सादर अभिवादन...
है तो रविवार आज..
दिन भी है छुट्टी का
होने के बाद भी छुट्टी
नहीं न है छुट्टी..
ढेरों काम हैं लम्बित..
पर आज रविवार नहीं है..
शनि का शाम से..... रवि की
तैय्यारी हो रही है...
नव प्रवेश त्रय
मां बनने का अहसास......प्रियंका "श्री"
जब लिया था गोद मे
पहली बार तुम्हे
खुद से ही डर गई थी मैं
डर था । न कोई
तकलीफ दे दु तुम्हे
आख़िर मां जो बन गयी थी मैं।।
हारे भी बहुत थे...शकुन्तला शाकु
गर हौसला होता तो किनारे भी बहुत थे
तूफान में तिनके के सहारे भी बहुत थे
ये बात अलग है कि तबज्जो न दी हमने
दिल खींचने के नजारे भी बहुत थे
कोशिश कर रहा हूँ मैं....मीना गुलियानी
तेरे साथ मेरे हमदम हमेशा रहा हूँ मैं
मुझे जिस तरह से चाहा वैसा रहा हूँ मैं
तेरे सर पे धूप आई तो मैं पेड़ बन गया
तेरी जिंदगी में कोई वजह रहा हूँ मैं
.....

पूजा से पावन....महेन्द्र वर्मा
जाने -पहचाने बरसों के फिर भी वे अनजान लगे,
महफ़िल सजी हुई है लेकिन सहरा सा सुनसान लगे ।
इक दिन मैंने अपने ‘मैं’ को अलग कर दिया था ख़ुद से,
अब जीवन की हर कठिनाई जाने क्यों आसान लगे ।

ठंडी का मौसम आया...कुलदीप कुमार
चलो बैठते हैं आग के किनारे |
कोहरा भी होता है इस दिन,
देख कर चलो भईया नहीं तो
भिड़ोगे किसी दिन ||

आ जाऊँगा मैं.....पुरुषोत्तम सिन्हा
भीग रही हो जब बोझिल सी पलकें,
विरह के आँसू बरबस आँचल पे आ ढलके,
हृदय कंपित हो जब गम में जोरों से,
तुम टूटकर न बिखरना, याद मुझे फिर कर लेना,
पलकों से मोती चुन लेने को आ जाऊँगा मैं
आज बस..
आज्ञा दें
यशोदा ..
है तो रविवार आज..
दिन भी है छुट्टी का
होने के बाद भी छुट्टी
नहीं न है छुट्टी..
ढेरों काम हैं लम्बित..
पर आज रविवार नहीं है..
शनि का शाम से..... रवि की
तैय्यारी हो रही है...
नव प्रवेश त्रय
मां बनने का अहसास......प्रियंका "श्री"
जब लिया था गोद मे
पहली बार तुम्हे
खुद से ही डर गई थी मैं
डर था । न कोई
तकलीफ दे दु तुम्हे
आख़िर मां जो बन गयी थी मैं।।
हारे भी बहुत थे...शकुन्तला शाकु
गर हौसला होता तो किनारे भी बहुत थे
तूफान में तिनके के सहारे भी बहुत थे
ये बात अलग है कि तबज्जो न दी हमने
दिल खींचने के नजारे भी बहुत थे
कोशिश कर रहा हूँ मैं....मीना गुलियानी
तेरे साथ मेरे हमदम हमेशा रहा हूँ मैं
मुझे जिस तरह से चाहा वैसा रहा हूँ मैं
तेरे सर पे धूप आई तो मैं पेड़ बन गया
तेरी जिंदगी में कोई वजह रहा हूँ मैं
.....

पूजा से पावन....महेन्द्र वर्मा
जाने -पहचाने बरसों के फिर भी वे अनजान लगे,
महफ़िल सजी हुई है लेकिन सहरा सा सुनसान लगे ।
इक दिन मैंने अपने ‘मैं’ को अलग कर दिया था ख़ुद से,
अब जीवन की हर कठिनाई जाने क्यों आसान लगे ।

ठंडी का मौसम आया...कुलदीप कुमार
चलो बैठते हैं आग के किनारे |
कोहरा भी होता है इस दिन,
देख कर चलो भईया नहीं तो
भिड़ोगे किसी दिन ||

आ जाऊँगा मैं.....पुरुषोत्तम सिन्हा
भीग रही हो जब बोझिल सी पलकें,
विरह के आँसू बरबस आँचल पे आ ढलके,
हृदय कंपित हो जब गम में जोरों से,
तुम टूटकर न बिखरना, याद मुझे फिर कर लेना,
पलकों से मोती चुन लेने को आ जाऊँगा मैं
आज बस..
आज्ञा दें
यशोदा ..


