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शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

1533 पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों की आवाज़

स्नेहिल अभिवादन
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ईश्वरचंद्र विद्या सागर का नाम तो स्मरण होगा न आपको।
26 सितंबर 1820 को जन्मे समाज सुधार की मशाल को भला कौन विस्मृत कर सकता है।

पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों की आवाज़ विद्या सागर
अपने समय की सोच से काफी आगे थे। महिलाओं की दयनीय 
स्थिति को समाज में सम्मानजनक बनाने के लिए 
उन्होंने अथक प्रयास किया।
जात-पात,
स्त्री-शिक्षा और मुख्यतः विधवाओं की तात्कालिक सामाजिक स्थिति के लिए उनका संघर्ष सदैव पूजनीय है। विधवाओं को नारकीय जीवन से मुक्ति देने का अथक प्रयास किया।
संस्कृत और अंग्रेजी के प्रकांड विद्वान जिन्होंने आधुनिक 
भारत की नींव रखी थी।
आज के समाज को भी ईश्वरचंद्र जैसे समाज सुधारक की विशेष आवश्यकता है जो स्त्रियों के प्रति खासकर बच्चियों के प्रति होते अमानवीय आचरण का विरोध करके जागरूकता पैदा करे।

★★★★★★

आइये अब आज की नियमित रचनाएँ
पढ़ते है--

★★★★

तुम्हारे काँधे की तितली

पकेगा इक दिन समय भी मेरा
बदल जाएगा ये रूप मेरा 
सतरंगी परों से मैं सज उठूँगी
हर धागा काट मैं उड़ पड़ूँगी 
हर इक बंधन फिर खुल उठेगा  
गिरहों से छूट ये मन उड़ेगा 

★★★★★★

अब तो उसके धैर्य का बांध ही टूट गया,
मेरी तरफ उँगली हिलाते हुए,
गुस्से में बोला..
मैं आपकी ही बात कर रहा हूँ मिस्टर!
दिन में आप 
रसगुल्ला नहीं खा रहे थे?
डिनर में, 
बर्फी नहीं काट रहे थे?

★★★★★★

हर मुश्किल लम्हे को हँस के जी लेना
गज़ब सी बूटी मन में तूने बोई है

शक्लो-सूरतहाड़-मासतनहर शक्ति   
धडकन तुझसेतूने साँस पिरोई है

★★★★★

पूँजीवाद का बीजारोपण राष्ट्रहित में


हम स्वतंत्र हैं !
क्या यह जनतंत्र है ?
अधीन है, 
 एक विचारधारा के, 
 कुंठा के कसैलेपन का कोहराम मचा है, 
 अंतःस्थ में, 
कुपोषित हो गये, 
 हमारे आचार-विचार,संवेदनाएँ-सरोकार, 
अमरबेल-सा गूँथा है जाल, 
हवा में नमी,पोषक तत्त्व का नित्य करते हैं, 
वे सेवन, 
   देखो ! पालनकर्ता हुए न वे हमारे, 
और मैंने फिर अपने आप से कहा !

★★★★★


हम नहीं जानते कि हमें उस से ही इश्क़ क्यूँ हुआ। हम याद करने की कोशिश करते हैं कि वक़्त की किसी इकाई में हमने उसे देखा नहीं था और हम सिर्फ़ इस तिलिस्म से बाहर जाने का रास्ता तलाश रहे थे। किसी शाम बहुत सारे चंद्रमा अपनी अलग अलग कलाओं के साथ आसमान में चमक रहे थे और हम किसी एक बिम्ब के लिए थोड़ी रोशनी का रंग चुन रहे थे। गुलाबी चाँदनी मीठी होती थी, नीली चाँदनी थोड़ी सी फीकी और कलाई पर ज़ख़्म देती थी… आसमान के हर हिस्से अलग रंग हुआ करता था। सफ़ेद उन दिनों सबसे दुर्लभ था। कई हज़ार सालों में एक बार आती थी सफ़ेद पूरे चाँद की रात। ऐसी किसी रात देखा था उसे, सफ़ेद कुर्ते में, चुप आसमान तकता हुआ। 

★★★★★★

आज का यह अंक आप सभी को.कैसा लगा?
आपकी प्रतिक्रियाओं की सदैव प्रतीक्षा रहती है।



हम-क़दम का नया विषय

कल का अंक पढ़ना न भूले कल आ रही हैं
विभा दी अपनी विशेष
प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता सिन्हा

15 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी..
    बहुत दिनों बाद नाम सुना
    ईश्वरचंद्र विद्यासागरजी का...
    उनकी सज्जनता जग प्रसिद्ध है...आभार
    अच्छी रचनाएँ..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. 19 वीं सदी के महान समाज -सुधारक एवं शिक्षाविद ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का सादर स्मरण करते हुए वैचारिक बहस शुरू करती भूमिका और एक से बढ़कर एक सुन्दर रचना का चयन बहुत अच्छा लगा श्वेता दी|
    सभी को सादर बधाई |
    मेरी रचना को हलचल पर देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई |

    आभार दी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही बेहतरीन लिंक्स एवम प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. एक महान विभूति के जन्मदिन पर नमन उनकी आकाश से ऊंचे वैचारिक कद को ।
    ईश्वर चन्द्र विद्यासागर उन्नीसवीं शताब्दी में बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक, अनुवादक, मुद्रक, प्रकाशक, उद्यमी और परोपकारी शख्सियत!! बंगाल के पुनर्जागरण के सुदृढ़ स्तम्भ ।

    बहुत सुंदर प्रस्तुति ,सभी रचनाएं पठनीय सुंदर, रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. आज के समाज को भी ईश्वरचंद्र जैसे समाज सुधारक की विशेष आवश्यकता है
    सही कहा ...,बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. महान सुधारक इश्वरचंद्र जी की स्मृति के साथ मेरी रचना को जोड़ा ... बहुत बहुत आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रभावशाली भूमिका और उम्दा लिंक्स संयोजन । बहुत सुन्दर संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  8. आज ईश्वरचंद्र विद्यासागर के जन्मदिन पर भले ही उनका नाम याद किया जाए , पर नारी उत्थान में हम राज राम मोहन राय जी को भी नहीं भूल सकते ना ...
    वैसे "तुम्हारे काँधे की तितली" से लेकर " जरा भ्रम रखना" तक जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती रचनाओं के संकलन के लिए आभार आपका ...

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रिय श्वेता , आज का ये सार्थक संकलन बहुत ही सार्थक और मधुर है | दिगम्बर जी की माँ की स्मृतियों की स्तुति करती भावपूर्ण रचना के साथ जोया जी की ' तुम्हारे काँधे की तितली , मन को गुदगुदाती रचना 'बिना चीनी की चाय और पूंजीवादी व्यवस्था को खरी खरी सुनाती अनिता जी की सार्थक रचना के साथ जरा भरम रचना जैसे भावनाओं से भरी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा | सार्थक भूमिका ने संकलन को सम्पूर्णता प्रदान की | अंधविश्वास और भ्रामक रीति - रिवाजों की गहरी नींद में सोये भारतीय समाज को झझकोरने वाले पुरोधा ईश्वरचंद्र विद्यासागर का का स्मरण बहुत भावपूर्ण रहा | वर्जनाओं में जकड़ी नारी जाति , जिसे पुरुषों के वर्चस्व भरे समाज में एक असुरक्षित मानसिकता के साथ जीवन यापन करना पड़ता था , के लिए जो उन्होंने किया उसका आज की पीढ़ी को स्मरण कराना बहुत अनिवार्य है | आज से ढेढ़ सौ साल पहले जिस व्यक्ति ने समय से बहुत आगे की सोच को बुलंद किया वो कितने असाधारण रहे होंगे इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं | , नारी जाती का गौरव लौटाने में उन्होंने जिस सोच का प्रचार प्रसार किया उसका अनुसरण खुद के जीवन में किया | उन्होंने विधवा विवाह के लिए लोगों की सोच बदलने का अहवान किया तो अपने इकलौते बेटे की शादी एक विधवा लड़की से करवाई जो उनदिनों कुरीतियों की गर्त में डूबे समाज के लिए बहुत बड़ा और अनोखा कदम था | धीरे धीरे समाज की सोच में अंतर आते - आते , आज की महिलायें जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं | अन्यथा किसी समय में एक विधवा सफ़ेद सूती वस्त्रों में लिप्त कर अपना सम्पूर्ण जीवन व्यर्थ बिता देती थी | उसे सामाजिक मंगल कार्यक्रमों से बहिष्कृत कर तिरस्कारपूर्ण व्यवहार किया जाता था | पर ईश्वरचंद्र विद्या सागर और राजा राममोहनराय जैसे समाज सुधारकों ने पिछड़े और अशिक्षित समाज को एक नयी दिशा दी | और उसे बाल विवाह और सतीप्रथा जैसी कुप्रथाओं से मुक्त कर नये चिन्तन से अवगत कराया | इस सन्दर्भ में मुझे सुबोध सिन्हा जी के ब्लॉग पर एक विचार बहुत अच्छा लगा जिसे यहाँ लिखना चाहूंगी --- कि अगर राजा राम मोहन राय ने आवाज़ नहीं उठाई होती तो हमारे- आपके घर की विधवाएँ जिन्दा चिता पर जल रही होती और समाज तथाकथित सती के आगे ढोल-मंजीरे बजा रहा होता .!!!!!!!!!!!!



    इसी तरह .. अगर ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जैसे चिंतक ना होते तो ना जाने कितनी निर्दोष विधवाएं आज भी उन्ही कुरीतियों को ढोते , रंगविहीन नारकीय जीवन जी रही होती |इसके अलावा उनके अन्य कई उल्लेखनीय कार्यों के लिए हमेशा याद रखा जाएगा | उनकी पुण्य स्मृति को कोटि नमन | सुंदर सार्थक अंक के लिए आभार | सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं
  10. कृपया लिप्त नहीं लिपट पढ़ें |

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रिय श्वेता

    बेहतरीन लिंक्स एवं प्रस्तुति ... बधाई इस शानदार प्रयास के लिए. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.

    बहुत बहुत आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए और हमेशा की तरह उत्साह बढ़ाने के लिए सच। ...बहुत हौंसला मिलता है आपके शब्दों से धन्यवाद 

    जवाब देंहटाएं
  12. A good blog always comes-up with new and exciting information and while reading I have feel that this blog is really have all those quality that qualify a blog to be a one.
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