स्नेहिल अभिवादन
भागदौड़ की ज़िंदगी में फुरसत के पलों में सामूहिक गोष्ठियों में अब चुनाव की चर्चा होने लगी । पलाश के फूलोंं के गुच्छों को देखकर मन उदास होकर सोचने लगा किसी को याद क्यों नहीं होली आ गयी है। बचपन की ढेरों यादें ज़ेहन में ताज़ा है जब महाशिवरात्रि के त्योहार से ही इस बार होली कैसे मनायेंगे उसकी चर्चा और तैयारियाँ आरंभ हो जाती थी। होलिका दहन के लिए लकडियाँ किस प्रकार इकट्ठी करनी है उसकी कानाफूसी, किसे कौन से रंग से भिगोना है उसकी फुलप्रूफ प्लानिंग,किसके घर का मालपुआ और किसके घर के दहीबड़े खाने हैं जब मिलो तब यही बातें होने लगती थी। अब तो जैसे
होली एक दिन का प्रतीकात्मक त्योहार
बनकर ही रह गया है।
चलिए ज्यादा यादें न टटोलकर आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
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आदरणीय गोपेश सर
शहरी माहौल में पला हुआ, दुरुस्त क़ाफ़ और शीन वाला, बच्चन और नीरज की कविताओं का दीवाना, इन मेधावी छात्रों के बीच में ख़ुद को अभिशप्त समझने लगा था. मैं चाहता था कि मुझे लखनऊ के किसी अच्छे स्कूल में पढ़ने के लिए भेज दिया जाए पर मेरा अंग्रेज़ी का अज्ञान तो इटावा के ही एक मात्र इंग्लिश स्कूल में भी मेरे एडमिशन में बाधक बन गया था. मजबूरन –
‘पचम पच्चे पच्चिस, छक्के तीस, सते पैंतिस, अट्ठे चालिस, नमे पैंतालिस , धम्मा पचास’ का गीत गाने में मुझे भी निष्णात होना पड़ा।
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आदरणीय कैलाश शर्मा जी
बहने दो नयनों से यमुना,
यादों को ताज़ा रखने हैं।
नींद दूर है इन आंखों से,
कैसे सपने अब सजने हैं।
बहुत बचा कहने को तुम से,
गर सुन पाओ, वह कहने हैं।
आदरणीय दिलबाग जी
मेरे दिल की हर धड़कन पर लिखा है तेरा नाम
इस बात को छोड़ दें तो मैंने तुझको भुला रखा है।
डर है वक़्त की हवा फिर से सुलगा न दे इसको
कहकर बेवफ़ा तुझे, मुहब्बत को राख में दबा रखा है।
लोकेश जी
यादों के हवाले ही, इसे कर दो आख़िरश
कुछ और ही चारा नहीं दिल-ए-उदास का
कर ली है इसलिए भी तो नींदों से दुश्मनी
आँखों में ख़्वाब जागता रहता है ख़ास का
निकला है उसी शख़्स से मीलों का फासला
लगता था मेरे दिल को जो धड़कन के पास का
आदरणीया नुपूर जी
तट कभी भी
मिलते नहीं ।
पर उम्मीद भी
कभी टूटी नहीं ।
अब भी
लहरों में ढूंढती
नाव केवट की,
जो पार उतारती
प्रभु राम को भी,
लिए बिना ही
पार उतराई ।
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आज का यह अंक आप सभी
कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया मनोबल
में वृद्धि करती है।
हमक़दम के विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही हैं विभा दी
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।
सखि गंध मतायो भीनी
रंग होली के छायो रे
कली केसरी पिचकारी
लगे तन अबीर लपटायो रे
व्वाहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ पढ़वाई आपने..
सखि गंध मतायो भीनी
रंग होली के छायो रे
कली केसरी पिचकारी
लगे तन अबीर लपटायो रे
शुभकामनाएँ..
सादर.
वाह वाह श्वेता¡
जवाब देंहटाएंअप्रतिम आपने भटकते मन को फिर होली की कलोल पर खींचा निरसता में रस भरती भुमिका।
सुंदर संकलन ।
सभी रचनाऐं बहुत सुंदर
सभी रचनाकारों को बधाई।
बड़िया प्रस्तुति। सुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंवाह!!श्वेता ,बहुत सुंदर संकलन ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका के साथ सुन्दर लिंक्स संयोजन । आपने होली और गुलाल अबीर की याद दिला दी ।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन .........
जवाब देंहटाएंश्वेताजी, धन्यवाद. पाँच रचनाओं की हलचल, आज का उपहार.
जवाब देंहटाएंरंग रुपहले जीवन में भरपूर छायें
प्रभु सब की नैया नित पार लगायें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर नमन
बहुत सुंदर संकलन ... बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएं
बधाई आदरणीया
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई
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