---

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

1337..कैसे कैसे सपने अब सजने हैं

स्नेहिल अभिवादन

भागदौड़ की ज़िंदगी में फुरसत के पलों में सामूहिक गोष्ठियों में अब चुनाव की चर्चा होने लगी । पलाश के फूलोंं के गुच्छों को देखकर मन उदास होकर सोचने लगा  किसी को याद क्यों नहीं होली आ गयी है। बचपन की ढेरों यादें ज़ेहन में ताज़ा है जब महाशिवरात्रि के त्योहार से ही इस बार होली कैसे मनायेंगे उसकी चर्चा और तैयारियाँ आरंभ हो जाती थी। होलिका दहन के लिए लकडियाँ किस प्रकार इकट्ठी करनी है उसकी कानाफूसी, किसे कौन से रंग से भिगोना है उसकी फुलप्रूफ प्लानिंग,किसके घर का मालपुआ और किसके घर के दहीबड़े खाने हैं जब मिलो तब यही बातें होने लगती थी। अब तो जैसे 
होली एक दिन का प्रतीकात्मक त्योहार 
बनकर ही रह गया है। 

चलिए ज्यादा यादें न टटोलकर आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
★★★★★
आदरणीय गोपेश सर

शहरी माहौल में पला हुआ, दुरुस्त क़ाफ़ और शीन वाला, बच्चन और नीरज की कविताओं का दीवाना, इन मेधावी छात्रों के बीच में ख़ुद को अभिशप्त समझने लगा था. मैं चाहता था कि मुझे लखनऊ के किसी अच्छे स्कूल में पढ़ने के लिए भेज दिया जाए पर मेरा अंग्रेज़ी का अज्ञान तो इटावा के ही एक मात्र इंग्लिश स्कूल में भी मेरे एडमिशन में बाधक बन गया था. मजबूरन –
‘पचम पच्चे पच्चिस, छक्के तीस, सते पैंतिस, अट्ठे चालिस, नमे पैंतालिस , धम्मा पचास’ का गीत गाने में मुझे भी निष्णात होना पड़ा।
★★★★★
आदरणीय कैलाश शर्मा जी

बहने दो नयनों से यमुना,

यादों को ताज़ा रखने हैं।

नींद दूर है इन आंखों से,

कैसे सपने अब सजने हैं।

बहुत बचा कहने को तुम से,

गर सुन पाओ, वह कहने हैं।

आदरणीय दिलबाग जी

मेरे दिल की हर धड़कन पर लिखा है तेरा नाम
इस बात को छोड़ दें तो मैंने तुझको भुला रखा है।

डर है वक़्त की हवा फिर से सुलगा न दे इसको
कहकर बेवफ़ा तुझेमुहब्बत को राख में दबा रखा है।

लोकेश जी

यादों के हवाले ही, इसे कर दो आख़िरश
कुछ और ही चारा नहीं दिल-ए-उदास का

कर ली है इसलिए भी तो नींदों से दुश्मनी
आँखों में ख़्वाब जागता रहता है ख़ास का

निकला है उसी शख़्स से मीलों का फासला
लगता था मेरे दिल को जो धड़कन के पास का

आदरणीया नुपूर जी

तट कभी भी 

मिलते नहीं ।
पर उम्मीद भी
कभी टूटी नहीं ।
अब भी 
लहरों में ढूंढती 

नाव केवट की,
जो पार उतारती
प्रभु राम को भी,
लिए बिना ही 
पार उतराई ।
★★★★★
 आज का यह अंक आप सभी
कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया मनोबल
में वृद्धि करती है।

हमक़दम के विषय के लिए

कल का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही हैं विभा दी
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।

सखि गंध मतायो भीनी
रंग होली के छायो रे
कली केसरी पिचकारी 
लगे तन अबीर लपटायो रे


12 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहह..
    बेहतरीन रचनाएँ पढ़वाई आपने..
    सखि गंध मतायो भीनी
    रंग होली के छायो रे
    कली केसरी पिचकारी
    लगे तन अबीर लपटायो रे
    शुभकामनाएँ..
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह वाह श्वेता¡
    अप्रतिम आपने भटकते मन को फिर होली की कलोल पर खींचा निरसता में रस भरती भुमिका।
    सुंदर संकलन ।
    सभी रचनाऐं बहुत सुंदर
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!!श्वेता ,बहुत सुंदर संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन भूमिका के साथ सुन्दर लिंक्स संयोजन । आपने होली और गुलाल अबीर की याद दिला दी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....

    जवाब देंहटाएं
  6. श्वेताजी, धन्यवाद. पाँच रचनाओं की हलचल, आज का उपहार.

    रंग रुपहले जीवन में भरपूर छायें
    प्रभु सब की नैया नित पार लगायें

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर प्रस्तुती
    बेहतरीन रचनाएं
    बधाई आदरणीया

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।