काफी दिनों के बाद
मैं फिर से
आपके समक्ष हूँ
चलिए चलें लिंक्स की ओर...
"ऑसन ऑफ ब्लिस में".....रेखा जोशी
मन ही देवता मन ही ईश्वर
मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही
पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने
कितनी दूर पहुंच जाता है ,
हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की
उथल पुथल में उलझा रहता है ,
भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,
यह विचार ही तो है
और ये है आज की प्रथम व शीर्षक कड़ी
"काव्य पिटारा में"..... प्रदीप भाई
माघ मास की शुक्ल पंचमी,
चेतन बन होगा जड़ंत,
सोलह कला में खिलि प्रकृति,
आयेंगे ऋतुराज बसंत ।
इज़ाज़त दें यशोदा को
फिर मिलेंगे
सादर
सभी रचनायें अच्छी लगी। सामयिक भी है ।कटाक्ष भी अचूक है। इंद्रधनुषीय आनन्द की अनुभूति हुई।
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाऐं शामिल करने के लिऐ यशोदा जी का आभार ।
सभी रचनायें अच्छी लगी। सामयिक भी है ।कटाक्ष भी अचूक है। इंद्रधनुषीय आनन्द की अनुभूति हुई।
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाऐं शामिल करने के लिऐ यशोदा जी का आभार ।
मेरी २रचनाओं को यहाँ स्थान देने का हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंबाकि रचनाएँ भी बेहतरीन । एक से बढ़कर एक ।
सादर
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर प्रस्तुति । आभार 'उलूक' की प्रस्तुति को भी स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति,मेरी रचना शामिल करने के लिऐ आभार यशोदा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर....
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