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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

206....कामदेव के पुत्र बसंत का, आना सरस, सुखद संयोग है

सादर अभिवादन
काफी दिनों के बाद
मैं फिर से
आपके समक्ष हूँ

बिना किसी लाग-लपेट के
चलिए चलें लिंक्स की ओर...

सजायाफ्ता है हम भी, सफ्फाक उस नजर के,
मेरी जल रही जमीं , है  धुआं  आसमान पर  ।।

कयामत के रोज वर्क से, कोई नहीं बचेगा,
कुछ हो चुके मुखातिब , कुछ है निशान पर ।।

सोता नहीं जब रात में, 
कहती उसकी माँ, 
सोता है या बुलाऊँ, 
जगा होगा वो कवि, 
बच्चा खुद ब खुद, 
सो जाता है यूँ ही ।

बस थोड़े से कुछ 
दो चार बेवकूफ 
सब कुछ समझते 
बूझते हुऐ एक दूसरे 
के साथ प्रश्नों की 
अंताक्षरी फिर भी 
खेल रहे होते हैं 

दादी ने गुल्लक दिलवाई 
बचत की आदत डलवाई 
मैंने भी इसको अपनाया 
चंद  सिक्के जमा किये 
फ्रेन्डशिप डे है आनेवाला
मन ने कहा क्यूं न खुद
फ्रेन्ड शिप बैण्ड बनाऊँ 
अपने मित्रों को पहनाऊँ 


"ऑसन ऑफ ब्लिस में".....रेखा जोशी
मन ही देवता मन ही ईश्वर 
मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही 
पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने 
कितनी दूर पहुंच जाता है ,
हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की 
उथल पुथल में उलझा रहता है ,
भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,
यह विचार ही तो है 


और ये है आज की प्रथम व शीर्षक कड़ी


"काव्य पिटारा में"..... प्रदीप भाई
माघ मास की शुक्ल पंचमी,
चेतन बन होगा जड़ंत,
सोलह कला में खिलि प्रकृति,
आयेंगे ऋतुराज बसंत ।


इज़ाज़त दें यशोदा को
फिर मिलेंगे
सादर









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