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सोमवार, 2 सितंबर 2024

4234 ,नारायण-नारायण बोलो बूढ़े मन

नमस्कार


उत्सव मात्र छः दिन दूर
हरतालिका तीज
अब देखिए रचनाएँ ...




थोड़ा हो चैतन्य जागरूक बनो
गुनो धुनो कुछ नया नवेला सुनों
मध्यमार्ग पथ के उपवन की
छाँहें झरती ठंढी-ठंढी चुनों
छोड़ो माया और मोंहों के कानन




इंसान ने उससे नज़रें फेर ली हैं
वह है माता पिता का प्यार
माता पिता का आशीर्वाद
माता पिता का सान्निध्य !
कब समझेगा यह मूरख इंसान
यह वह अनमोल वरदान है


अभी कौन सा कहां कुछ फिसलना था
बारिश उस पहाड़ में थी
और दूर समुंदर ही तो उफान में था
आंखें कमजोर नहीं हुई थी
देखने का जुनून ही तो खत्म हुआ था
सपना तो अपनी ही उड़ान में था




दिल अगर उदास हो देख लो आईना
प्रीत का चंद्रमा तुम्हीं ने झलका दिया

प्रेम की बयार भी जब अभी बही न थी
ह्रदय में गुलाब इक तुम्हीं ने उगा दिया




कोकाक का अरलंस्कॉय आना शादी के बाद हुआ। वहां पर उन्होंने देखा कि 
महिलाएं घर और खेतों में बराबरी से काम करती हैं। उन्हें लगा कि यह ठीक नहीं हैं, 
इन महिलाओं की बात सुनी जानी चाहिए। वो काफी समय से इस पर काम कर थी। 
थियेटर ग्रुप इसी का नतीजा है। गांव में कोई हॉल या सेट तो था नहीं, इसलिए 
कोकाक ने घर के गार्डन में ही रिहर्सल शुरू करवा दीं। धीरे-धीरे इस ग्रुप की चर्चा 
पूरे तुर्की में फैल गई। अब लोग इन दादी-नानियों को स्थानीय स्तर पर 
नाटक मंचन के लिए बुलाने लगे हैं। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो खूब शेयर हो रहे हैं।


आज बस
सादर वंदन

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर पठनीय अंक। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
  2. रचना की पंक्ति को शीर्ष पर सजाने के लिए बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय। सादर अभिवादन।

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्कृष्ट रचनाओं के लिंक्स से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. पठनीय रचनाओं की खबर देती अभिनव प्रस्तुति, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को भी आपने स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आदरणीय दिग्विजय जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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