सादर अभिवादन
अभी-अभी भाई कुलदीप जी ने फोन पर सूचना दी
वे यक-बयक शहर से बार जा रहे हैं
सो आज चार सौ बीसवें अंक में मेरी पसंदीदा रचनाएँ....
हिन्दी, हिन्द की आत्मा है..........डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
हिन्दी जन जन की भाषा है
हिन्दी विकास की आशा है
हिन्दी में है हिन्द बसा
हिन्दी अपनी परिभाषा है
हिन्दी, हिन्द की आत्मा है..........डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
हिन्दी जन जन की भाषा है
हिन्दी विकास की आशा है
हिन्दी में है हिन्द बसा
हिन्दी अपनी परिभाषा है
एक तरफ सूर्यास्त की लालिमा के साथ हरे-काले से लाल रंग में परिवर्तित होता समुद्र अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था वहीं दूसरी तरफ विवेकानन्द रॉक मेमोरियल में चमकता प्रकाश उसकी गरिमा को और बढ़ा रहा था. हम लोग तो नहीं थके थे मगर लगने लगा था कि समुद्रतट से रॉक मेमोरियल की, समुद्र की, लहरों की, लहरों के साथ उछलती-कूदती डोंगियों-नौकाओं की फोटो खींचते-खींचते कैमरा थक गया था. लो बैटरी के सिग्नल के द्वारा उसने खुद को कभी भी पूरी तरह से बंद हो जाने का संकेत कर दिया था.
*व्यक्तिगत रूप से चाहे आप जितने बड़े खिलाड़ी हों लेकिन अकेले दम पर हर मैच नहीं जीता सकते अगर लगातार जीतना है तो आपको संघठन में काम करना सीखना होगा, आपको अपनी काबिलियत के आलावा दूसरों की ताकत को भी समझना होगा। और जब जैसी परिस्थिति हो, उसके हिसाब से संगठन की ताकत का उपयोग करना होगा*
पर कुछ पल ही रह पाया
सभी यत्न असफल रहे
जीवन पुनः देने के
यह भाग्य न था
तो और क्या था
शहादत देने वालों में
एक नाम और जुड़ गया |
कौन कहता है फ़ासले दूरी से होते हैं
फ़ासले वहीं होते हैं जहाँ दूरी नहीं होती
दुनियादारी के फैसले तो ज़ेहन से होते हैं
इनमें दिल की रजामंदी ज़रूरी नहीं होती
चंदा ने आज लजाते हुए
सुनाई मुझे
अपनी चाँदनी से हुई मुलाकात........
पुर्णिमा कि हर रात
चंदा और चाँदनी की
होती है प्यार भरी बात !!
हम गये हम गये...कंचन प्रिया
दिल पराया हो गया
जाँ भी पराया कर दिए
इक इशारा फिर किये
हाय, हम गये हम गये
हम गये हम गये...कंचन प्रिया
दिल पराया हो गया
जाँ भी पराया कर दिए
इक इशारा फिर किये
हाय, हम गये हम गये
इन सांप सीढ़ियों के खेल का कोई यक़ीन नहीं,
कब, किसे और कहाँ, नाज़ुक ताश के मकान मिले।
बेशक़, तुम मुमताज महल से ज़रा भी कम नहीं,
ये ज़रूरी नहीं कि तुम्हें असल कोई शाहजहान मिले।
पाँच लिंकों का आनन्द में
आज उल्लूक टाईम्स की एक भी कतरन न हो
ऐसा न कभी हुआ है...और न होगा
आज उल्लूक टाईम्स की एक भी कतरन न हो
ऐसा न कभी हुआ है...और न होगा
एक साल पहले कुछ न कुछ तो जरूर हुआ होगा
दी जाती है हमेशा
हरी मिर्च खाने को
माना कि उल्लू को
कोई नहीं देता है
तू भी कभी कभी
कुछ ना कुछ इस
तरह का खुद ही
खरीद कर क्यों
नहीं ले लेता है
मिर्ची खा कर
सू सू कर लेना
ही सबसे अच्छा
और सच में बहुत
अच्छा होता है।
आज्ञा दें...
फिर मिलते हैं अगर मौका मिला
सादर








