्यूडिशरी पुरुषों की बातों को एक तरफ से नजरअंदाज कर देते हैं. यही वजह है कि अतुल सुभाष जैसे आत्महत्या के मामले होते रहते हैं. लोअर ज्यूडिशरी की सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट या किसी भी न्यायालय द्वारा मॉनिटरिंग होनी चाहिए, क्योंकि उस स्तर पर कहीं ना कहीं एक तरफा ही काम होता है और महिलाओं के हक में ही सारी सुनवाई होती है.

*****

मेरा घर

*****नींव का पत्थर
सुनहरे बचपन के साथ  महेश ने किशोरावस्था में प्रवेश किया।अभी तक तो सब कुछ सही था लेकिन बच्चों के बड़े हो जाने से सभी भाइयों ने समझौता किया । इस घर का साथ नहीं छोड़ेंगे लेकिन रहने के लिए अभी वह कुछ अलग इंतजाम करेंगे। सभी चाचा ताऊ के साथ महेश के पिताजी भी अलग फ्लैट में रहने के लिए आ गए। भरे- पूरे परिवार के साथ रहने के बाद पिताजी और मां दोनों को ही यह अकेलापन खलता जरूर था।*****माँमाँ*****ज्ञान 'गीता' का
हाल ही में मेरी एक ताज़ा ग़ज़ल कोलकता से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार 'सदीनामा' में छपी।आप भी उसका आनंद लीजिए।मेरे साथ ही आदरणीय गिरीश अश्क साहब की भी उम्दा ग़ज़ल छपी है। मैं उनको भी एक अच्छी ग़ज़ल के लिए तहे दिल से मुबारकबाद देता हूं।*****फिर मिलेंगे। रवीन्द्र सिंह यादव 

2 टिप्‍पणियां:

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