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बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

460..राम ही राम हैं चारों ओर हैं बहुत आम हैं रावण को फिर किसलिये किस बात पर जलाया

सादर अभिवादन
हड़ताल खतम हो गई नेट की
कल भाई कुलदीप जी आएँगे

आज की मेरी पसंदीदा  रचनाएं......


जहाँ भी उम्मीद की छाया दिखती है
साँकल खटखटा ही देती हूँ
सोचती हूँ एक बार
खटखटाऊँ या नहीं
लेकिन अब पहले जैसी दुविधा देर तक नहीं होती
उम्र की बात है - !


बहुत सहन कर चुकी
अब मत बांधो मुझे
मत करो मजबूर
इतना कि तोड़ दूँ
सब बंधन
मत कहना फिर तुम
विद्रोही हूँ मै



तुम बाग़ लगाओ, तितलियाँ आएँगी
उजड़े गाँव नई बस्तियाँ आएँगी

जिन चेहरों सूखा, आँख में सन्नाटा
बादल बरसेंगे, बिजलियाँ आएँगी


ऐसे बेहोशी में बीत रहे हैं. आज दूध देर से आया था, दोपहर को गैस पर रख कर भूल गयी. जून को लंच के बाद बाहर तक छोड़कर आई तो दूध चूल्हे से उतारने के बजाय कम्प्यूटर के सामने बैठ गयी और पतीला बुरी तरह से जल गया. देखें कितना साफ होता है, 


युद्ध से नहीं बचायी जा सकती है दुनिया
युद्ध से बचाया जा सकता है हथियार
युद्ध से बचाया जा सकता है अधर्म
युद्ध से बचाया जा सकता है अन्धापन

उल्लूक टाईम्स का विलंम्बित समाचार
आज तक किसी चर्चाकार की निगाह नही पड़ी

सामने खड़ी सारी 
जनता से उनकी 
खुद की 
रिश्तेदारी मिली 
और रावण बेचारा
सोच में पड़े 
खड़ा रह पड़ा 
किसलिये और 
किस मुहूर्त में 
राम के साथ 
रामराज्य की ओर 
ऊपर से नीचे 
एक बार और 
अपनी जलालत 
देखने निकल पड़ा ? 
........
आज्ञा दें यशोदा को
फिर मुलाकात होगी
सादर




5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर बुधवारीय हलचल प्रस्तुति। कुलदीप जी का नेट जल्दी स्वश्थ्य होवे । आज के पाँच सूत्रों में 'उलूक' के एक पुराने सूत्र 'राम ही राम हैं चारों ओर हैं बहुत आम हैं रावण को फिर किसलिये किस बात पर जलाया'को जगह देने के लिये आभार यशोदा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर सूत्र संकलन..बहुत बहुत आभार मुझे भी शामिल करने के लिए..

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात आप सभी को...
    पहाड़ी क्षेत्र में रहने वालों की अनेकों समस्याएं हैं...
    औरों के लिये हो न हो...
    मेरे लिये तो नैट का हड़ताल पर जाना...
    सब से बड़ी समस्या है...
    अगली हड़ताल तक मैं फिर उपस्थित हूं...
    सुंदर प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. रेखा जोशी की कविता - 'मैं तो बस अपना हक़ मांग रही हूँ' और सुशील यादव की कविता - सफ़र में' अच्छी लगीं.

    जवाब देंहटाएं

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