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अब उसका मोल बता भी दो !
इतनी इनायत और करो.....
और देखिए नये विषय की जगह
हम-क़दम के उन्तीसवें क़दम का विषय
इधर है
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शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएं"भीड़ में सब लोग अच्छे कहाँ होते हैं
अच्छे लोगों की भीड़ भी कहाँ होती है"
बहुत सुन्दर
सादर
सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंविशिष्ट भुमिका सत्य और शिव ।
जवाब देंहटाएंकबीर दास जी का एक दोहा आज की भुमिका पर सही बैठ रहा है
"सिहों के लेहँड़ नहीं, हंसों की नहीं पाँत ।
लालों की नहि बोरियाँ, साधु न चलैं जमात।
शानदार प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को बधाई ।
वाह!!लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र संयोजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को बेहतरीन रचनाओं में स्थान देने के लिए सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभीड़ के चेहरों की शिनाख्त मुश्किल है...भीड़ का बिगड़ता चेहरा चिंता का विषय होता जा रहा है..सारगर्भित भूमिका..।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाओं का शानदार संकलन है पम्मी जी।
आभार आपका मेरी रचना को भी इस अंक मेंं शामिल करने के लिए।
सादर।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
वाह बेहतरीन संकलन पम्मी जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभीड़ के स्वभाव और प्रभाव की संक्षेप में तार्किक चर्चा प्रभावशाली है। सुन्दर रचनाओं से सजी बेहतरीन प्रस्तुति। बधाई आदरणीया पम्मी जी। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन आदरणीया पम्मी जी। मेरी रचना को हलचल में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्रिय पम्मी जी -- सचमुच भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता | इस में अच्छे लोग कहाँ होते हैं ? भीड़ मात्र विवेकहीन मजमा बन कर रह गयी है | आज के समय में भीड़ का इकट्ठा होना किसी ना किसी दुर्घटना और अनहोनी का सबब बनता जा रहा है | सामूहिक हिंसा के रोजगार कैसे मिलेगा ? आज भी मेहनत करने वालों के लिए काम बहुत हैं |और अकर्मण्य लोगों के लिए बहानों की कमी नहीं | बेरोजगारी बेरोजगारी एक दर्द है पर इसका हल सामूहिक उत्पात बिलकुल नहीं | अत्यंत सार्थक और रोचक अंक के लिए आपको बधाई | सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
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