क्षमा कीजिएगा। कुछ दिनों से स्वास्थ्य अच्छा न होने की वज़ह से ब्लॉग पर अनुपस्थित रहा। औषधि लाभ ले रहा था
जो हमारी परम्परा तथा वैज्ञानिक तथ्य भी !
निःसंदेह वर्तमान में कई हलचलें हुईं ,कुछ काम की और कुछ व्यर्थ। इन सबसे दूर मैं एक सिनेमा हाल के सामने हाथों में लाल-पीला झंडा लेकर, माथे पर लाल और बांह पर काली पट्टी बांधे नारा लगा रहा था। क्या करता बहुत दिनों से भूखा था। रोटी का एक निवाला भी पिछले दिनों से नसीब नही हुआ। चलो अच्छा हुआ ''संजय लीला भंसाली'' जी आ गए नहीं तो रोटी भी क़िस्मत में नहीं थी। फिल्म बनाई हज़ारों को काम दिया ! फ़िल्म रिलीज नहीं हुई हम जैसे करोड़ों को काम दिया। कुछ और तथाकथित इतिहास भक्त जिन्हें यह भी नहीं मालूम
''मलिक मुहम्मद जायसी" कौन थे ? उनका जन्म कहाँ हुआ ?
उनकी कृति के महान पात्र की लाज रखने हेतु एक जीवित महिला अभिनेत्री की अस्मिता पर वार करते हैं। शान की दुहाई देने वाले उस वक़्त नज़र नहीं आते , जिस वक़्त एक जीवित महिला के अस्मिता की बात आती है। चलो भाई नारा लगाने दो ! अभी -अभी दीपिका का पोस्टर जला कर आ रहा हूँ। मेरा क्या है ? सौ रुपये लाल -पीले वालों ने दिए और दो सौ विपक्ष ने। सब्ज़ी -पूड़ी शान दिखाने वालों ने खिला दिए। कुल तीन सौ रुपये हो गए। आज शाम तो मेरी ख़ूब कटेगी। सुना है ! आज कोई नई फ़िल्म आ रही है। चलो पच्चास रुपये में निपट जायेगी।
सोच रहा हूँ भारतीय फिल्में देखना ही बंद कर दूँ !
जो हमारी परम्परा तथा वैज्ञानिक तथ्य भी !
निःसंदेह वर्तमान में कई हलचलें हुईं ,कुछ काम की और कुछ व्यर्थ। इन सबसे दूर मैं एक सिनेमा हाल के सामने हाथों में लाल-पीला झंडा लेकर, माथे पर लाल और बांह पर काली पट्टी बांधे नारा लगा रहा था। क्या करता बहुत दिनों से भूखा था। रोटी का एक निवाला भी पिछले दिनों से नसीब नही हुआ। चलो अच्छा हुआ ''संजय लीला भंसाली'' जी आ गए नहीं तो रोटी भी क़िस्मत में नहीं थी। फिल्म बनाई हज़ारों को काम दिया ! फ़िल्म रिलीज नहीं हुई हम जैसे करोड़ों को काम दिया। कुछ और तथाकथित इतिहास भक्त जिन्हें यह भी नहीं मालूम
''मलिक मुहम्मद जायसी" कौन थे ? उनका जन्म कहाँ हुआ ?
उनकी कृति के महान पात्र की लाज रखने हेतु एक जीवित महिला अभिनेत्री की अस्मिता पर वार करते हैं। शान की दुहाई देने वाले उस वक़्त नज़र नहीं आते , जिस वक़्त एक जीवित महिला के अस्मिता की बात आती है। चलो भाई नारा लगाने दो ! अभी -अभी दीपिका का पोस्टर जला कर आ रहा हूँ। मेरा क्या है ? सौ रुपये लाल -पीले वालों ने दिए और दो सौ विपक्ष ने। सब्ज़ी -पूड़ी शान दिखाने वालों ने खिला दिए। कुल तीन सौ रुपये हो गए। आज शाम तो मेरी ख़ूब कटेगी। सुना है ! आज कोई नई फ़िल्म आ रही है। चलो पच्चास रुपये में निपट जायेगी।
सोच रहा हूँ भारतीय फिल्में देखना ही बंद कर दूँ !
एक फ़िल्म आई है ''द विन्ची कोड'' सुना है ! किसी विशेष समुदाय से सम्बंधित है। हॉलीवुड की अत्यंत चर्चित एवं विवादास्पद फ़िल्म ! और रिलीज़ भी हुई। ओ ! हो तब तो उस देश का कुछ नहीं हो सकता। मान -मर्यादा सभी का बंटा-धार।
बड़ी बेरोज़गारी है ! मैं तो अमेरिका जा रहा हूँ।
पागल हो गया है क्या ? ठेला राम ( मेला राम ने समझाते हुए कहा )
मेला राम - अरे ! यह वही देश है जहाँ "द विन्ची कोड" रिलीज़ हुई और कहानी भी वहीं की थी।
ठेला राम - परन्तु वह देश तो विकसित देशों की श्रेणी में आता है !
यह कैसे हुआ ?
यह कैसे हुआ ?
मेला राम - अरे मूरख हम यहाँ पोस्टर जला रहे थे, तब वे फैक्टरियां चला रहे थे। हम दीपिका के नाक के पीछे पड़े थे।
वे हमारे आगे खड़े थे।
सही कहा भाई इस मूर्खता की आग में हम सब जल जायेंगे। कुछ नहीं बचेगा ! मैं तो जा रहा हूँ, चल अपना ख़्याल रखना।
वहाँ से डॉलर भेजता रहूँगा।
पोस्टर मत जलाना ! दूसरों का चूल्हा अवश्य जलाना।
सौर ऊर्जा से
एक स्वच्छ अभियान।
सौ क़दम स्वच्छता की ओर
:पाठकों से विशेष अनुरोध :
लेख पढ़ते समय तर्क-शक्ति समीप एवं धर्म-सम्प्रदाय प्रेरित परम्परायें व तथाकथित रीति-रिवाज़ दूर रखें।
लेख पढ़ते समय तर्क-शक्ति समीप एवं धर्म-सम्प्रदाय प्रेरित परम्परायें व तथाकथित रीति-रिवाज़ दूर रखें।
:चेतावनी :
प्रस्तुत लेख किसी विशेष धर्म -सम्प्रदाय पर कटाक्ष नहीं करता बल्कि तथ्यों पर पुनर्विचार हेतु आग्रह करता है। कोई व्यक्ति इस पर किस तरह विचार करता है यह उसके विवेक पर निर्भर करता है।
प्रस्तुत लेख किसी विशेष धर्म -सम्प्रदाय पर कटाक्ष नहीं करता बल्कि तथ्यों पर पुनर्विचार हेतु आग्रह करता है। कोई व्यक्ति इस पर किस तरह विचार करता है यह उसके विवेक पर निर्भर करता है।
सादर अभिवादन।
आदरणीय "सुशील कुमार जोशी" जी
टट्टी पर या
हगने जैसे
विषय पर
गूगल करने
वाला भी
कोई एक
कविता
लिखा हुआ
नहीं पाता है
चोट पर चोट देकर रुलाया गया
जब न रोए तो पत्थर बताया गया ।
आदरणीया "रश्मि प्रभा"...
कोई गाली दे तो गाली दो
मारे तो मारके आओ ...
हर विषय को खुलेआम रख दिया है
फिर ?!
आदरणीया "अलकनंदा सिंह" जी
बात अगर फिल्म के ऐतिहासिक पक्ष की करें तो मध्यकालीन इतिहास में राजपूत अपनी आन-बान-शान के लिए आपस में ही लड़ते रहे और आक्रांता इसका लाभ उठाते रहे परंतु अब स्थिति वैसी नहीं है इसीलिए फिल्म में घूमर करती वीरांगना रानी पद्मिनी को दिखाए जाने के खिलाफ राजघरानों-राजकुमारियों सहित महिला राजपूत संगठन एकजुट हो रहे हैं।
आदरणीय "पुरुषोत्तम सिन्हा"
रसमय बोली लेकर इतराती तू,
स्वरों का समावेश कर उड़ जाती तू,
जा प्रियतम को तू रिझा,
मन को बेकल कर छिप जाती है तू कहाँ?
आदरणीय "ओंकार" जी
पत्तों से भरा सेमल का पेड़
ख़ुश था बहुत,
हवाएं उसे दुलरातीं,
पथिक सुस्ता लेते
उसकी घनी छाया में,
फुदकते रहते पंछी






