सादर अभिवादन।
सभी सम्मानित रचनाकारों से सविनय क्षमा चाहते हैं। आपको आपकी रचना के प्रकाशन की सूचना गुरूवार (9 -11 -2017 ) के लिए दी गयी किंतु तकनीकी गड़बड़ी के चलते अंक रिशेड्यूल किया गया अतः आज आपसे गुफ़्तुगू संभव हो पायी। आदरणीय ध्रुव सिंह जी ने उस दिन संकटमोचक की भूमिका सफलतापूर्वक निभाई उनका हार्दिक आभार एवं शुक्रिया।
सभी सम्मानित रचनाकारों से सविनय क्षमा चाहते हैं। आपको आपकी रचना के प्रकाशन की सूचना गुरूवार (9 -11 -2017 ) के लिए दी गयी किंतु तकनीकी गड़बड़ी के चलते अंक रिशेड्यूल किया गया अतः आज आपसे गुफ़्तुगू संभव हो पायी। आदरणीय ध्रुव सिंह जी ने उस दिन संकटमोचक की भूमिका सफलतापूर्वक निभाई उनका हार्दिक आभार एवं शुक्रिया।
आज कोई भूमिका नहीं बस एक समाचार -
ट्विटर पर अब 140 वर्ण ( characters)
( इसे कैरक्टर ,करैक्टर ,कैरेक्टर ,करकटर आदि पढ़ा जाता है।
इसमें अक्षर, व्याकरण चिह्न से लेकर स्पेस (टाइपिंग में ) तक शामिल थे जिसे अब 280 कर दिया गया है। हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है जिसमें जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाता है। अँग्रेज़ी के सायलेंट लेटर वर्तनी में लिखे तो होते हैं लेकिन उच्चारण में लोप होता है जैसे Pneumonia. पढ़ने का अलग-अलग ढंग देखिये - Go = गो और Do = डू । अर्थात अब एक ट्वीट में वर्ण (characters) की सीमा 280 हो गयी है। ट्रोल्स को अब ज़्यादा अभद्र भाषा का प्रयोग करने का मौका मिलेगा.....?)
( इसे कैरक्टर ,करैक्टर ,कैरेक्टर ,करकटर आदि पढ़ा जाता है।
इसमें अक्षर, व्याकरण चिह्न से लेकर स्पेस (टाइपिंग में ) तक शामिल थे जिसे अब 280 कर दिया गया है। हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है जिसमें जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाता है। अँग्रेज़ी के सायलेंट लेटर वर्तनी में लिखे तो होते हैं लेकिन उच्चारण में लोप होता है जैसे Pneumonia. पढ़ने का अलग-अलग ढंग देखिये - Go = गो और Do = डू । अर्थात अब एक ट्वीट में वर्ण (characters) की सीमा 280 हो गयी है। ट्रोल्स को अब ज़्यादा अभद्र भाषा का प्रयोग करने का मौका मिलेगा.....?)
आज मुझे बार-बार माफ़ी मांगनी है। देखिये न ब्रेकिट कितना लम्बा हो गया। ब्रेकिट के अंदर ब्रेकिट ! आज के अंक में रचनाऐं 5 के बजाय 13 हैं साथ ही कुछ लम्बी भी अतः आज मुझे क्षमा चाहिए आपका बहुमूल्य समय लेने के लिए। आगे से ध्यान रखूँगा पक्का...
दिल-ए-नादान की गुस्ताख़ी आप माफ़ करेंगे उम्मीद है।
दिल-ए-नादान की गुस्ताख़ी आप माफ़ करेंगे उम्मीद है।
चलिए अब चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -
आजकल देश में अजीब माहौल निर्मित हो गया है। वर्तमान सरकार की आलोचना को राष्ट्रविरोधी मानकर प्रचारित किया जाने लगा है। जिस दिन साहित्य देश के नेताओं को आराध्य देव मानने लगेगा फिर वह साहित्य नहीं सरकारी तारीफ़ का पुलिंदा होगा अतः सरकार की आलोचना एवं प्रोत्साहन दोनों ज़रूरी हैं और साहित्य को एक विपक्ष की भूमिका में रहना ही समाज में मूल्यों का संवर्धन करना है। पेश है आदरणीय छगन लाल गर्ग "विज्ञ" जी की साहित्य शिल्पी पर प्रकाशित एक रचना जो आपको तल्ख़ अनुभव देगी -
सच्चाई मत बोल देश मे,
बेबूझ सुन मौत होगी ।
अंध मूढता पाठ सीख ले,
दादागिरी सफल होगी ।।
जली असीमित आग जहन में,
शांत न जाने कब होगी।
रोज मरते सरीफ देश में ,
मानवता फिर कब होगी ।।
नई पीढ़ी के रचनाकार बड़ी सरलता से अपने भाव अभिव्यक्त कर रहे हैं जोकि अत्यंत प्रभावी हैं।इन्हें प्रोत्साहित करना ज़रूरी है।
पढ़िए शीरीं मंसूरी "तस्कीन" जी की एक रचना -
पढ़िए शीरीं मंसूरी "तस्कीन" जी की एक रचना -
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

तुम्हारे जैसा ढूढा भी बहुत मैंने
पर तुम तो सबसे अलग हो इस दुनियाँ में
तुम्हें ऊपर वाले ने अकेला बनाया है
तुम्हारे जैसा कोई हो भी नहीं सकता
क्योंकि तुम सबसे अच्छे हो
पता है तुहारी पहचान क्या है
अच्छाई ही तुम्हारी पहचान है
दिल्ली में 8 नवम्बर को आज रविवार तक स्कूली बच्चों की छुट्टी घोषित करनी पड़ी। राजधानी में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया कि इसे मेडिकल इमरजेंसी माना जा रहा है। माननीय सुप्रीम कोर्ट तक को दख़ल देना पड़ा है। आदरणीया योगिता यादव जी की कहानी वायु प्रदूषण और महानगरीय सभ्यता को किस प्रकार आपके सामने रखती है पढ़िए -

वह अपनी ख्वाहिशों से ध्यान हटाकर परिवार की तरक्की पर लगाना चाहती है। सब तरक्की करना चाहते हैं। इधर शहर भी तरक्की कर रहा है। प्रगति के इस खुशनुमा माहौल में फिजूल की स्टोरीज पर अब लड़की भी नहीं सोचना चाहती। पर उसे रह रहकर अपना घर आ जाता है। इन दिनों खेत कट कर खाली हो चुके होंगे। और फिर से उनके सीने पर आग धधक रही होगी। तो क्या यह धुआं उसके खेतों से आ रहा है? यह धुआं स्थायी हो चला है, अब उसकी सांसों के वश में नहीं है धुएं से लड़ पाना। वह आसमान में उमड़ते बादल देखना चाहती है पर धुआं आंखों में चुभ रहा है। वह सब कुछ भूल भाल कर उपासना की तैयारी में लग गई है।
आदरणीय हिमांशु मित्रा "रवि" जी की "कविता मंच" पर प्रकाशित मख़मली एहसासों में लिपटी ख़ूबसूरत ग़ज़ल मुलाहिज़ा फ़रमाइये -
वफ़ा लिपट कर थी रात भर रोई।
गिरा अश्क जिधर देखे वो अधर क्या।।
हुई खत्म मुहब्बत दरमियां हमारे।
ज़हाँ मैं है बता कोई अजर क्या।।
आदरणीया अपर्णा बाजपेयी जी का काव्य सृजन समाज के उपेक्षित बिषयों को संवेदनशीलता के साथ हमारे सामने लाता है। लीक से हटकर सोचना और लिखना साहसी क़दम है जो कि अपर्णा जी की पहचान बन गयी है। पेश-ए-नज़र है एक अनूठी रचना आपकी सेवा में -

नागरिक किताबों में बोया हुआ अक्षर हूँ,
पूरे लिखे पत्र का जरूरी हस्ताक्षर हूँ.
नर और नारायण के बीच का बवंडर हूँ
सरकारी दस्तावेज़ों में थर्ड जेंडर हूँ.
वायु प्रदूषण का क़हर हमारे जीवन को ख़ामोशी के साथ तहस-नहस कर रहा है। प्रदूषण सायलेंट किलर है, अनेक रोगों का जनक है। मनुष्य को तो प्रभावित करता ही है पर्यावरण असंतुलन लेकिन एक संवेदनशील कवि की नज़र में प्रकृति में प्रदूषण का प्रभाव महसूस कीजिये,आदरणीय अरुण कांत शुक्ला जी की इस रचना में-
अमावस की रात को चाँद का गायब होना
कोई नई बात नहीं
जहरीली हवाओं की धुंध इतनी छाई
पूनम की रात को भी चाँद गायब हो गया|
आदरणीया डॉ. अपर्णा त्रिपाठी जी की व्यापक सन्देश देती भावपूर्ण रचना आज पुनः पेश-ए-नज़र है -
आदरणीया डॉ. अपर्णा त्रिपाठी जी की व्यापक सन्देश देती भावपूर्ण रचना आज पुनः पेश-ए-नज़र है -

जरूरी है अभिमान हारना
राज्य दिलों पर करने को
जरूरी है विषपान करना
मानव से शिव होने को
राम सा हो पाने को
त्याग भावना जरूरी है
जीतने के लिये
हारना जरूरी है
आन बान शान स्वाभिमान की धरती राजस्थान आजकल कई कारणों से ख़ूब चर्चा में है। भारतीय संस्कृति से जुड़ा एक अति भावनात्मक बिषय है रानी पद्मावती की महान गाथा। इस मुद्दे पर राजनीति भी अपना असर दिखा रही है। इस बिषय पर आ रही फिल्म को लेकर अनेक आशंकाओं ने जनमानस को बिचलित कर दिया है। बेशक हमारी चर्चा भी फ़िल्म के विवाद पर है जोकि अपरोक्ष लाभ फ़िल्म जगत को ही पहुँचाएगी। सुधिजनों के बीच पेश की जा रही हैं इसी बिषय पर तीन रचनाऐं (आदरणीय पंडित नरेंद्र मिश्र जी , आदरणीया नीतू ठाकुर जी और आदरणीय अमित जैन "मौलिक" जी ) ताकि बिषय स्पष्ट रूप से समझा जा सके -

दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी |
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||
रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने
काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने
खिलजी का चित्तोड़ दुर्ग में एक संदेशा आया
जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया
दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया
यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया
तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे
शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे
दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में
यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में

तुझ जैसे नीच नराधम को
हम कभी शरण ना आयेंगे
पग आज बढ़ा के देख जरा
तुझको औकात दिखायेंगे
राज महल की दीवारों को
हम शमशान बनायेंगे
धरती माँ की आन की खातिर

केवल खिलज़ी मिला था तुमको,
महिमा मंडित करने को
वीर प्रतापी रतन सिंह का,
गौरव खंडित करने को।
जिसको सदा हिमालय झुकता,
नभ धरती पर आता है
जिसके जौहर की ओजस पर,
ईश्वर सुमन चढ़ाता है।
देश में सारे महत्वपूर्ण मुद्दे छोड़कर हम आजकल राजनीति द्वारा प्रक्षेपित हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे पर पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। समाज में बंटबारे और नफ़रत के माहौल से अब आम जनता को ऊब हो रही है। इस बीच एक रचनाकार का दिल किस तरह मचल उठता है अपनी बात कहने के लिए, पढ़ते हैं आदरणीय अरमान जी की एक रचना जोकि बड़ा संदेश समेटे है -

चंद चेहरे पूरी क़ौम की पहचान नहीं हैं
बाबर, औरंगज़ेब ही सिर्फ मुसलमान नहीं हैं
इस ज़मीं ने बख़्शे हमीद, अशफ़ाक़ और कलाम
तुम्हारी फ़ेहरिस्त में ये मुसलमान नहीं हैं
आज इस मंच पर हम पहली बार परिचय करा रहे हैं एक संवेदनशील रचनाकार अनु लागुरी जी का। इनकी एक कहानी प्राची पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किये जा रहे कहानी संग्रह "पंखुड़ियाँ" (24 लेखक 24 कहानियां EBOOK ) में चुनी गयी है। आज पेश है उनकी एक मार्मिक भावप्रवण रचना -
मुझसे दूर तो कभी नहीं जाओगे ना...... अनु लागुरी
मुझसे दूर तो कभी नहीं जाओगे ना...... अनु लागुरी

और मैं चिहुंककर,
तुम्हारे सीने से लग जाती थी
और महसूस करती तुम्हारी बाहों का
मजबूत घेरा ।
जो मुझसे कहता
अनु मैं हूँ ना...!!!!
और मैं सिमटी सहमी
पूछती तुमसे...!
मुझसे दूर कभी नहीं जाओगे ना....???
और तुम मुस्कुरा देते...
अपने वही चिर-परिचित अंदाज में
और कहते मुझसे नहीं पगली!
धत्त...!!!!!!!
और अंत में आदरणीया रेणु बाला जी की मनमोहक बाल कविता। बाल साहित्य के लिए इनकी क़लम उपयुक्त बिषय स्वतः ही तलाश लेती है। कविता के साथ सलग्न चित्र में भी बालपन की उन्मुक्तता बख़ूबी झलक रही है। सुंदर चित्रांकन और शब्दांकन का आनंद अपने बचपन में लौटकर लीजिये -

निश्छल राहों के ये राही -
भोली मुस्कान से जिया चुरालें ,
नजर भर देख ले जो इनको
बस हंसके गले लगा ले ;
अभिनय नहीं इनकी फितरत
जो मन में वो ही मुखड़े पे दिखे !
आंगन में खेल रहे बच्चे !!
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद। आज आपका समय ज़्यादा अवश्य व्यतीत हुआ होगा यहाँ। आपकी मार्गदर्शक प्रतिक्रियाओं और स्नेह भरे संदेशों के लिए प्रतीक्षारत।
सम्मानीय पाठकों से अनुरोध है कि इस ब्लॉग को फॉलो भी करें ताकि संवाद का रिश्ता और प्रगाढ़ होता जाय।
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फिर मिलेंगे