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शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

840......एक आदमी बोने के लिये एक आदमी

सादर अभिवादन

ग्लोबल वार्मिंग अर्थात जलवायु में असंतुलित परिवर्तन मौन आहट है विनाश का, हमारी पृथ्वी और मानव अस्तित्व के लिए। ग्लोबल वार्मिंग बहुत ही जाना पहचाना नाम है और हम सब इसके बढ़ते खतरे से भी अनजान नहीं, पर हम इसे कम करने में अपना क्या योगदान दे रहे हैं ये बात महत्त्वपूर्ण है।लोग तरह-तरह की  असाध्य बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं, खेती की उर्वरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा,पेय जल का भयावह संकट और भयावह होता जा रहा,समुद्रों के जलस्तर  में गलेश्यिर के पिघलने के कारण अनायास वृद्धि और इन सबसे आम जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।पर इसके बावजूद सब आँखें मूँद कर लापरवाही की प्रवृति अपनाये हुये हैं, हम इतनी गंभीर समस्या पर मूक-बधिर होकर सारे तथ्य नकार रहे हैं।


ग्लोबल वार्मिंग की प्रक्रिया को रोकना सिर्फ़  एक व्यक्ति के बस में 
नहीं है  लेकिन छोटे-छोटे प्रयासों  से हम निश्चित रूप से 
इसकी गति कम कर सकते हैं। 

हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएंगें। पेड़-पौधे लगाये और पीने के पानी को व्यर्थ न बहने दें। ऐसा प्रयास अति सराहनीय होगा।आप अपनी भूमिका तय कर लीजिए आप क्या योगदान कर रहे??

 अब चलते है आज की रचनाओं की ओर

 रचनाकार के मन के भावों को व्यक्त करती 
"आदरणीया यशोदा दी" द्वारा रचित सुंदर कविता
"पुनः और पुनः"


फिर लिखता है कुछ... 
चेहरे पर उसके 
मुस्कान एक 
छोटी सी आती है....
सहेज लेता है उसे..
सोचता है...
तसल्ली है उसे..
पूरी हो गई ये कविता..

प्रेरक,सारगर्भित सुंदर संदेश देती 
"आदरणीया सुधा जी " 
की खूबसूरत रचना

"इकतरफा प्रेम यूँ करना क्या ?"


जीवन तेरा भी अनमोल यहाँ,
तेरे चाहने वाले और भी हैं।
इकतरफा सोच से निकल जरा,
तेरे दुख से दुखी तेरे और भी हैं।
वीरान पड़ी राहों में तेरा...
यूँ फिर-फिर आगे बढ़ना क्या ?.....
इकतरफा प्रेम यूँ करना क्या ?
फिर मन ही मन यूँ जलना क्या......??


समसामयिक मुद्दे पर  तीक्ष्ण दृष्टि और तीखी अभिव्यक्ति 
से अलग अंदाज़ में रची गयी
 "आदरणीय रवींद्र जी" की रचना
 "100 के आगे 100 के पीछे"

http://www.hindi-abhabharat.com.xn----ztd4gfj7aay8etcbep4p.com/2017/11/100-100.html?m=1

कैसा राष्ट्रीय चरित्र विकसित हो रहा है... ?
हमारा मानस कहाँ  सो  रहा है ...?

ज़रा सोचिये......!!!!!!!
ठंडे दिमाग़ से
क्या मिलेगा 
भावी पीढ़ियों को 

कोरे सब्ज़बाग़ से........ !!!!!!!!!

अंतर्मन के गहन भावों को शब्दों से सुवासित करती
 आदरणीय "पुरुषोत्तम जी" की भावपूर्ण रचना
"हमसफर"
राह में गर काँटे तुमको मिले अगर    
शूल पथ में हो हजार, बिछे हों राह में पत्थर,
तुम राहों में चलना दामन मेरा थामकर,
खिल आएंगे काँटों में फूल, तुम साथ दो अगर।

साहित्य सुधा की सरस निर्झरी सतत प्रवाहित करती
मतदान के नाम पर होने वाले क्रियाकलापों का आईना दिखाती
"आदरणीय विश्वमोहन जी"
की रचना
"चुनाव"

कोई लोहियाकोई लोहा लाये
कोई कबीर का दोहा गाये.
और कर में धारे अम्बेदकर,
बहुजन हितायबहुजन सुखाय.




हमेशा की तरह अपनी विशिष्ट शैली से प्रभावित करते, नारी की दशा पर 
"आदरणीय ध्रुव जी" 
गहन विचारोत्तेजक रचना
"सती की तरह"
कभी -कभी हमें शब्दों से 
आह्लादित करते 
संज्ञा देकर देवी का 
शर्त रहने तक 
मूक बनूँ !
बना देते हैं 
सती क्षणभर में 

और अंत में उलूक के पन्ने से
"आदरणीय सुशील सर"
की सबसे अलग अंदाज में लिखी गयी धारदार रचना
"आदमी खोदता है आदमी में"

आदमी आदमी 
खेलते आदमियों में 
अपना खुद का 
भेजा हुआ आदमी । 

आज के लिए बस इतना ही
आप सभी के सुझावों की प्रतीक्षा में


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