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सोमवार, 5 सितंबर 2016

416....खिले हुए हैं अभी चंद फूल शाख़ों पर

आज शिक्षक दिवस सभी गुरुजनों को सादर नमन! 
हमारे जीवन में माता -पिता के बाद यदि और किसी का सबसे ज़्यादा प्रभाव रहता है तो 
वह निश्चित ही हमारे गुरुजन हैं। 


कल हरतालिका तीज थी..
मुझे यह प्रस्तुति नही बनानी थी...
पता नही क्यूँ बना दी...

कौन है यह शिक्षक ? अज्ञान को मिटाने – मोमबत्ती की तरह जलने वाला, विकास की मंजिल तक युग को पहुंचाने वाला , शिष्यों के हृदय धरा को ज्ञान मेघ बन कर सींचने वाला , सामाजिक विषमताओं के विष को शंकर की तरह पीने वाला , लोकहित में दधीचि बन शरीर दान करने वाला , ब्रह्मा बिष्णु महेष जैसा सामर्थवान व्यक्ति ही तो शिक्षक है 
जो , कभी कृष्ण गीता गाकर विजय का उल्लास दिलाता है , 
कभी गुरू द्रोण की तरह लक्ष्यवान बनाता है , 
कभी गुरू नानक की तरह तत्वबोध कराता है , 
कभी परमहंस बन विवेकानंद दे जाता है , 
कभी पाखंड का खंडन करने कबीर बन राह दिखाता है , 
कभी विज्ञान का नव आयाम देने 
कलाम बन सर उठाकर जीना सिखाता है, 
कभी कर्तव्यनिष्ठ ज्ञानमूर्ति राधाकृष्णन बन , 
विश्वगुरू का सम्मान पाता है।



हे गुरुवर
मैं, एकलव्य की जाति का हूँ
सूद्पुत्र हूँ कर्ण की तरह
किन्तु ,मैं नही दे सकता
अपना अंगूठा
न ही बना सकता हूँ
आपकी प्रतिमा

अध्यापक एक दीपक है
जो स्वयं जल कर
रौशनी फैलाता है
किन्तु उत्तर में
समाज से क्या पाता है?

शीश झुकाऊँ ,नमन करूँ
चरण पखारूँ सुबह शाम
विद्या बुद्धि के दाता तुम
हे गुरूवर तुम्हें प्रणाम....

इन 32 वर्षों में,
सब कुछ बदला है।
पर्व, मेले,  त्योहार भी,
रिति-रिवाज, संस्कार भी।
पीपल नीम अब काट  दिये,
नल, उपवन भी बांट दिये,
अब चरखा भी कोई नहीं बुनता,
दादा की कहानियां भी नहीं सुनता।


राह तुम्हारी तकते कान्हा...मालती मिश्रा
राह तुम्हारी तकते कान्हा
मैने अपना स्वत्व मिटाया,
काठ सहारा लेते-लेते 
काठ-सी ह्वै गई काया।
नीर बहा-बहा कर दिन-रैना



पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर
उदास फूल खिलेंगे मलूल शाखों पर।

अभी न गुलशन-ए-उर्दू को बे-चराग कहो
खिले हुए हैं अभी चंद फूल शाख़ों पर ।

थकावट जबरदस्त है
आज्ञा दें..
सादर






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