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बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

222.....पकड़ ले आइना हाथों में बस उनको दिखाता चल

सादर अभिवादन...

रश्मि दीदी की कविता पढ़ रही थी 
मैं ब्लॉग बुलेटिन में
.......
अंश कुछ इस तरह है.....
शराब में खो गया 
सुख चैन घर का 
बचपन न जाने कहाँ 
किस कोने खो गया 
रोता था घर 
सोचता था मन 
क्या यही होता है घर !
.....
सच ही तो लिखा है दीदी ने...

चलिए चलें...

लगा के बेटियों को, गले से है हँसाया जाता 
न इसके के बदले, कभी भी है रुलाया जाता 
बेटो में देखता बाप, अपने है बचपन की छाया 
मिलता बुढ़ापे में सुकून, पा कर है इनका साया

मन को भेदे, भय से गूथे, विश्वासों का जाल,
अंधियारे में मुझे सताए, मेरा ही कंकाल।

तन सूखा, मन डूबा है, तू देख ले मेरा हाल,
रोक ले शब्दों कोड़ों को, खिंचने लगी है खाल।

दो सौ इक्यावन लगे, फोन बुकिंग आरम्भ।
दिखा करोड़ों का यहाँ, बेमतलब का दम्भ। 


बेमतलब का दम्भ, दर्जनों बुक करवाये।
नोचे बिल्ली खम्भ, फोन आये ना आये।

मुफ्तखोर उस्ताद, दूर रहता है कोसों।
कौड़ी करे न खर्च, कहाँ इक्यावन दो सौ।।


काम क्रोध मद लोभ सब, हैं जी के जंजाल
इनके चंगुल जो फँसा, पड़ा काल के गाल !

परमारथ की राह का, मन्त्र मानिये एक
दुर्व्यसनों का त्याग कर, रखें इरादे नेक ! 


शिक्षा हमें समझ देती है, संवेदना देती है, 
सवाल देती है, सवालों से जूझने की ताकत देती है, 
रास्तों को ढूंढने की ओर अग्रसर करती है। 
शिक्षा हमें तर्कशील बनाती है, विवेकशील बनाती है और 
खुद अपना नजरिया बनाने के लिए हमारे जेहन को तैयार करती है। 


ये रही आज की शीर्षक रचना का अंश

हज़ारों साज़िशें कम हैं सियासत की अदावत की 
हर इक चेहरे के ऊपर से नकाबों को हटाता चल 

कभी सच को हरा पाई हैं क्या शैतान की चालें? 
पकड़ ले आइना हाथों में बस उनको दिखाता चल 

आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलेंगे..






9 टिप्‍पणियां:

  1. आज की सभी रचनाएं अनुपम ! बातों की पोटली को सम्मिलित करने के लिये आपका हृदय से आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. आप के स्नेह मान-सम्मान के लिए आभार यशोदा जी ..

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्ते दीदी
    सुन्दर लिंको का संयोजन ।
    आनंद आ गया।

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया प्रयास है, मेरी पोस्ट को मान देने का बहुत-बहुत शुक्रिया यशोदा जी....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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