सादर नमस्कार
जीवन की आपाधापी, राजनीति की उठा-पटक,समाजिक मुद्दों
पर जरुरी-गैर जरूरी बहस, दैनिक जरुरतों की भाग-दौड़ के
बीच आपने महसूस किया क्या मौसम के बदलते मिज़ाज को?
अक्टूबर की दस्तक के साथ सुबह शाम हवाओं की
मीठी गुनगुनाहट, बागों मेंं नारंगी,पीले गेंदा,
चंद्रमालिका की फूटती कलियों की महक से बौराये, मंडराते
भँवरेंं और तितलियाँँ, चिड़ियों का मीठा कलरव,
कास के धवल फूलों से आच्छादित नदी,नहर,खाली
मैदान। मुस्कुराती प्रकृति जो हौले से कह रही है फिजाँ बदलने वाली है पहाड़ों का मौसम वादियों में जल्दी ही उतर आयेगा। कभी सुबह की चाय के साथ
आनंद लीजिए प्रकृति का जीवन में एक नयी ऊर्जा महसूस करेंगे।
एक गीत की दो पंक्तियाँ ज़रा गुनगुनाकर सोचिये
आगे भी जाने न तू,पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस यही एक पल है
★★★
आदरणीया नूपुरं जी की कृति
इस पथ पर चलने वाला
क्लांत पथिक क्या,
मेरी तान सुन कर
कुछ पल चैन पाएगा ?
यदि ऐसा हो पाएगा,
उसकी थकान दूर कर
मेरा मन सुख पाएगा ।
★★★★★
आदरणीय रवींद्र जी की सार्थक अभिव्यक्ति
ज़रूरी है-
दिमाग़ी कचरा साफ़ हो
साफ़ नियत-नीति की बात हो
ख़ज़ाने की सफ़ाई में जुटे
लुटेरों पर लग़ाम हो
सीवर-सफ़ाई का
आधुनिक इंतज़ाम हो
दिखेगा तब
स्वच्छ भारत !
समृद्ध भारत !!
★★★★★
आदरणीय पुरुषोत्तम जी की रचना
ये निशा प्रहर भई दुष्कर,
न माने ये बतियां!
संग रैन चले, न ये निशा ढ़ले,
दिशा-दिशा भटके,
न ही नैनो में नींद पले,
उलझाए कर के उलझी बतियाँ,
निशाचर सी दो अखियाँ.....
★★★★★★
आदरणीय लोकेश जी की शानदार ग़ज़ल
दिलों के दरम्यां रह जाये न दूरी कोई
चराग़ दिल में कुर्बतों का जले प्यार करें
तमाम नफ़रतें मिट जाये दिलों से अपने
तंग एहसास कोई जब भी खले प्यार करें
★★★★★
आदरणीय शशि जी का जीवन-दर्शन और आत्ममंथन
से प्रेरित भावात्मक अभिव्यक्ति
सच कहूँ, तो मेरा अब तक का अपना चिन्तन जो रहा है, वह यह है कि पुरुष व्यर्थ में श्रेष्ठ होने के दर्प में जी रहा है ,क्यों कि वह नारी ही जो अपने प्रेम, समर्पण और सानिध्य से उसे सम्पूर्णता देती है। यहाँ उसका सहज कर्म योग है। इस पथ पर चल कर जीवन की राह में भ्रमित होने की गुंजाइश कम होती है। नहीं तो बिन स्त्री के करते रहें न हठयोग, जीवन इसे साधने में ही निकल जाएगा, यदि कहीं पांव डगमगाया तो सारी साधना, सारा स्वाभिमान, सारा सम्मान क्षण भर में धूल में मिल जाएगा। इससे भी कहीं अधिक एकाकीपन का बड़ा रोग है..।
★★★★★
और.चलते-चलते उलूक के पन्नों से आदरणीय सुशील सर जी की सारगर्भित अभिव्यक्ति
लाईन
में लगे हुऐ
अपनी तरह के
ढपोर शंखों
की सेना से
बिगुल बजवाइये
★★★★★
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से हमें आपके बहुमूल्य सुझाव
जरुर दीजिए।
हमक़दम के विषय में
आज के लिए इतना ही
कल आ रही हैं विभा दी
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ
वाह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चयन
साधुवाद
सादर
धारदार प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाएं
बेहतरीन प्रस्तुति श्वेता जी
जवाब देंहटाएंसादर
बहुतं शानदार प्रस्तुति स्वेता जी
जवाब देंहटाएंजागते रहेंगे और कितनी रात हम
खास तौर से अच्छा लगा।
धन्यवाद
मनभावन भुमिका के साथ शानदार प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह,वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । पहली पंक्ति से ही पता लग जाता है कि आज की प्रस्तुति श्वेता द्वारा की गई है😊
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशरद ऋतु की दस्तक सुनाई दी आपकी भूमिका में श्वेताजी. गुलाबी ठण्ड, खिलते फूल, भीनी-भीनी खुशबू सब साकार हो उठे.मन तरो-ताज़ा हो गया. मौसम का राग छेड़ दिया आपने. अनेकानेक धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाओं का रंग अलग-अलग पर गुलदस्ता खूब बना.बधाई सभी लिखने वालों को.
श्वेताजी वर्तनी सही कर दीजियेगा ...नूपुरं ....न में बड़ी मात्रा है.
जवाब देंहटाएंजी,नूपुरं जी माफी चाहेंगे अभी ठीक कर देते हैं।
हटाएंसादर।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुत, सभी रचनाकारों को नमन
जवाब देंहटाएंइस पथिक के विचारों को स्थान देने के लिये श्वेता जी हृदय से आपका आभार।
बहुत सुंंदर प्रस्तुति श्वेता जी.शानदार लिंकों का चयन..
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को नमन
मेरी रचना को स्थान देने के लिये श्वेता जी का हृदय से आभार।
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति। आभार श्वेता जी 'उलूक' को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंशीतल मलयज शारदीय हवाओं की 'हलचल'
जवाब देंहटाएंमीठी गुनगुनाहट के साथ.... श्वेताजी की संकलन सुरभि!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बेहतरीन रचनाएं सभी चयनित रचनाकारों को बधाई आभार श्वेता जी
जवाब देंहटाएंऋतु परिवर्तन पर सारगर्भित चर्चा प्रस्तुत करता आज का बेहतरीन अंक.
जवाब देंहटाएंआदरणीया श्वेता जी को बधाई.
इस अंक में चयनित रचनाकारों को बधाई एवम् शुभकामनाएं.
मेरी रचना को शामिल करने के लिये आभार.
लाजवाब प्रस्तुतिकरण...उम्दा लिंक संकलन....
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