सादर अभिवादन
बिना किसी लाग-लपेट के ..
चलिए चलें आज की रचनाओं की ओर....
पहली बार....इस ब्लॉग मेंं..
बिना किसी लाग-लपेट के ..
चलिए चलें आज की रचनाओं की ओर....
पहली बार....इस ब्लॉग मेंं..
सरकारों का संकट यह है कि वे चीन, जापान, रूस जैसे तमाम देशों के भाषा प्रेम और विकास से अवगत हैं किंतु वे नई पीढ़ी को ऐसे आत्मदैन्य से भर चुके हैं कि हिंदी और भारतीय भाषाओं को लेकर उनका आत्मविश्वास और गौरव दोनों चकनाचूर हो चुका है। आप कुछ भी कहें हिंदी की दीनता जारी रहने वाली है और यह विलाप का विषय नहीं है। महात्मा गांधी के राष्ट्रभाषा प्रेम के बाद भी हमने जैसी भाषा नीति बनाई वह सामने है। वे गलतियां आज भी जारी हैं और इस सिलसिले की रुकने की उम्मीदें कम ही हैं। संसद से लेकर अदालत तक, इंटरव्यू से लेकर नौकरी तक, सब अंग्रेजी से होगा तो हिंदी प्रतिष्ठित कैसे होगी?
वेल, माईसेल्फ़ हिन्दी... एक्चुअल्ली, आप लोगों ने ये मेरा नाम थोड़ा गलत लिख दिया है। माइ नेम इज़ ओन्ली हिन्दी। नॉट ‘न्यू टाइप हिन्दी’...
इक्सक्यूज मी... हू आर यू?
बोला तो अभी ‘हिन्दी’
मैडम, ये हिन्दी क्या बला है? वी नो ओन्ली ‘न्यू टाइप हिन्दी’
अरे, मैं उसी न्यू टाइप हिन्दी की हिन्दी हूँ...
देखिये मैडम, आपको कोई गलतफहमी हुई है। हिन्दी विंदी बहुत पुराना कान्सैप्ट है। हम नए लोग हैं... वी टॉक ओन्ली अबाउट ट्रैंडी थिंग।

हिंदी दिवस पर गुरुघंटालों, चमचों और बेचारे पाठकों को बधाई कि आज हिंदी, चमचों के हाथ जबरदस्त तरीके से फलफूल रही है, और बड़े पुरस्कार पाने के शॉर्टकट तरीके निकाल कर लोग पन्त, निराला से बड़े पुरस्कार हासिल कर पाने में समर्थ हो रहे हैं !
सूर की राधा दुखी, तुलसी की सीता रो रही है।
शोर डिस्को का मचा है, किन्तु मीरा सो रही है।
सभ्यता पश्चिम की,विष के बीज कैसे बो रही है ,
आज अपने देश में, हिन्दी प्रतिष्ठा खो रही है।।
मैं अंग्रेजी में खो गई कहीं
जो कि मेरा विषय नहीं,
अंग्रेजी कौन हो तुम, कहाँ से आई
कैसे अपनी जड़ें जमाई।
बनकर आई जो मेहमान
आज बनी वो सब की शान,
खोकर तुम्हारी चकाचौंध में
बारूद उगाते हैं बसी थी जहाँ केसर
मैं चुप खड़ा कब्ज़े में है उनके मेरा घर
कैसे भला किससे कहूँ मैं जान न पाऊँ
दे न सकूँ आवाज़ मुझे जान का है डर
आज का शीर्षक..
बहुत अच्छा हुआ
खबर चली गई है
और खबरची के
साथ ही गई है
खबर आ
भी जाती है
तब भी कहाँ
समझ में
आ पाती है
खबर कैसी
भी हो माहौल तो
वही बनाती है ।
आज्ञा मिले तो जाऊँ
भूल-भुलैय्या तैय्यार है
सादर
आज का शीर्षक..
बहुत अच्छा हुआ
खबर चली गई है
और खबरची के
साथ ही गई है
खबर आ
भी जाती है
तब भी कहाँ
समझ में
आ पाती है
खबर कैसी
भी हो माहौल तो
वही बनाती है ।
आज्ञा मिले तो जाऊँ
भूल-भुलैय्या तैय्यार है
सादर





