रहता है, ..और
होता रहेगा,
सादर अभिवादन
उपरोक्त पंक्तियाँ चुराई है
डॉ. भैय्या की प्रस्तुति से
कुलदीप जी आज अन्तर्जाल
की व्यवस्था ठीक करने में लगे हैं
होता है..पहाड़ी इलाका है
सखी श्वेता जी भी लगी हुई है हमारी मदद करने
....चलिए चलें पिटारा खोलें...
शुरुआत तलाक से
सोच रहे हैं कि दें या न दे
सिर्फ तीन मिनट और तलाक
क्यों हुआ शादी के सिर्फ़ तीन मिनट बाद तलाक?
आत्मसम्मान की रक्षा हेतु लिया शादी के सिर्फ़ तीन मिनट बाद
तलाक एक कुवैती जोड़े ने कोर्ट में शादी की और वे कोर्ट रुम से
बाहर निकल रहे थे। तभी अचानक दुल्हन का पैर फिसल गया।
इस बात पर दुल्हे ने दुल्हन का मजाक उड़ाया और उसे बेवकूफ
कहा। दुल्हन को लगा कि जो पति अभी-अभी शादी होने के बाद,
उसके गिरने पर उसकी सहायता करने की बजाए उसका मजाक
उड़ा रहा हैं...बेवकूफ कह कर उसका अपमान कर रहा हैं...
वो आगे चल कर न जाने कितनी बार उसे अपमानित करेगा?
यहीं सोच कर वो फौरन कोर्ट रुम में वापस गई
और तलाक की मांग की।
दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे ...
मेरे कश्मीर की वादी है जन्नत
वहीं कोई शिकारा ढूंढ लेंगे
अभी इस जीन से कर लो गुज़ारा
अमीरी में शरारा ढूंढ लेंगे
बनाना है अगर उल्लू उन्हें तो
कहीं मुझ सा बेचारा ढूंढ लेंगे
मेरी भी आभा है इसमें .... नागार्जुन
भीनी-भीनी खुशबूवाले
रंग-बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
कल इनको मेरे प्राणों मे नहलाया था
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था
आदमी ....
मुनाफे के लिए आदमी
व्यापार बदलता है,
खुशियों के लिए आदमी
व्यवहार बदलता है ,
ज़िन्दगी के लिए आदमी
रफ्तार बदलता है ,
उस फागुन की होली में ....
उस फागुन की होली में
प्राणों में मकरंद घोल गया
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया
इस धूल को बना गया चन्दन
सुवासित , निर्मल और पावन
कभी चाँद हुआ कभी फूल हुआ
या चुभ हिया की शूल हुआ
दौड़ रहा है सरपट सूरज
समेटने अपनी बिखरी रश्मियों को.
घुला रही हैं अपने नयन-नीर से,
नदियाँ अपने ही तीर को.
खेल रही हैं हारा-बाजी टहनियाँ
अपनी पत्तियों से ही.
अपरिचित या पूर्व-परिचित.....
संग निशा के, तुम जग पड़ते हो,
चुप सा होता हूँ मैं, जब तुम कुछ कहते हो,
तिरोहित रातों में, हर-क्षण संग रहते हो,
सम्मोहित बातों से, मन को करते हो,
कहो ना, मेरे क्या लगते हो तुम?
अचार संहिता या आचार संहिता
जानिए इस अखबार से
बहुत शाँति
का अहसास
'उलूक'
को होता है
हमेशा ही
ऐसी ही
कुछ बेवजह
हरकतों
पर किसी की
उसकी बाँछे
पता नहीं
क्यों खिल
जाती हैं
आने वाले
एक तूफान
का संदेश
जरूर देते हैं
......
अब बारी है हम-क़दम की
बाहसठवाँ अंक
विषय है
विरह
उदाहरणः
कंगन चूड़ी गिन-गिन हारी, बैरी रैन की मार।
जियरा डोले श्याम ही बोले, हाय विरहा की रार।
सखियां छेड़े जिया जलाये, ले ले के नाम तुम्हार।
न बूझै क्यों तू निर्मोही, देखे न अँसुअन धार।
रचनाकार-श्वेता सिन्हा
अंतिम तिथिः 16 मार्च 2019
प्रकाशन तिथिः 18 मार्च 2019
देखा गया है रचना हमारे पास नहीं आती
हमें तलाश कर लानी पड़ती है
दिनांक 16 मार्च तक सम्पर्क फार्म द्वारा आई हुई
रचनाओं का ही प्रकाशन किया जाएगा
आज्ञा दें
सादर
यशोदा. ..
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंसंग्रहनीय संकलन
व्वाहहह.
जवाब देंहटाएंशानदार अंक..
सादर..
उस फागुन की होली में
जवाब देंहटाएंप्राणों में मकरंद घोल गया
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया ...
मनभावन लेखनी। मन मकरंद सा हो गया। बेहतरीन प्रस्तुति हेतु अपरिचित शुभकामनाएं ।
ताजगी भरा सुन्दर संकलन ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआभार यशोदा जी। सुन्दर संकलन। बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमस्कार दी
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार प्रस्तुति सभी सामग्री पठनीय सुंदर ।
जवाब देंहटाएंशब्द जिसके भी हो निमंत्रण देती सी भुमिका ।
सभी रचनाकारों को बधाई ।
हृदय से आभारी हूँ आपकी ,बहुत ही शानदार प्रस्तुति ,आप सभी की रचनाएं सराहनीय है ।
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