एक बार मैं दिग्विजय
फिर से आपके समक्ष
अपनी पसंद लेकर...
आहुति में..सुषमा वर्मा
जिन्दगी की राहें में....मुकेश कुमार सिन्हा
घर के
कुछ दरवाजे और
कुछ से थोड़ी ज्यादा खिड़कियाँ
शायद आपस में कर रहे थे संवाद !!
शायद डेट पर जाने की कवायद या फिर कोई
उच्च स्तरीय बैठक, घर की सुरक्षा पर !!
जुम्बिशें में...मुंकिर
ज्ञानेश्वर का पत्थर है, और दानेश्वर की लाठी है,
समझ की मटकी बचा के प्यारे, भाग्य नहीं तो फूटा है।
बन की छोरी ने लूटा है, बेच के कंठी साधू को,
बाती जली हुई मन इसका, गले में सूखा ठूठा है।
मेरी धरोहर में......मंजू मिश्रा
कुछ तो लोग कहेंगे
कुछ तो लोग कहेंगे ही ….
कहने दो उन्हें
जो कुछ कहते हैं
तुम उनसे…
हजार गुना बेहतर हो
ये रही प्रथम व शीर्षक रचना का अंश
अब आज्ञा दें दिग्विजय को
सादर
वाह..
जवाब देंहटाएंखुश किया
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसिवाय वफादारी के
बिल्कुल सही
आनंद आ गया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया....
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या
जवाब देंहटाएंउम्दा चयन
शुक्रिया
जवाब देंहटाएंshukriya, sabhi links sundar hai ,
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