वे रंग बिरंगे रवि की
किरणों से थे बन जाते
वे कभी प्रकृति को विलसित
नीली साड़ियां पिन्हाते।।
वे पवन तुरंगम पर चढ़
थे दूनी–दौड़ लगाते
वे कभी धूप छाया के
थे छविमय–दृश्य दिखाते।।
हरिऔध
प्रकृति की बदलती तस्वीरे के साथ आज नजर डालिए..
कोई न शृंगार हुआ,
बाग़-बाग़ में बिन फूलों के
अबकी बरस मधुमास लगा,.
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हर जगह नहीं हो सकते हम
हो सकती है एक शुभेच्छा
एक सद्भावना सारे विश्व के लिए
पहुँच सकते हैं जहाँ तक कदम
जाना ही होगा
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मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार
आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब बातों को जानते भी हैं,
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देखते हैं बिगबॉस की कहानियाँ बच्चे टीवी पर / शायद घरों में अब वे दादी-नानियाँ नहीं होती
जिंदगी में हमारी अगर दुशवारियाँ नहीं होती
हमारे हौसलों पर लोगों को हैरानियाँ नहीं होती
चाहता तो वह मुझे दिल में भी रख सकता था
मुनासिब हरेक को चार दीवारियाँ नहीं होती
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अकेले चलते-चलते
अपनी परछाई से
बातें करते-करते
अनंत युगों से
करता आ रहा हूं पार
एक समय चक्र से..
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पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
हर जगह नहीं हो सकते हम
जवाब देंहटाएंहो सकती है एक शुभेच्छा
सुंदर अंक
वंदन
सुप्रभात !हरिऔध जी की सुंदर कविता से सजी भूमिका और पठनीय रचनाओं के लिंक्स, बहुत बहुत आभार पम्मी जी!
जवाब देंहटाएंरचना को सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद 🙏
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