केवल दो दिन रह गये...
इस वर्ष के...
सभी को प्रतीक्षा है...
नव वर्ष की...
आज सब से पहले...
ये प्यारा सा गीत...
नव वर्ष आ ...
ले आ नया हर्ष
नव वर्ष आ !
आजा तू मुरली की तान लिये ' आ !
अधरों पर मीठी मुस्कान लिये ' आ !
विगत में जो आहत हुए , क्षत हुए ,
उन्हीं कंठ हृदयों में गान लिये ' आ !
आ ' कर अंधेरों में दीपक जला !
मुरझाये मुखड़ों पर कलियां खिला !
युगों से भटकती है विरहन बनी ;
मनुजता को फिर से मनुज से मिला !
सुदामा की कुटिया महल में बदल !
हर इक कैक्टस को कमल में बदल !
मरोड़े गए शब्दों की सुन व्यथा ;
उन्हें गीत में और ग़ज़ल में बदल !
कुछ पल तू अपने क़दम रोक ले !
आने से पहले ज़रा सोच ले !
ज़माने को तुमसे बहुत आस है !
नदी को समंदर को भी प्यास है !
नये वर्ष ! हर मन को विश्वास दे !
तोहफ़ा सभी को कोई ख़ास दे !
जन जन प्रसन्नचित हो आठों प्रहर !
भय भूख़ आतंक से मुक्त कर !
स्वागत है आ, मुस्कुराता हुआ !
संताप जग के मिटाता हुआ !!
नव वर्ष आ , मुस्कुराता हुआ !!!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हत्या
“हाँ! बौरा जाना मेरा स्वाभाविक नहीं है क्या ? आठ साल की दीदी थी तो जंघा पर बैठा दान करने के लोभ में आपलोगों ने उसकी शादी कर दी …. दीदी दस वर्ष की हुई तो विदा होकर ससुराल चली गई । ग्यारहवे साल में माँ बनते बनते भू शैय्या अभी लेटी है “ ना चाहते हुए भी चुन्नी पलट कर अपनी माँ को जबाब दी।
गजब के रोचक फैक्ट व्हाट्सएप्प के बारे में - Gajab Ke Rochak Fact WhatsApp Ke Bare Me
6. 180 से ज्यादा देशों में 1 अरब से अधिक लोग WhatsApp का उपयोग करते हैं
7. व्हाट्सएप्प बनाने के आयडिया ने Jan Koum और Brian Acton के दोस्त एलेक्स फिशमैन के घर एक पिज्जा पार्टी में जन्म लिया
8. WhatsApp ने अपनी मार्केटिंग पर एक भी पैसा खर्च नहीं किया है
तुम्हारे साथ बीता सफ़र
ये ज़िन्दगी बाकी रहेगी
लेकिन ज़िन्दगी का सफ़र
ख़त्म हो जाएगा .......
लिफाफा
ऊपर अनिल कुमार मिले तो नरूला साब ने कहा,
- अनिल कुमार जी आप जुनेजा हो मुझे पता नहीं था वो तो बोर्ड देख कर ही पता लगा. आपको बहुत बहुत मुबारक और ये रहा बच्चों के लिए शगुन. फिर नरूला साब ने श्रीमति जी के साथ इत्मीनान से डिनर लिया और घर की ओर प्रस्थान किया. रास्ते में नरूला साब सोचते रहे कि एक लिफाफा फर्स्ट फ्लोर पर दे दिया दूसरा बेसमेंट में दे दिया तो तीसरा ग्राउंड फ्लोर पर भी दे आता तो अच्छा था.
कल और आज
दैनिक जीवन से
विलुप्त हो रहे सामाजिक मूल्य
प्रेम, करुणा, दया, सहयोग
दूसरों की परवाह में प्रशन्नता
व्यक्ति से कोसों आगे चल रहे हैं .
जब जब राम ने जन्म लिया तब तब पाया वनवास - [आलेख] - डा० जगदीश गांधी
प्रभु तो सर्वत्र व्याप्त है पर हम उसको देख नहीं सकते। हम उसको सुन नहीं सकते। हम उसको छू नहीं सकते तो फिर हम प्रभु को जाने कैसे? अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को हम पहचाने कैसे? बच्चों द्वारा प्रतिदिन की जाने वाली हमारे स्कूल की प्रार्थना है कि हे मेरे परमात्मा मैं साक्षी देता हूँ कि तूने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तूझे जाँनू और तेरी पूजा करूँ। इस प्रकार प्रभु ने हमें केवल दो कार्यों (पहला) परमात्मा को जानने और (दूसरा) उसकी पूजा करने के लिए ही इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में उत्पन्न किया है। प्रभु को जानने का मतलब है परमात्मा द्वारा युग-युग में पवित्र धर्म ग्रंथों गीता की न्याय, त्रिपटक की समता, बाईबिल की करुणा, कुरान की भाईचारा, गुरू ग्रन्थ साहेब की त्याग व किताबे अकदस की हृदय की एकता आदि की ईश्वरीय शिक्षाओं को जानना और परमात्मा की पूजा करने का मतलब है कि परमात्मा की शिक्षाओं पर जीवन-पर्यन्त दृढ़तापूर्वक चलते हुए अपनी नौकरी या व्यवसाय करके अपनी आत्मा का विकास करना। हमें प्रभु की इच्छा को अपनी इच्छा बनाकर जीवन जीना चाहिए। हमें अपनी इच्छा को प्रभु की इच्छा बनाने की अज्ञानता कभी नहीं करनी चाहिए।
रामायण में कहा गया है कि ‘जब जब होहिं धरम की हानी। बाढ़हि असुर, अधर्म, अभिमानी।। तब-तब धरि प्रभु बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।’ अर्थात जब-जब इस धरती पर अधर्म बढ़ता है तथा असुर, अधर्मी एवं अहंकारियों के अत्याचार अत्यधिक बढ़ जाते हैं, तब-तब ईश्वर नये-नये रूप धारण कर मानवता का उद्धार करने, उन्हें सच्चा मार्ग दिखाने आते हैं । इसी प्रकार महाभारत में परमात्मा की ओर से वचन दिया गया है कि ‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।।’ अर्थात धर्म की रक्षा के लिए मैं युग-युग में अपने को सृजित करता हूँ। सज्जनों का कल्याण करता हूँ तथा दुष्टों का विनाश करता हूँं। धर्म की संस्थापना करता हूँ। अर्थात एक बार स्थापित धर्म की शिक्षाओं को पुनः तरोताजा करता हूँ।
संकट मे है बच्चों की दुनिया
अभी हाल मे उच्चतम न्यायालय ने स्कूली बच्चों मे शराब और नशे की बढती लत पर चिंता जताते हुये सरकार को निर्देश दिया है कि वह छ्ह माह मे बताए कि कितने बच्चे ड्र्ग्स लेते हैं । साथ ही चार माह मे बच्चों को इससे बचाने के लिए राष्ट्रीय योजना तैयार करने के भी निर्देश दिए हैं । यही नही, सरकार को सर्वे कराने का भी निर्देश दिया है कि कितने बच्चे नशाखोरी की चपेट मे हैं । एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने यह निर्देश दिए हैं । कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस संबध मे सही आंकडों का होना बेहद जरूरी है । इससे पता चल सकेगा कि देश का कौन क्षेत्र ज्यादा प्रभावित है ।
यहां यह ज्यादा महत्वपूर्ण नही कि इस सबंध मे आंकडे कैसी तस्वीर पेश करते हैं ? बल्कि महत्वपूर्ण यह है जो चिंताएं समाज और सरकार की होनी चाहिए वह अदालतों के माध्यम से सामने आ रही हैं । हमे बताया जा रहा है कि बच्चों की दुनिया मे सबकुछ ठीक नही चल रहा । अदालत हमे बता रही है कि देखो बच्चे नशा करने लगे हैं ।
उन्हें नशे से बचाइये । क्या यह चिंताजनक नही कि हमे अपने आंगन मे या फिर आसपास ही खेल रहे बच्चों के बारे मे कुछ पता नही । उनकी मासूम दुनिया को नशे और अपराध के काले साये ने कब अपनी गिरफ्त मे ले लिया हमे पता ही नही चला । आखिर ऐसा कैसे संभव हुआ , यह सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण है । बच्चे देश का भविष्य होते हैं
आज बस इतना ही...
दिनांक 1 जनवरी 2017 को पांच लिंकों का आनंद पर...
नव वर्ष पर आप की नयी-जूनी रचनाओं को लिंक किया जाएगा...
अपनी रचनाएं हमे इस ब्लॉग के संपर्क प्रारूप द्वारा...
अभी ही भेजें।
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर व चुनिन्दा रचनाएँ
सादर
आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष शुक्रीया
सुन्दर संकलन कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत शुक्रिया .. मेरी कविता शामिल करने के लिए...
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