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सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

213...'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय'

सादर अभिवादन

 प्रेम दिवस कल निपट गया..
कुछ धरे गए रंगे हाथों
कुछ छूट भी गए
अपना रसूख दिखा कर..
पर कविताओं में आज भी
मन रहा है प्रेम दिवस..

देखिए कुछ इस तरह...


मैंने सुना है कि,
जब किसी को प्रेम होता है
घनघोर अँधेरे में भी
एक नाम 
उतर जाता है पलकों में , 
रोशनी बनकर
पथरीली जमीन से फूट पड़ता है
एक रुपहला निर्झर ।

विश्वविद्यालय 
देश के कहाँ होते हैं 
विश्व के होते हैं 
सिखाये हुऐ के 
हिसाब से होते हैं 
देशप्रेम छोड़िये 
बड़े प्रेम विश्वप्रेम 
पर चल रहे होते हैं 
पर कन्फ्यूजन 
भी होते हैं और 
अपनी जगह पर होते है 

दर्द की
टेढ़ी मेढ़ी इबारतें
वक्त के सीने पर
सुर्ख हर्फों में
हर रोज़ उकेरती हूँ !
एक बार तो तुम
मुड़ कर देखो
मैं किस तरह
हर रोज़
जी जी कर मरती

तुम मिले तो जिंदगी में रंग भर गए। 
तुम मिले तो जिंदगी के संग हो लिए। 
कबीर ने यूँ ही नहीं कहा कि 
'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय' . 
प्यार का न कोई धर्म होता है, 
न जाति, न उम्र, न देश और न काल। …


हर साख पर फुल खिले हैं, वसन्त का पदार्पण है 
भौंरें गुण गुना रहे हैं, पर मेरा मन उदास है |
फल-फूलों के खुशबू से, हवाएं सुवासित है 
चिड़ियाँ चहक रही है, पर मेरा मन उदास है | 


और ये है इस अंक की प्रथम कड़ी

देश प्रेम
सियासती ये लोग चंद, है इनपे धिक्कार ।
भारत में रहकर करे, पाक की जय जय कार ।।
पाक की जय जय कार, लगे विरोधी नारे ।
पुलिस महकमा शांत क्यों, देशद्रोही ये सारे ।।
हो उचित कार्रवाई जल्द, जेल में इनको डालो ।
देश रक्षा पर राजनीति, छोड़ सियासत वालो ।।


आज्ञा दें यशोदा को










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