जिनसे चुभन बढती है
अकेलेपन का अँधेरा
फैल जाता है
जीवन का खालीपन
और गहराता है
लोग सांत्वना के
दो बोल बोलते हैं
मुखौटे
अन्दर का राम जला दिया,
कैसे उल्टे पड़े दशहरे हैं |
अपनी ही आवाज़ सुन ना पाएं,
पूर्ण रूप से बहरे हैं |
मुखौटा
रंगे शराब से मेरी नियत बदल गई
वाईज की बात रह गई साकी की चल गई
तैयार थे नमाज पे हम सुन के जिक्रे-हूर,
जलवा बुतों का देख के नियत बदल गई
मुखौटा
कुछ ऐसे भी चेहरे दिखते है
जो प्रेम-अनुराग में भी ज़हर भर देते हैं
यहाँ सब अपना असली रूप छिपाते हैं
मन ही मन में हैं गारियाँ देतें
पर ऊपर से मुस्कुराते हैं
रखते दिल के अंदर खोट ही खोट
और सिर्फ झूठा प्यार जताते हैं
मुखौटा
कलाकार छोटे बड़े
सब राम की सेना में
नाम लिखाते हैं
और तुमने
अपना नाम लिखाया
रावण की सेना में।
फिर मिलेंगे...
आदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
बढ़िया प्रस्तुति
आभार
सादर
बेहद सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसरल और सहज मानव जीवन पर एक बदनुमा दाग है, वह हर मुखौटा, जो हम किसी भी कारण से लगाये फिरते हैं।
आभार सभी रचनाकारों का
रेलवे ट्रैक के समीप रावण का पुतल दहन देखें न कितना भारी पड़ा । कितनी जानें चली गयींं, इस पर्व पर..। हम स्वयं सही मार्ग पर नहीं आ पा रहे हैंं और दूसरों को बुरा बता उसका उपहास कर रहे हैं। यह रेल दुर्घटना यह संदेश भी दे गयी..।
बहुत सुन्दर सूत्र सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका रचना चयन एवं लिंक करने हेतु.वंदन आपका,खूबसूरत पहल
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन.....
जवाब देंहटाएंसुप्रभात दी,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन सबसे अलग प्रस्तुति है।
सभी रचनाएँ ऐक से बढ़कर एक है..आनंद.आ.गया पढ़कर।
क्षमा चाहते है रचनाएँ नहीं पढ़े थे इसलिए समय पर.प्रतिक्रिया नहीं लिख पाये।
बिल्कुल अलग अंदाज आपका विभा दी बहुत ही गजब की खोजी दृष्टि शानदार लिंकों का चयन ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।